क्यूट वाला इश्क
क्यूट वाला इश्क
इस कहानी में दो पात्र है जिनके नाम नेहा और विनय है वे दोनों एक दूसरे से कई साल से प्यार करते हैं एक दूसरे की खुशी के लिए कुछ भी करने वाले आशिक में से एक है। उनके लिए एक दूसरे की खुशी से बढ़कर और कुछ भी नहीं होता। एक दूसरे की हार छोटी-छोटी खुशी को सेलिब्रेट करने वाली प्रवृत्ति इन दोनों की है एक दूसरे का हर वह पल याद रखते हैं जिस पल में यह दोनों खुश थे और उस पल को कभी नहीं भूलते। माना जाए तो इन दोनों को बेस्ट आशिक भी कह सकते हैं। झगड़ा वाकई एक दूसरे से कर लेते हैं पर बाद में दोनों एक दूसरे को समझ भी लेते हैं और फिर से खुशी की पल अपने जिंदगी में लाने की कोशिश करते हैं इन दोनों में सबसे अच्छी बात यह है कि यह दोनों कभी भी अपने लिए कुछ भी नहीं मांगते बल्कि एक दूसरे के लिए ही मांगते रहते हैं। इन दोनों के जीवन में एक ऐसा प्रसंग जो कि इन्होंने एक दूसरे के लिए भगवान से कुछ वरदान मांगा था इनकी एनिवर्सरी पर। वह पल मैंआपको आज बताऊंगी। उन्होंने ऐसा क्या मांगा एक दूसरे के लिए वह कभी भी एक दूसरे के लिए ही प्रार्थना कर लेते हैं पर इस बार जो उन्होंने प्रार्थना की है वह बहुत ही नेक और प्यारी है। इन दोनों की एनिवर्सरी होती है अब नेहा रूम से आते हुए विनय को पूछती है कि आज क्या है तब विनय क्या बताता है यह हम जानेंगे।
नेहा: (कमरे से बाहर आते हुए) "विनय आज क्या है?"
विनय: + (जानबूझकर कहता है) "आज तो गुरुवार है।"
नेहा: (समझदारी से) "सच में तुम्हें पता नहीं है कि आज क्या है?"
विनय: "हां बाबा आज का दिन कैसे भूल सकता हूं!"
नेहा: "तो बताओ आज क्या है।"
विनय: (मजाक करते हुए) "बोला ना आज गुरुवार है!"
नेहा:( थोड़ा गुस्से में)"विनायक तुम छोटे बच्चों की तरह मत करो सच बताओ कि तुम्हें आज क्या है पता नहीं है क्या।"
विनय:"अरे बाबा मैं मजाक कर रहा हूं आज तो हमारी शादी की सालगिरह है वह दिन में कैसे भूल सकता हूं।"
नेहा: "मुझे पता है कि तुम भूल नहीं सकते फिर भी गलती से भूल गए होंगे इसलिए पूछा था।"
विनय:"उस घड़ी को कैसे भूल सकता हूं जिस घड़ी में तुम जैसी घड़ी को मेरी जिंदगी की गाड़ी बनाई"
नेहा: "इतनी प्यारी बातें मत करो नहीं तो मैं आज कुछ भी नहीं कर पाऊंगी जो मैं करने का सोच रही हूं तुम्हारी इए प्यारी बातें मुझे तुम्हारी ओर खींच लेती है इसलिए थोड़ा कम प्यार करो।"
विनय: "वाह मैडम जो आपकी आज्ञा"
नेहा: "जल्दी से तैयार हो जाओ हमें कहीं जाना है"
विनय:"कहां जाना है?"
