कर्ज फर्ज का
कर्ज फर्ज का
व्यक्तियों के लिए दूसरों की पीड़ा के प्रति सहानुभूति न रखना इतना कठिन क्या हो गया है? कामकाजी लोगों को दूसरों के प्रति जिम्मेदारी का एहसास क्यों नहीं होता है? वे सेवा की इच्छा रखने के बजाय दूसरों के प्रति उदासीन लगते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि मानव में मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है। शायद इंसानों ने इंसान की तरह काम करने की समझ खो दी है। शायद वे इतने अधिक आत्म-केंद्रित हो गए हैं कि उनके मन में दूसरों के प्रति करुणा के लिए जगह नहीं है।
एक क्लर्क द्वारा अपने कस्टमर की समस्या को नजरंदाज कर उसे कल आने के लिए कह देना आम बात है।
जबकि एक कस्टमर के प्रति सहानुभूति का भाव रखकर उसकी समस्या का निदान कर देना मानवीय।
दिसम्बर का आखिरी महीना चल रहा था। दिल्ली में कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी। धुंध ने तो वैसे हीं वातावरण को जहरीला बना रखा था।
ठण्ड के कारण सड़कें और भी सुन सान हो चली थी। इस पर कोरोना के ओमिक्रोन वैरिएंट ने दिल्ली में धीरे- धीरे तांडव मचाना शुरू कर दिया था।
शरीर पर गर्म कपड़े और मुंह पर मास्क लगाकर उत्सव घर से बाहर निकल पड़ा था। मास्क का एक फायदा तो कोरोना से सुरक्षा तो थी हीं तो दूसरी तरफ दिल्ली के जहरीले वातावरण से स्वयं का बचाव भी था।
वो अपनी माँ के एल. आई. सी. पालिसी का प्रीमियम भरने के गया हुआ था। एल. आई. सी. ऑफिस पहुँचने पर ज्ञात हुआ दिल्ली सरकार ने हर सप्ताह क्रमानुसार ऑफिस खोलने का आदेश दे रखा था। उस दिन एल. आई. सी. ऑफिस बंद था। लिहाजा उत्सव को मन मसोस कर लौटना पड़ा।
अगले दिन उत्सव फिर एल. आई. सी. ऑफिस पहुँचा। एक- एक दिन बीच देकर खोलने की नई नियमावली के कारण एल. आई. सी. काउंटर पर काफी भीड़ हो गई थी। लगभग एक घंटे लाईन में लगे रहने के बाद उसका नम्बर आया।
उस लम्बे इन्तजार के बाद उसका अपना नम्बर आने पर अति प्रसन्नता हो रही थी। परन्तु उसकी ये प्रसन्नता क्षणिक हीं साबित हुई जब ये ज्ञात हुआ कि उसकी माँ का एल. आई. सी. प्रीमियम पिछली साल का भी बाकी था। वह तो केवल इसी साल के प्रीमियम का चेक लेकर पहुँचा हुआ था।
उसने एल. आई. सी. क्लर्क से काफी विनती थी कि वह जो चेक लेकर आया है उसे स्वीकार कर ले, परन्तु वह क्लर्क टस से मस नहीं हुआ।
उसने कहा कि जबतक उत्सव पिछली साल का भी चेक लेकर नहीं आता, उसका कंप्यूटर उस चेक को लेगा हीं नहीं। नतीजतन उस दिन भी उत्सव को मन मसोसकर लौटना पड़ा।
एक दिन के इन्तजार के बाद उत्सव फिर एल. आई. सी. ऑफिस पिछले साल के प्रीमियम का भी चेक लेकर प्रस्तुत हुआ। पिछली बार काफी लम्बी लाइन थी, लिहाजा इस बार वह काफी पहले पहुँच गया था। एल. आई. सी. ऑफिस दस बजे खुलता था, परन्तु वह सुबह नौ बजे हीं पहुँच गया।
जब वह काउंटर पर जाकर खड़ा हुआ तो गेट कीपर उसे टोकने लगा। कोरोना की गाईड लाइन जारी हो चुकी थी। समय से पहले कोई भीड़ नहीं लगा सकता था। परन्तु उत्सव वहाँ से हटा नहीं। गेट कीपर की कड़कती हुई आवाज ने शायद उसके अहंकार को चोट पहुँचा दिया था।
उत्सव को वहाँ से नहीं हटता देखकर गेट कीपर बोला, पिछली बार काफी भीड़ हो गई थी। लोग समय से पहले आकर काउंटर पर भीड़ लगा दे रहे थे, फिर ऑफिस एक- एक दिन बंद करने का फायदा क्या?
