Neha Prasad

Others

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किनारे पे खड़े होके..

किनारे पे खड़े होके..

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‘तुम कहते हो तुम्हें समुंदर बहुत पसंद है

पर तुम्हें तो मैंने किनारे पे खड़े देखा है

बसेरा कही और मोहब्बत किसी और से

चाहत में ये कुछ बेवफ़ाई नही हुई?’


ये एक तरफ़ा प्यार के तरह है

समुंदर मेरी चाहत है और मै उसका चाहने वाला 

जितनी अंदर जाऊँगा खुद को डूबता हुआ पाऊँगा

उससे बेहतर दूर किनारे से कद्र कर लेता हूँ

और हाँ !

एक तरफ़ा प्यार को बेवफ़ाई का नाम नही देते मोहतरमा!


‘पर डूबने के डर से बेहतर तो हम तैरना सीख जाए

क्या पता वो चाहत तुम्हारी माशूका बन जाए?’


ये समुंदर जितनी शांत ऊपर से दिखता है

अंदर उतनी ही ऊफ़ान भरता है

वाक़िफ़ तो होंगे इससे?

फिर भी एक कोशिश होती है और

तैरते तैरते इंसान एक पल थक जाता है

और वो थका हुआ शख्स हूँ मै!


मेरी चाहत में उसको ग़लत समझना सही तो नही

चाहे जितनी भी कोशिश कर लूं

एक बारी तो मै भी बह जाऊँगा

और दोष ना होते हुए भी

मै दोषी उसे ही ठहराऊँगा...


तो मोहतरमा! बेहतर हम किनारे पे खड़े 

उसके लहरो को पाओ से टकराकर जाने दे

और इसी प्यार से प्यार कर ले,

इश्क़ एक तरफ़ा वैसे सही तो नही

पर इस एहसास को संजो लूँ ग़र 

तो ये ग़लत भी तो नही...! 



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