नेहा: "मंदिर जाना है।"
विनय : "मेरे लिए मंदिर तो तुम ही हो फिर मंदिर क्यों जाए"
नेहा:"तुम भी मेरे लिए मंदिर से बढ़कर हो फिर भी हम दोनों से बढ़कर तो भगवान हैं इसलिए हमारी खुशियों की प्रार्थना करने के लिए हमें जाना चाहिए ना।"
विनय: (हंसते हुए )"जी आपकी जैसी इच्छा।"
नेहा: "चलो अब जल्दी से तैयार हो जाओ।"
विनय: "जीजी 1 मिनट पर तुम 5 मिनट में तैयार होना ।"
नेहा: "हां मैं रोज की तरह 10 मिनट नहीं आज 5 मिनट लूंगी"
विनय: "कौन सा ड्रेस पहनना होगा।"
नेहा: "जो तुम्हें अच्छा लगे"
विनय: ठीक है तुम कौन सा पहनोगी?
नेहा:" जो तुम्हें अच्छा लगे।"
भिनाय: "नहीं बाबा जो हम दोनों को अच्छा लगे वह पहनना।"
नेहा : "ठीक है।"
विनय:( नेहा की ओर जाते हुए कहता है)"मेरा हो गया!"
नेहा: "वाओ गुड सुधर गए हो अब"
विनय: "आपकी कृपा दृष्टि से मैम"
नेहा: "तुम जैसे भी हो मुझे तो बहुत अच्छे लगते हो तुम ज्यादा मेरी पसंद के बारे में कभी मत सोचना जब तुम्हारी पसंद मेरी पसंद से अलग हो।"
विनय: "मेरी और तुम्हारी पसंद कभी भी अलग नहीं होती है फिर भी भविष्य में कभी भी ऐसा हो तो मैं सिर्फ तुम्हारी पसंद को अहमियत दूंगा क्योंकि तुम ही मेरी सबसे बड़ी पसंद हो।"
नेहा: ( खुशी के आंसू आते हैं आंखों से) "मैं आज भगवान से क्या मांगू यह सोच रही हूं क्योंकि भगवान ने सब कुछ सर्वगुण संपन्न इंसान यानी तुम्हें मुझे अनमोल वरदान के रूप में दिया है अब क्या मांगू यही सोच रही हूं।"
विनय:"मैं तो नहीं बता सकता क्योंकि मैं भी ऐसा ही सोच रहा हूं कि तुम्हारे लिए यानी हमारे लिए क्या मांगू।"
नेहा: "चलो अब देर हो जाएगी रास्ते में सोच लेंगे कि क्या मांगना है।"
विनय: "हां हां बिल्कुल सही कहा नहीं तो देर हो जाएगी।"
नेहा: "चलो फिर।"
विनय: "तुम कुछ भूल रही हो"
नेहा: "क्या?!"
विनय: "मैं तुम्हें हर सालगिरह पर अपनी बाहों में उठा कर ले जाता हूं और कार में बैठाता हूं ना"
नेहा: "हां बाबा जैसी तुम्हारी मर्जी।"
विनय: (नेहा को उठाता है और मजाक करते हुए कहता है) "तुम थोड़ी मोटी हो गई हो।"
नेहा: "अब मुझे गुस्सा आ रहा है , मजाक मत करो।"
विनय:"हां बाबा नहीं करूंगा।"
नेहा: ( बाहों में बैठकर कहती है) "अगर कुछ साल बाद मैं बहुत मोटी हो गई तो तुम मुझे कैसे उठाओगे।"
विनय: "तुम कितनी भी मोटी हो जाओ तुम्हें उठाने में मजा ही आएगा प्यार ही आएगा पर तकलीफ बीच में कभी भी नहीं आएगी क्योंकि तुम जान हो मेरी।"
नेहा: "इतना प्यार कैसे कर लेते हो?!!"