परन्तु उत्सव तो काउंटर पर अड़ गया। उत्सव ने पैतरा फेंकते हुए कहा, इतनी सुबह ठंडी में कहा जाये? एक तो इतनी ठन्डी और उसपर से सारी दुकानें बंद। वह जाये भी तो जाये- जाये किधर?
परन्तु गेट कीपर उसे बार- बार समझाने की कोशिश करता। गेट कीपर ने बताया कि कोरोना से लड़ने की जिम्मेदारी सबकी है। यदि इस तरह सारे लोग जिद करने लगे तो फिर कोरोना का निपटारा होगा कैसे?
धीरे धीरे उत्सव को गेट कीपर की बात सही लगने लगी। अहंकार वश उसका काउंटर पर खड़े हो जाना अनुचित तो था ही। नतीजन काउंटर से हटकर उत्सव वहीं पास के एक पार्क में एकांत जगह देखर घूमने लगा।
उत्सव ने गेट कीपर की बात मानी थी तो उसने भी उत्सव की सुविधा का ख्याल रखा। काउंटर खुलने पर उसने उत्सव को सबसे आगे कर दिया। लगभग एक सप्ताह की दौड़ भाग ने उत्सव को परेशान कर रखा था।
आज उसे उम्मीद थी कि उसकी पीड़ा का निदान हो जायेगा। तिस पर से लाइन में सबसे आगे होने पर काम के जल्दी पूरा होने का भरोसा भी।
जब एल. आई. सी. क्लर्क को उसने दो चेक पकड़ाया तो उसने कहा कि कंप्यूटर दो चेक एक बार में नहीं ले सकता। लिहाजा उत्सव को फिर कल फिर आने को कहा। उत्सव ने उसे कहा कि क्लर्क के सलाह के अनुसार ही वह पूरी रकम के साथ दो चेक लाया है।
परन्तु एल. आई. सी. क्लर्क बोला कि या तो उसे समझाने में गलती हो गई या उत्सव को समझने में। कंप्यूटर दो चेक को नहीं ले सकता। उत्सव ने क्लर्क को लाख अपनी समस्या को समझाने की कोशिश की, परन्तु क्लर्क ने हाथ खड़े कर दिए।
उसकी लाइन में खड़े लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। नतीजतन उत्सव को लाइन से हटना पड़ा। वह झुंझलाता हुआ आगे बढ़ चला। तभी गेट कीपर ने उसकी तरफ इशारा किया और उसे दूसरे एल. आई. सी. ऑफिसर के पास ले गया।
शायद एल. आई. सी. ऑफिसर को वह सारी बात पहले ही बता चुका था। एल. आई. सी. ऑफिसर ने मैन्युअल एंट्री करके उत्सव को रिसीप्ट पकड़ा थी।
उत्सव कृतज्ञता भरी निगाहों से गेट कीपर को देख रहा था। उत्सव गेट कीपर को थैंक यू कहने ही वाला था कि इशारे से उसने उत्सव ऐसा करने से रोक दिया।
गेट कीपर ने उत्सव के भाव को समझते हुए कहा, साहब मैं आपकी परेशानी को समझ सकता हूँ। एक क्लर्क के लिए कस्टमर को लौटा देना तो आम- सी बात है, परन्तु एक कस्टमर की पीड़ा को समझना भी तो जरूरी है।
इस एल. आई. सी. प्रीमियम के चक्कर में मैं आपको पिछले दो तीन दिन से चक्कर लगाता देख रहा हूँ। आपको रोज- रोज सुबह जल्दी निकलना पड़ रहा होगा। आप रोज- रोज ऑफिस लेट पहुँच रहे होंगे। ये काउंटर क्लर्क तो लोगों को वैसे ही परेशान करता रहा है।
एक गेट कीपर चाहे लाख सही बात बोले, लोग नहीं मानते। आप तो मेरी बात समझ भी गए और मान भी गए। आपका कुछ तो कर्ज है मुझपर। वैसे भी मैंने तो अपना फर्ज ठीक वैसे ही निभाया है, जैसे कि आपने काउंटर से हटकर।