माफ़ीनामा
माफ़ीनामा
वही पुरानी कुर्सी और रिकॉर्ड प्लेयर पर रफ़ी के गाने।
लगता है मदान साहब बहुत खुश हैं,और क्यों ना हों,उनका बेटा विनय अपनी पत्नी प्रीती के साथ 2 साल बाद जो आ रहा है।
अपने बच्चों के इंतज़ार में,आंगन में कुर्सी पर बैठे,मदान साहब की कब आँख लग गयी, उन्हे पता ही ना चला।
फिर अचानक एक ज़ोर की बिजली और खिड़कियों की खड़खड़ाहट ने अचानक मदान साहब को नींद से जगा दिया।
लगता है तूफ़ान आने वाला है!
उन लड़खड़ाते पैरों में हिम्मत बटोर,अपने काँपते हुए हांथों से खिड़कियां बंद करते हुए ये क्या,
बारिश की बूंदों ने मदान साहब के हांथों को छू लिया।
बारिश की बूँदें मदान साहब को अपने वश में करने वाली ही थीं, कि सेल फ़ोन की घंटी बज उठी
मदान साहब-हेल्लो
विनय-पापा हम लेट हो जायेंगे,यहाँ बहुत बारिश हो रही है।आप फिक़्र मत करना,और खाना खा लेना।
मदान साहब-बेटा विनय,कुछ सुनायी नहीं दे रहा,घर कब आ रहे हो।
इससे पहले मदान साहब कुछ सुन पाते कॉल कट गया।
घबराया हुआ मदान साहब का मन, कॉल पर कॉल करने लगा लेकिन रुट की सभी लाइने व्यस्त थी।
एकाएक, अब बिजली भी लुका छुपी खेलने को आतुर हो गयी थी।
लेकिन मदान साहब इस खेल के भी खिलाड़ी थे।
उन काँपते हुए हांथों ने झट से अलमारी के कोनों को टटोलना शुरू कर दिया और मोमबत्ती के साथ कुछ अनलिखे पन्ने भी हाँथ लग गये।
उन पन्नों की खुशबू आज भी उतनी ही ताज़ा थी जैसी,उस दिन जब उन्हे मदान साहब को सौंपा गया था।
अब चेहरे की मुस्कान कुछ ओर ही बयाँ कर रही थी।
और हांथों में कलम ,पन्नों को इशारा कर रही थी।
और फिर, उस लकड़ी की कुर्सी को कोसते हुए मदान साहब ने कुछ लिख डाला।
"ये कुर्सी भी न जाने कितने सालों से मुझे हर बार नींद के आगोश में पंहुचा देती है,तुम्हे याद है"
लिखते-लिखते कब बारिश धम गयी,ओर टेक्सी के हॉर्न ने मदान साहब को चौंका दिया।
दरवाजे खोलते ही ये क्या,चेहरा चमक उठा,शरीर में जैसे जान सी आ गयी।
मदान साहब-तुम लोग आ गये !!
विनय-पापा,रास्ते में भी बारिश हुए,थोड़ा धीरे धीरे आये।
प्रीती-पापा,अपने खाना खाया?
मदान साहब बोले पहले तुम दोनो गले मिलो,ना जाने कब से इंतज़ार कर रहा हूँ।
अब तुम लोग आ गये हो ना चलो साथ में मिलकर खाना खाते हैं ।
प्रीती-मैं ना कहती थी,खाना नहीं खाया होगा, चलो विनय,मुझे 500 रुपये दो।
मदान साहब-500 किस बात के?
विनय-मैं शर्त हार गया और क्या,मैने सोचा आपने खाना खा लिया होगा।
मदान साहब-अच्छा तो ये बात है।ये भी नहीं समझता,चल दे पैसे,प्रीती को।
और प्रीती बेटा,शर्त कम से कम 1000 की लगाया कर
मुनाफा ज्यादा होगा।
प्रीती-जी पापा।
और फिर,हल्की फुल्की बातों का सिलसिला रात तक चला ओर सब अपने अपने कमरों में सोने चले गये।
प्रीती-तुमने पापा को बताया की हम बस 2 दिन रुक पाएंगे।
विनय-अभी नहीं,कल बता दूंगा ।
प्रीती-उन्हे बुरा लगेगा,अगर तुम कल जाने का बोलोगे,तुम कुछ नहीं समझते ।
विनय-अभी बोलूंगा तब भी बुरा लगेगा ना?ओर वैसे भी पापा को कोई फर्क़ नहीं पड़ता ।
प्रीती-जैसे तुम ठीक समझो,चलो मुझे बहुत नींद आ रही है,गुड नाइट ।
और फिर अगली सुबह मदान साहब और विनय सैर को निकल गये।
विनय-पापा,आप हमारे साथ क्यों नहीं रहते?
मदान साहब-बेटा, देख ना,यहाँ सब अपना अपना सा लगता है,नई जगह जाकर रहना मुझसे नहीं होगा।
विनय-लेकिन पापा
मदान साहब-मैं ठीक हूँ,तुम लोग अच्छे से रहो।
विनय-पापा वो एक बात बोलना था,मुझे ना बस 2दिन की छुट्टी मिली है तो कल वापस जाना होगा।
*विनय की बात सुनकर,मदान साहब एकटक थम गये,और अपनी आंखो में आँसूं छुपाये,हंस कर बोले*
अरे,तुम्हे देख कर गले लगा लूँ,और क्या चाहिये।
तुम लोग मेरी फिक़्र मत करो,जब मन करे,टाईम मिले आ जाओ।
चल अब घर चल, पेट में चूहे दौड़ रहे हैं ।
*और दोनो घर की ओर चल दिये*
प्रीती-जल्दी आओ,परांठे बना रही हूँ,चटनी के साथ।
मदान साहब-अरे वाह!बस में अभी स्नान कर के आता हूँ।
प्रीती-जी पापा
विनय-सुनो,मैने पापा को बोल दिया,
प्रीती-क्या बोले पापा?