विनय: "तुम्हारी समझदारी मुझे तुमसे और ज्यादा प्यार करवाती है।"
नेहा:( गाड़ी के पास आ जाते हैं और कहती) "आज गाड़ी में चल आऊंगी तुम बस आज आराम करो।"
विनय: "वाह मैडम यह तो नाइंसाफी है क्योंकि सालगिरह तो दोनों की है पर गाड़ी आप अकेले कैसे चलाओगे।"
नेहा:"फिर क्या करें दोनों दोनों कैसे चलाएं।"
विनय: "तुम ब्रेक दबाव और मैं ड्राइविंग करूंगा"
नेहा: (परेशानी में ) "नहीं नहीं कुछ गलत हो गया तो क्या करेंगे हम दोनों भी गाड़ी नहीं चलाएंगे आज हम ड्राइवर को लेकर जाएंगे।"
विनय: "हां अब तुमने कहा है तो करना ही पड़ेगा।"
नेहा: "चलो चलो हमें देर हो रहा है"
विनय: "सच सच बताओ तुम अगर मैं एक दिन घर देरी से आओ तो क्या करोगी?"
नेहा: "इंतजार करूंगी और क्या"
विनय:"मुझे डांटने का?"
नेहा: "नहीं बाबा"
विनय: "तो फिर क्या करोगी।"
नेहा: "तुम्हें पीटने का इंतजार करूंगी"
विनय: "नेहा मैंने तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं लाया।"
नेहा: "तुम झूठ बोल रहे हो।"
विनय: "सच में बस एक गिफ्ट लाया हूं"
नेहा: "विनय तुम मजाक करना नहीं छोड़ोगे ना"
विनय: "नहीं क्योंकि तुम्हारे साथ मजाक करके मुझे बहुत अच्छा लगता है।"
नेहा: "अच्छा तो ऐसा है।"
विनय: "यह देखो मंदिर आ गया"
नेहा: "हां हां आ गया"
विनय: "मैं तुम्हें अपनी गोदी में ले जाऊंगा नेहा।"
नेहा: "ठीक है।"
विनय: "तुम मेरी हर बात सुनती हो क्यों?"
नेहा: "विनय तुम मेरे सबसे अच्छे फ्रेंड हो और मेरे जीवन साथी हो सबसे बढ़कर बात यह है कि तुम मुझे समझते हो अच्छी तरह से मेरी हर छोटी सी बात को भी तुम याद रखते हो मैं तुम्हारे लिए इतना नहीं कर सकतीहूँ क्या।"
विनय: "अरे बाबा फिर से तुमने मेरी तारीफ करना शुरू कर दिया बस भी करो आप"
नेहा: "जब तुम मेरी तारीफ करते हो तो मैं रुक जाओ कहती हूं फिर भी तुम तारीफ करते ही रहते हो मैं भी करूंगी अब"
विनय: "मेरी नेहा तारीफ के लायक है इसलिए मैं करता हूं क्या तुम्हारा भी नहीं तारीफ के लायक है बिल्कुल नहीं है।"
नेहा: "मेरे विनय के बारे में कुछ मत बोलो तुम वह मेरी हर एक बात बिना कहे ही समझ लेता है पर तुम्हारी नेहा वैसी नहीं है उसको हर बात बतानी पड़ती है"
विनय: "मेरी नेहा के बारे में भी तुम कुछ मत कहो क्योंकि वह मुझे अच्छी तरह से समझना जानती है बहुत समझदारी से सब कुछ हैंडल करती है"
नेहा: (हंसते हुए कहती है) "अब बस भी करो हम दोनों आपस में लड़ लेंगे नहीं तो"
विनय: "फिर तुमने मेरी नेहा के बारे में कहा उसके बारे में मैं एक कुछ भी गलत नहीं सुन सकता हंसते हुए कहता है"
नेहा: "अब उतार भी दो मंदिर आ गया"
विनय: "देखो जब तुमसे बातें करता हूं तो मैं कितना वजन उठा रहा हूं यह भी बात मुझे पता नहीं"
नेहा: "बहुत ही नॉटी हो यार तुम"
विनय: "चलो अब भगवान की ओर ध्यान देते हैं।"
नेहा: "वाह भाई आज तो समझदारी की बात की जनाब ने"
