मौत का सफ़र
मौत का सफ़र


"दो वक्त की रोटी नसीब वालों को मिलती है" यह कहकर आज फिर सुरेश अपने परिवार के साथ भूखा सो गया।
जब से देश में लॉकडाउन हुआ है तब से सुरेश को मिलने वाला पर्याप्त भोजन बंद हो गया है.
कुछ लोगों ने थोड़े समय पहले खाने की सामग्री सुरेश को दी थी वह तो खत्म हो चुकी थी लेकिन दानदाताओं के द्वारा लिए गए फोटो अभी भी सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रहे हैं।
सुरेश महानगर से अपने गांव जाना चाहता था. लेकिन जाए कैसे ?
वह अपने पूरे परिवार को लेकर पैदल ही निकल पड़ा।
रास्ते में सुरक्षाकर्मियों के द्वारा उसको और उसके परिवार को ट्रक में बिठा दिया जो राज्य की सीमा तक उन्हें ले गया.
आगे वाले राज्य ने अपने राज्य की सीमा सील कर रखी थी।
अब उसका परिवार ना घर का ना घाट का.
शाम को सीमा पर भूखे परिवार को किसी भामाशाह के द्वारा भोजन खिलाया गया.
पूरे परिवार ने आज बहुत दिनों के बाद भरपेट भोजन किया. उनके चेहरे पर पर्याप्त खुशी झलक रही थी।
आज की रात वही फुटपाथ पर पूरे परिवार ने गुजारी,
सुबह राज्य की सीमा खोल दी गई. सुरेश का परिवार पैदल ही चलने लगा।
लेकिन अब सुरेश की गर्भवती पत्नी पैदल चल पाने में असमर्थ थी
उसे असहनीय पीड़ा होने लगी. जोर-जोर से चिल्लाने लगी लेकिन आसपास कोई अस्पताल नहीं था
और कोई परिवहन उस गरीब के लिए भला रुकता ?
एक घंटे तक भंयकर दर्द से पीड़ित सुरेश की पत्नी ने सड़क पर ही बच्चे को जन्म दे दिया.
सड़क पर चलने वाले किसी भी राहगीर ने किसी भी प्रकार की कोई सहायता नहीं की. कुछ समय बाद
असहनीय पीड़ा को सहते हुए भी मां उठ खड़ी हुई और बच्चे को अपने ओढ़नी के पल्लू में बिठाकर चलने लगी.
'दो जून की रोटी' अर्थात दो वक्त की रोटी ने एक निर्दोष मां को अत्यंत कठिन यातनाएं दी.
शाम तक वह सभी पैदल चलकर किसी छोटे शहर तक पहुंचे लेकिन वहां पर ह्दय विदारक हादसा हो गया.
नवजात शिशु की मां ने असहनीय पीड़ा के कारण प्राण त्याग दिए।
सुरेश अब पूर्ण रूप से टूट गया. सुबह तक लाश के पास बच्चों को सुलाकर खुद रोता ही रहा.
फिर सुबह एक कंधे पर पत्नी की लाश और दूसरे कंधे पर नवजात शिशु को लेकर दो दिन बाद गांव पहुंचा।
सोशल मीडिया पर लाश को ले जाते हुए सुरेश का किसी ने वीडियो शूट कर लिया होगा उस वीडियो को लोगों ने बहुत शेयर किया और वीडियो पर बहुत दुख जताया लेकिन यथार्थ में कोई सहायता करने नहीं पहुंचा।
यह दो वक्त की रोटी गरीब को मिट्टी के मोल बेच देती है।