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Mahek Fatima Malik

Others

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Mahek Fatima Malik

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मल्लाह और विद्वान

मल्लाह और विद्वान

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एक दिन एक विद्वान नौका से गंगा पार कर रहा था। आसमान में घने बादल छाए हुए थे। विशाल नदी के पानी में नौका छोटी सी लग रही थी। मल्लाह नाव चला रहा था और विद्वान पुस्तक पढ़ने में तल्लीन था।

बहाव के साथ बहते हुए ना वो धीरे धीरे चल रही थी। नाव चलाने वाले का ध्यान चप्पू चलाने में लगा था और विद्वान का ध्यान किताब पढ़ने में। अचानक विद्वान ने किताब से सिर उठाकर मल्लाह से पूछा" तुमने कभी इतिहास पढ़ा है?"

"नहीं महाशय !"केवट ने धीमे स्वर में उत्तर दिया।

"यह तो बड़े खेद की बात है। इतिहास किताबें पुराने राजाओं और रानियों और योद्धाओं और सुर वीरों की लड़ाई हो की बातें लिखी हुई है सिर्फ इतना ही नहीं कमा पर युगो से रहे मनुष्य के रीति-रिवाजों, पहनावे और स्वभाव के बारे में इतिहास से जानकारी मिलती है। तुमने ऐतिहासिक पुस्तकें क्यों नहीं पढ़ी है?"

"मालिक, मैं पढ़ना सीखा ही नहीं हूं !" मल्लाह ने फिर सादगी से उत्तर दिया फिर दोनों के बीच कुछ देर तक मौन छा गया थोड़े समय बीत जाने पर विद्वान ने फिर किताब से सिर उठाकर कहा "तुमने भूगोल पढ़ा है ?"

"नहीं जनाब !"नाव वाले ने जवाब दिया। "पता है भूगोल हमें इस दुनिया के बारे में, जिसमें हम रहते हैं, बताती है और पर्वत, नदियों के बारे में भी जानकारी देती है। भूगोल पढ़ने से हमें पूरे देश में रहने वाले लोगों का हाल पता चलता है। तुम्हें उन बातों की जरा भी खबर नहीं है?

"महाशय मुझे तो इन बातों के बारे में कुछ भी नहीं मालूम "मल्लाह ने कहा। तब विद्वान ने ठंडी सांस भरकर कहा "इस ज्ञान के बिना तो तुम्हारा जीवन व्यर्थ कहलाएगा !"

नाविक ने आकाश की ओर संकेत करते हुए कहा "मालिक ऊपर काले बादलों की ओर तो देखिए ! तूफान बस आने ही वाला है और आपको तैरना तो आता है ना ? विद्वान उसकी बात सुनकर परेशान हो गया और कहने लगा ,"अरे मुझे तो तैरना आता ही नहीं!" और हवा के ठंडे झोंके ने विद्वान के शरीर में कंपकंपी पैदा कर दी।

अब मल्लाह की बारी थी उपहास भरे स्वर में उसने कहा ,"क्या ?आप तैरना भी नहीं सीखें हैं ? आपको इतिहास भूगोल, विज्ञान की इतनी जानकारी है, पर आप तैरना जो नहीं सीखें हैं, तो अब जल्दी पता चल जाएगा कि तैरने के बिना आपकी जिंदगी बेकार है।"

इतने में तूफान आना शुरू हो गया और नाव उलट गई। मल्लाह जोर-जोर से बाहों से तैरते तैरते आखिर सही सलामत किनारे पर जा पहुंचा, परंतु बिचारा विद्वान डूब गया।


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