विनय: "जब मैं मेरी नेहा के साथ रहता हूं तो समझदार बन जाता हूं।"
नेहा: "अच्छा तो ऐसी बात है"
विनय: "हां हां वह मेरी नेहा है इसलिए उसकी हर बात अच्छी ही रहती है"
नेहा: "चलो भी अभी छोड़ो मेरी तारीफ"
विनय: "हां हां हम दोनों एक दूसरे में ही उलझ गए हैं चलो अब भगवान की और प्रार्थना के लिए बढ़ते हैं
नेहा: "मैं भी यही कह रही हूं चलो"
विनय: "यहां तो बहुत भीड़ है"
नेहा: "हां अब कैसे"
विनय: "मेरी ने हम मेरे साथ हो तो भीड़ भी हार जाती है"
नेहा: "तू दिखाओ हटा के"
विनय: "हां हां दिखाऊंगा जरूर मेरी नेहा मेरे साथ है तो मैं कुछ भी कर सकता हूं"
नेहा: "मैंने तो यूं ही बोला था तुम कुछ भी मत करो हम लाइन से ही जाएंगे"
विनय: "मेरी नेहा की मर्जी जैसी हो वैसे ही करेंगे"
नेहा: "आजकल बहुत ही गुड बॉय बन रहे हो"
विनय: "हां भाई नेहा के साथ जो हूं"
नेहा और बिना लाइन में खड़े रहते हैं और लाइन खत्म हो जाती है और इन दोनों की बारी आती है वे दोनों भी मंदिर के अंदर भगवान के पास जाकर अपनी सालगिरह के मिठाई और कुछ वस्तुएं भगवान के पास रखते हैं तब पंडित जी हमसे कहते हैं कि आपके दिल में जो इच्छा है भगवान के सामने समर्पित करो भगवान पूरा करेगा
नेहा: "विनय सोचा कि क्या मांगोगे?"
विनय: हां सोच लिया पर तुम ने क्या सोचा?
'
नेहा: "भगवान को जो मांग रहे हैं वह बता नहीं सकते"
विनय: "ऐसा है क्या"
नेहा :"हां बाबा"
विनय: "भगवान अब मैं जो आपसे कह रहा हूं वह मेरे दिल से कह रहा हो वह नेहा को सुनाई ना दे क्योंकि वह गुस्सा करेगी।"
नेहा:"भगवान मैं जो आपको आज कहने वाली हूं वह सिर्फ आपको ही सुनाई दे मेरे बिना थके पहुंचना नहीं चाहिए नहीं तो वह नाराज हो जाएगा"
भगवान: 'यह कैसी परीक्षा हे मेरी दोनों की एक ही दुआ कर रहे हैं अब मैं क्या करूं किस की शुरुआत चलो क्या मांगते हैं यह भी देख लेता हूं पर मुझ पर मुश्किल ना आए इन दोनों की प्रार्थना से यही दुआ मैं भी कर लेता हूं पहले से ही चलो सुनते हैं इनकी दुआएं क्या है?"
विनय: "मेरी जिंदगी में आने वाली हर छोटी खुशी मेरी नेहा की ओर जाए और मेरी जिंदगी में जो भी अच्छा है वह मेरी नेहा के नसीब में जाए नेहा का हर वह दुख उसकी तरफ जाने से पहले मेरी और मुरझाए, उसको दुनिया की हर छोटी-छोटी खुशी मिले, कभी भी ऐसा मत होने देना कि मेरी नेहा अपने आप को दोषी माने और कभी दुखी नहीं होनी चाहिए। मेरा जो भी है केवल सुख वह उसे जाए और मेरे नसीब में जो दुख है और उस के नसीब में जो दुख है वह एक बनकर मेरे ही नसीब में आ जाए और मेरी सारी खुशी उसके नसीब में तू दे देना यही तुझ से मेरी प्रार्थना है उसे हमेशा खुश रखना।"
भगवान: "वाह बेटा वाह मैंने अभी तक ऐसी दुआ मांगने वाला कभी नहीं देखा बहुत नसीब है वह लड़की जिसे तू प्यार करता है तेरी दुआ को मैं कैसे इनकार कर सकता हूं।"
