मेरे प्यारे प्रिय मित्र
मेरे प्यारे प्रिय मित्र


मेरी सबसे प्रिय मित्र की मित्रता के वो सतंरगी पल
मैं एक दिन एक समाज में नागपंचमी का कार्यक्रम था वहाँ एक अजनबी महिला मिली, मैं उसको देखा पर बात कहाँ से शुरुआत करूँ ये समझ नहीं पा रही थी।
जैसे ही अचानक मैंने उसके हाथों में ने चूड़ियों से भरे हाथ देखा मुझे उसके और चूड़ियों से भरा हाथ बहुत पसंद आया। मैं लपककर उसके पास गई और बोला आपकी चूड़ियां बहुत खूबसूरत है, बस फिर क्या था उस पल में बहुत खुश हुई, जब उसने कहाँ मैं तुमको भी ये चुडियाँ दूँगी। बहुत दिन बीते मैं एक
दिन उनके घर के समाने से निकल रही थीं तो उन्होंने आवाज लगाई और बोला आओ अपनी चूड़ियां लेकर जाओ, मैं बहुत खुश हुई चूड़ियां लेकर वापस लौट आई अब मुझे लगा मुझे इससे दोस्ती करना चाहिए। मैंने धीरे से बोला आप मेरी सहेली बनोगी जैसे वो तैयार ही बैठी थी।
2000-12 में दोस्ती हुई फिर मैं जो सामाजिक क्षेत्रों में जुड़ी थी मैंने कहा आप सहयोग करोगी, उसने बड़े धीमे स्वर में हाँ कहा। मैंने पूछा तो बोली मेरे पति को पसंद नहीं है और वो उसको मारते थे पीकर बहुत परेशान हुई मैं ये सुनकर। मैंने कहा आप कब अपने लिए जीयोगे, तो बोली मेरे पति को आप नहीं जानती मैंने धीरे से उनके पति से कहा, भाई साहब क्या में परिवर्तन है नाम में अंजू को अपने साथ सामाजिक क्षेत्रों में और समाज में लेकर जा सकती हूँ। उन्होंने पता नहीं क्या सोचा हाँ कर दी, फिर तो हम दोनों सहेलियों ने इतने खुश होकर वो पल जो कभी सोचा न था जीये जा रहे है कभी रक्तदान कभी नेत्र शिविर भी दिव्यांग के लिए पेंशन बनवाया ऐसे करते समय हम कभी मॉल जाते कभी रेस्टोरेंट में काफी पीते, ये सब मैं उस महिला जो मेरी दोस्त बनी थी उसके लिए करती थी की। उसके वो सतरंगी पल फिर से लौटकर आये, बाकी मैं जब हम जिस भी क्षेत्रों में कार्य किया एक सा विचार एक से कपड़े जो वो बोलना चाहती थी मैं भी वही बोलती, घंटे भर भी हम अलग नहीं होते हे एक बात शेयर करते।
आज मुझे बहुत खुशी है की मेरी सहेली के वो सतरंगी पल लौट आए है। आज वो बहुत खुश है कहती है आज तेरे कारण मैंने जो कभी सपने में सोचा नहीं था कि मैं कभी ऐसे बाहर निकल कर कुछ करूँगी पर जिसमें मेरे ससुराल वालों की भी हिम्मत नहीं थी उनसे बात करे पर तुने तो मेरे पति को और मेरे वो पल लौटाया है जिसके लिए मैं हमेशा तेरी आभारी रहूंगी। मैंने कहा सहेली हूँ तो ये सब बात अच्छी नहीं लगती हम दोनों कुछ ऐसा करते है जिससे हम और हमारे साथ के जो समाज सेवा में जुड़ कर काम करते है। फिर हम दोनों ने बालगृह बाल सुधार में जो बच्चे जिनके माता पिता नहीं है उनको गोद लेने की सोचा महिला सशक्तिकरण महिला आफिसर कलेक्टर महोदय से बात किया, नतीजा सुनकर तो हम ऐसे खुश हुए, जैसे भगवान ने सरस्वती माँ बैठा दी सब मान गये हमने बच्चों को गोद लिया और फिर बच्चों की सतरंगी दुनिया सहेलियों के सहयोग से आज बच्चों को अपना नाम दिया शिक्षा दे रहे और उन बच्चों में अपने उस सतरंगी दुनिया देख रहे जिसको वो बच्चे जो इस दुनिया को अपनी आँखों में वो सपने देखना और महसूस करना चाहते थे। आज सहेली और बच्चों की उस मुस्कान में मैंने उनके जीवन में एक नये आयाम के साथ रंगों को भरा है। आज सब खुश है मुझे दोस्त मिला बच्चे मिले और माननीय महोदय कलेक्टर साहब महिला सशक्तिकरण आफिसर्स ने जब हमको सम्मानित किया और बच्चों को हमें सौंपा वो पल जीवन का सबसे सुखद अनुभव और सतरंगी पल रहे। आज बच्चों को कोई अनाथ नहीं कहता हम माता पिता बनकर उनके जीवन में वो सतरंगी पल देख रहे, दे रहे जिसके वो हकदार है। और ये हकीकत है और सच्चाई है इस सतरंगी कहानी मै आज भी है दोस्त होने से हम किसी के जीवन में रंग तो भर ही सकते है। बस समझ सब अपनी सोचा का है। कहते है नमक नमक होता शक्कर शक्कर होती है किसी अपनो के जीवन में वो पल जो उसको हम दे सकते दे जरूर
ये मेरे मित्रता और मित्र की एक सतंरगी दुनिया को बदलकर कर उसके जीवन को सतरंगी ही कर डाला। आज वो बहुत खुश होती है की मेरे जीवन में बहुत प्यारा सा रंगों को भर दिया तुमने, मैं बहुत खुशनसीब हूँ अंजू जो तुम मिली और हमारे दोनों परिवार में इतना रंग भर दिया कभी भी रंगों में वो नौरंग मिलकर सतरंगी हो गये।
मेरे द्वारा लिखी ये सच्ची कहानी है जो मेरी सहेली को समर्पित हैं सतरंगी मित्रता साथ में बड़ी बहन आदरणीय रति दीदी को भी साधुवाद करना चाहूंगी जिन्होंने मुझे इस सतरंगी और बहुत ही प्यारे परिवार से जोड़ा नौरंग से भरकर मुझे मिला आप सभी का साथ आगे भी मिलेगा तो ये सतरंगी परिवार, मैं बहुत से रंगों से मिलकर एक होगा।