मेरे जिगर का टुकड़ा
मेरे जिगर का टुकड़ा
आज मेरी बिटिया पहली बार किसी स्कूल ट्रिप पर अकेले गई थी। मन एक अनजाने बोझ से रह-रह कर डर रहा था। कि कैसे मेरी बच्ची सुबह उठेगी ? कैसे तैयार होगी?क्या खाएगी?मैने उसकी जरूरत की सब चीजें कपड़े,जूते,मोज़े,रूमाल आदि अच्छे से बैग में रख दिये। पर रह-रह कर मन में एक ही डर था कैसे रहेगा मेरा बच्चा अकेला।
खैर वो टूर पर चली गयी। टीचर द्वारा व्हाट्स ऐप ग्रुप बना लिया गया। हमें पल -पल की जानकारी देने के लिए तस्वीरों का तांता लग गया। पर मुझे अपनी लाडो नज़र नहीं आयी। मेरा डर स्वभाविक था। माँ हूँ ना! कि कहीं सो रही हो? कहीं तैयार न हुई हो! तरह-तरह के सवाल मन में सोचती चली गयी। तस्वीरों को उपर करते हुए खुद से बातें किए जा रही थी कि तभी मेरी बच्ची मुझे एक फोटो में नज़र आई जिसमें वो पानी के झरने के नीचे खड़ी थी। व इस तरह से तीन दिन तक उसकी दिनचर्या की तस्वीरें ग्रुप पर आती रही। कभी फूलों को निहारते हुए और कभी ट्रैंकिग करते हुए। तीन दिन बाद जब घर लौटी तो वह बहुत खुश थी। कि माँ बहुत मजा आया आप के साथ तो हम ये साहसिक कार्य कहां कर सकते है। गहरे-गहरे गड्ढे देखकर आप तो हमें जाने ही नहीं देती।मैं मुस्करा कर सोचने लगी कि मैं ऐसे ही डर रही थी पर सच तो ये है कि बच्चें टूर पर जाकर हमसे अलग होकर नयी चीजें सीखते हैं जिससे न केवल वे स्वालम्बी बनते हैं बल्कि परिवार से दूर रहकर उन्हें घर की अहमियत पता चलती है। बाते करते - करते बिटिया अब मेरी गोद में सर रख कर सो गयी थी और मैं उसे प्यार से सहला रही थी और सोच रही थी कैसे हम अपने डर की वजह से बच्चों को दब्बू बना देते है हमे उनमें हमेशा हिम्मत व आगे बढ़ने की सीख देनी चाहिए।
मेरे जिगर का टुकड़ा,मेरे जिगर का टुकड़ा
मेरे बिन वो आज उड़ा
ली उसने उड़ान
मन थोड़ा डरा फिर संभला
कि दस्तूर है ये जीवन का
पंखुडियां खिलने पर ही बनती हैं फूल
मेंरी लाडो, तुम घबराना न
पहाड़ी पथ पर डर का साथ, निभाना न
तुम वहां मै यहाँ
पर मेंरी दुआएँ, मेरा मन
देगा तुम्हें हौसला
अपने नन्हे कदम..तू आगे रख
तू चल, तू आगे बढ़.. यही तो जग का विस्तार है
जीने का यही ढंग, यही अंदाज है,..
अपने पंख फैला..
छू ले अम्बर चाहे पथ में लाख समुद्र
तू मेरे जिगर का टुकड़ा
जानती हूं मैं है तुझ में अथाह हिम्मत
....अथाह हौसला।
