मित्रता
मित्रता
आज मैं कुछ दोस्तों की कहानी को बताने जा रहा हूं क्योंंकि ये दोस्ती , दोस्ती नहीं है दोस्ती से भी बढ़कर है जिसको पढ़ते- पढ़ते आपको दुःख और एहसास होगा की ऐसा दोस्त मुझे ही क्यों नहीं मिला उसको ही क्यों मिला तथा इसके लिए क्या करना चाहिए था । सबसे पहले मैं दोस्त क्या होता है उसके बारे में बताकर अपनी कहानी की शुरुआत करूंगा क्योंंकि लोग दोस्ती कर तो लेते है , दोस्त बना लेते है मगर ना दोस्त रहता है और ना ही उनकी दोस्ती तो सुनिए दोस्त वो नहीं होता जो एक दूसरे की मदद ना करे, अपने काम से काम रखे, हर वक्त तुमको उलझाए रखे, उसको नीचा दिखाए , हमेशा अपने बारे में सोचे ये दोस्त के लक्षण नहीं आम लोगों तथा दुश्मनों के होते है मेरे लिए तो दोस्ती वो होती है जिसमें एक दूसरे के बारे में सोचना ,एक दूसरे के भावों को समझना , उनके साथ लड़ना- झगड़ना , मस्ती से बातें करना , एक दूसरे को समझाना, एक दूसरे को मोटिवेट करना, गलत रास्ते पर जाए तो उसे बचाना , ज़िन्दगी तथा समाज से रूबरू कराना तथा रूठाना फिर मानना , कभी एक दूसरे से कुछ ना छिपाना, हमेशा सच बोलना जी हां ऐसी ही है मेरी दोस्ती । अब आपके दिल में हलचल होने लगी होगी, मन शांत ना हो रहा होगा ,अजीब बैचैनी हो रही होगी कि आगे क्या आएगा या ये कि भाई ऐसे कैसे दोस्तं है , और इनकी दोस्ती कैसी है जो इतनी तारीफ़ की जा रही है तो मैं आपको अब ज्यादा बेचैन ना करते हुए अपनी कहानी शुरू करता हूं।
बात उस समय की है जब मैं मिलिट्री स्कूल नासिक से कक्षा 9 में वनखण्डेश्वर विद्यापीठ धनसुला में पढ़ने के लिए आया । मेरी पहली क्लास के लिए मैं घर से तैयार होकर और टाई लगाकर , ब्लैक जूते पहनकर स्कूल गया क्योंंकि मुझे मिलिट्री स्कूल में अनुशासन सिखाया गया था और उसी का पालन करते हुए मैंने ये सब किया तो फिर मैं अपनी स्कूल बस में बैठकर अपने स्कूल गया क्योंंकि मेरा स्कूल गांव में स्थित है तो बस भी धीमे धीमे लगभग 1.30 घंटे में पहुंचती थी लेकिन जब मैं स्कूल बस से उतरकर अपने क्लास में आकर बैठ गया तो देखा क्लास का माहौल और मेरे मिलिट्री स्कूल के माहौल में जमीन आसमान का अंतर देखकर मुझे अपने आप पर रोना आ रहा था कि मैं कहां आकर फंस गया और गुस्सा भी आ रहा था कि मेरे क्लास के स्टूडेंट्स मुझे देखकर हंस रहे थे । मैंने उनमें से किसी एक से पूछा और उन्होंने भी जवाब भी असंतुष्ट रूप में दिया यह समझने में मुझे 3 दिन लगे लेकिन मैं फिर भी शांत रहा. फिर हुआ ये कि मेरे क्लास टीचर ने सबसे उनके परसेंट का नाम पूछना शुरू किया । जैसे ही मेरा नंबर आया सब लोग मुझे घूर कर देख रहे थे जैसे ही मैंने उन्हें अपना नाम सौरभ शर्मा तथा 98 परसेंट और मिलिट्री स्कूल का नाम लिया। पूरी कक्षा का माहौल एक दम शांत उस समय सन्नाटा भी चीख रहा था और सभी विद्यार्थी आश्चर्यचकित होकर मुझे देख रहे थे और आपस में वार्तालाप कर रहे थे । फिर जैसे ही लंच हुआ सब लोगों ने मुझे चारों तरफ से घेर लिया क्योंकि मैं पहला ऐसा विद्यार्थी था जो लंच बॉक्स लेकर स्कूल आया था । सबसे अचरज की बात मुझे उस समय लगी जब मैंने अपनी ही तरह एक शांत लड़के को देखा जिसका नाम संजय था ।मैंने उससे जाकर पूछा आपका नाम क्या है तो उसका जवाब संजय था । मैंने भी उससे तुरंत ही दूसरा सवाल पूछा क्या तुम मुझे एक दिन के लिए अपनी नोटबुक्स मुझे दोगे क्योंकि मेरा छूटा हुआ था , तो उसने कहा "एक शर्त पर दे तो दूंगा कल पढ़ने आओगे।" मुझे भी बहुत खुशी हुई चलो किसी ने तो मेरी मदद की लेकिन तब तक मेरी और संजय की दोस्ती भी नहीं हुई । जैसे ही मैं कल स्कूल आया और उसकी नोट बुक्स देते हुए थैंक्यू बोलकर अपनी सीट पर बैठ गया , कुछ दिन बीते उसने मुझे अपने पास बुलाकर कहा "तुम इतने उदास क्यूं रहते हो?और चेहरे पर हमेशा खुशी ऐसा कैसे कर लेते हो ?" , तो मैंने भी उसको जवाब देते हुए कहा कि जिस बंदे ने अपने बचपन में ही सबसे कीमती यानी अपने पापा को खो दिया हो वो कैसे खुशी में रह सकता है और खुशी अपने चहेरे पर इसीलिए रखता हूं क्योंकि मेरे चेहरे को देखकर ही मेरे भगवान यानी मेरी मां खुश रहती है । तो उसने मुझसे कहा "क्यूं ना हम दोस्ती कर लें?" , "मुझे भी तुम्हारी तरह दोस्त चाहिए था और मुझे मिल भी गया ।" यहां से होती है मेरी दोस्ती की शुरुआत लेकिन कहते है ना भगवान को हमारी दोस्ती अच्छी नहीं लग रही थी और उसने ऐसा खेल रचा कि हम दोनों की दोस्ती टूट गई । तो हुए ये था कि । ..................... अगर पूरी कहानी सुननी है तो मुझे जिताएं और यकीन माने ऐसी दोस्ती आज तक ना हुई है और ना होगी।