नेहा: "मेरी विनय की तरफ जाने वाली हर एक तकलीफ मेरी हो जाए। उस के नसीब में जो गम है वह मेरी नसीब में तू लिख दे। मेरी भाग्य में जो भी कुछ खुशी है उसके भाग्य में तू दे दे।मेरे हिस्से में जो भी तुमने अच्छा ही लिखी है वह उसके हिस्से में लिख दे और उसकी जिंदगी का हर वो गम मुझे दे दे जो तूने उस के नसीब में लिखा था है।उसकी हर एक ख्वाहिश पूरी कर दे चाहे मेरी ख्वाइश पूरी ना हो पाए तो भी। उसकी हर कामयाबी दुगनी कर दे मेरी कामयाबी भी उसे दे दे।उसे हमेशा हमेशा दुगनी खुशी दी उसकी आंखों में कभी आंसू नहीं आने चाहिए उसकी जिंदगी का हर दर्द तुम मुझे दे दे बस उसे तू यह वरदान दे दे।।"
भगवान: (आश्चर्यचकित होकर) "नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता, दो लोग कैसे एक ही दुआ मांग सकते हैं? अब मैं किस की दुआ पूरी करूं बल्कि इन दोनों ने एक ही दुआ मांग ली है ,अनजाने में इन्होंने एक दूसरे की खुशी ही मांग की है मैं तो अब परेशान हो गया हूं खुशियां किसे दूं और गम किसे दूं? क्योंकि दोनों की प्रार्थना भी मुझे स्वीकार करनी ही है पर दोनों ने एक दूसरे की खुशियां ही मांग ली है और एक दूसरे के गंभीर अब मैं क्या करूं अब मैं क्या करूं"
विनय: "नेहा मैंने तो मेरे लिए ही मांगा है।"
नेहा: "हां मैंने भी मेरे लिए ही मांगा है"
विनय: "मुझे लगता है भगवान परेशान हो गया होगा।"
नेहा: "हां हां क्यों नहीं होगा!"
विनय: "हम दोनों एक दूसरे के लिए ही मांगते हैं कभी भी इस बार भी हम दोनों ने ऐसा ही किया है हमेशा की तरह इस बार भी भगवान परेशान हो गया होगा की हम दोनों में से किसको गम दूं और किसको खुशी दूं।"
भगवान: "मैंने आज तक ऐसा चमत्कार नहीं देखा जो मुझे आश्चर्यचकित कर दे। इन दोनों की दुआ ने मुझे परेशान कर रखा है ,यह दोनों हर साल इन की सालगिरह पर मुझे परेशान करके ही जाते हैं क्योंकि यह दोनों एक दूसरे के लिए जीते हैं और एक दूसरे के लिए मरते हैं और दुआएं भी एक दूसरे के लिए ही करते हैं। इस कारण मुझे कुछ भी नहींसूझता कि मैं किसी दुख दूं और किसे खुशी दूं ,इसलिए मैं इन दोनों को क्या दूं यह मुझे भी नहीं पता चलता।इन का नसीब ही सब कुछ देगा क्योंकि इन दोनों की समझदारी जो एक दूसरे को समझना है एक चीज उनके भाग्य में खुशियां ही लातीहैं , समझदारी हर रिश्ते में होनी चाहिए एक दूसरे को समझना ही तो सच्चा रिश्ता है उसे ही हम प्यार कहते हैं। अगर हम हमारी वजह है अपने लोगों के बारे में उनकी खुशियों के बारे में सोचेंगे तो भगवान हमें कभी भी सुखी ही रखेगा क्योंकि हम अनजाने में एक दूसरे के लिए जो मांगते हैं वह हमारी अच्छाई में काम आता है क्योंकि हमारी खुशी हमारे अपने लोगों की खुशी में होती है इस कारण हम हमारे अपनों की खुशी मांगते हैं।अनजाने में ही सही हमें हमारी खुशी भी मिल जाती है अपनों की खुशी मांग कर क्योंकि आपने हैं तो हमारे सपने हैं।।"