विनय-कुछ नहीं,बोला ना पापा को इतना फर्क़ नहीं पड़ता है,तुम ही पीछे पड़ी थी।
प्रीती-अब क्या बोलूं,तुम पापा को बुला लो, मैं नाश्ता निकाल देती हूँ।
विनय पापा को बुलाने चला गया
प्रीती प्रीती जल्दी आओ,विनय की अवाज सुन कर प्रीती जैसे ही दौड़कर पंहुची तो ये क्या मदान साहब फर्श पर पड़े हुए थे।
विनय-प्रीती उन्हे हस्पताल ले गये लेकिन मदान साहब की सांसों ने रास्ते में ही साथ छोड़ दिया।
अब पिता के अन्तिम संस्कार के बाद प्रीती ओर विनय ने भी अपने घर जाना ठीक समझा और सामान समेटने लगे।
विनय अपने पापा के कमरे को जैसे ही ताला लगाने पहुंचा, कि एक पन्ने की अवाज ने उसे रोक लिया।
पन्ना उठाया तो ये क्या, अरे यह तो पापा ने लिखा है,
और विनय प्रीती के साथ उस पन्ने को पढने बैठ गये।
माफ़ीनामा-
आजकल रोज़ तारों को देखने की कोशिश करता हूँ। लेकिन लोग बताते हैं कि प्रदूषण बहूत है।
शादी की 42वी सालगिराह मुबारक हो।मुझे यकीन नही हो रहा कि, आज हम एक साथ इतने दूर चले आये।
लोग कहते हैं कि मुझे सुनाई बहुत कम देता है आजकल, अरे सच्ची, मैंने अपने कानों से सुना है।
लेकिन अब उन्हें कैसे बताऊँ में कि उनके आवाज़ मैं प्यार कँही खो गया है।या फिर,मेरे कानों को बस तुम्हारी आदत सी है।
खैर ये सब छोडो,तुम्हे याद है वो शादी का पहला दिन,
तुम्हारी यादें आज भी उतनी खूबसूरत हैं।जितनी, मेरी ज़िन्दगी मैं पहला कदम रखते वक़्त थी।
इतना चौकने की कोई बात नही है,ये शब्द मेरे ही हैं जो मैं कभी तुमसे बोल नही पाया।
समय भी कैसे निकला पता ही नही चला।
वो बारिशों में भीगना,ठिठुरते ठिठुरते स्कूटर चलना,और तुम्हारा वो चाय का ज़िद करना।
ये लो सोचते ही शरीर में सरसराहट सी हो गयी।
और वो हर रात को तुम्हारा तारों को देखना और छोटे बच्चे की तरह खुश हो जाना ,आज भी याद आता है ।
और तुम्हारे हाँथों की धनिया की चटनी,सच्ची तुम्हारे जैसी चटनी अब कोई नही खिलाता।
तुम्हारा वो सुबह उठकर पागलों की तरह अपने माथे की बिंदी को ढूंढना।
तुम्हारा मुझे वो गुदगुदी मचाना और ठण्ड मैं वो अपन ठण्डेे पेरो से मुझको सताना बहुत याद आता है।
तुम मीठा बहुत ही अच्छा बनाती थी,इसलिये शायद बहुत मीठी यादों के साथ तुम मुझे आज यहाँ अकेला छोड़ गयीं।
जब तुम थी तो कभी एहसास ही नही हुआ कि मेरे होते हुए भी तुम्हारी ज़िन्दगी कितनी अधूरी रह गए।
शायद तुम्हारे साथ हंस लेता या रातों को मुह मोड़कर नही सोता,जब तुम तारे दिखाते थी।तो आज,अपने आपको इतना अकेला असहाय नही पाता।
तुम्हारे जाने पर ये महसूस हुआ की क्या हो जाता अगर मैं तुम्हे एक बार प्यार से बैठकर कुछ बोल पाता, या तुम्हारे मन की बातों को समझ पता।
मैं शायद अपने आपको पति ही समझ बैठा जो परमेश्वर की तरह तुम्हारी तपस्या को समझ नही पाया।
तुम्हारे ऊपर बिन बात के गुस्सा हो जाना शायद मैं अपना हक़ समझ बैठा।
लेकिन इस बीच कभी बता नही पाया कि
मुझे तुमसे कितना प्यार करता हूँ ।
कि,मैं तुम्हारी हर शैतानियों पर मन ही मन मुस्कुराता हूँ।
मैं चाहता था की तुम जैसे हो वैसे ही हर रोज़ रहो लेकिन मैं तुम्हे ऐसा जीवन दे नही पाया।
और तुम कब अपनी हंसी छोड़ बैठी मैं उसे लौटा नही पाया ।
मैं आज तुमसे अपने जीवन की सारी गलतियों के लिये माफ़ी माँगता हूँ,और चाहूँगा की तुम्हारा बच्चा बनकर जन्म लूँ ताकि तुम मेरी हर गलती पर तुम मुझे डांट सको।
तुम्हारा-
(सच मुच तुम्हारा)
