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Israram Panwar

Others

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Israram Panwar

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करुणा (लघुकथा)

करुणा (लघुकथा)

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ताऊजी का विवाह था, बारात बैलगाड़ियों पर बैठ कर गई ! वधुपक्ष ने काफी आवभगत की। विवाह की सभी रस्में पूरी हुई। पूरे दो दिन बाद विदाई दी गई। गली गाँव वाले सब विदाई की बेला पर हाज़िर हुए। कुल चार बैलगाड़ियों को रवाना किया गया। एक पर ताई संग औरतें बैठी थी। दूसरे पर घर के रिश्ते दार तीसरे पर सामने वाले युवाओं की मंडली। चौथी बैलगाड़ी पिताजी की थी जोड़ी भी नई थी, पिताजी ने कहा इस पर ज्यादा मत बैठो तो भी सबसे ज्यादा भीड़ थी। पिताजी के आँखों से आँसू टपकते देख ,एक बूढ़ा बोला भाई की शादी करके घर जा रहे, फिर ये आँसू क्यों?

पिताजी ने कहा मेरे बैल छोटे हैं इन से इतना वजन सहन नहीं होगा। करुणा, मिसाल सुन सब हतप्रभ थे।


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