खेल (20-20)
खेल (20-20)
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"माँ आज क्या तारीख है ?" सुबह माँ जब कमरे में आई , पढ़ाई करते वक्त अचानक से पूछा तो माँ ने बताया 13 मार्च 2020 है । यह सुनते ही 13 मार्च 2018में मेरे साथ घटी एक घटना याद आती है और अचानक से मेरे हाथ से मेरी कलम छुट कर जमीन पर जा गिरी । माँ वहीं खड़ी मुझे देख रही थी । समझ तो तब माँ भी गयी थी की 2 साल पुरानी बात सोच रही हूँ जब मेरे तन से अचानक जब पसीने टपकने लगे और मैने पुस्तक अचानक बन्द कर दी मगर माँ कुछ बोली नहीं । पता नहीं क्यों उस वक्त मै खुद को रोक नहीं पाई और कुर्सी छोड़ खड़ी हुई और माँ के गले लग कर फूट फूट कर रोने लगी । माँ हमे चुप करने की कोशिश में लगी थी मगर हम चाह कर भी खुद को संभाल नही पा रहे थे । 1 जनवरी 2020 में लिया संकल्प की हम इस वर्ष पुरानी बात कर के नही रोयेंगे और ना ही किसी भी कारण अपनी पढ़ाई के सिवा किसी दूसरी बात पर ध्यान देंगे अब टूट गया था ।मैं ने खुद से वादा किया था 2021 तक एक सरकारी नौकरी की परीक्षा पास करनी है जब तक ये नहीं होगी तब तक केवल और केवल अपने पुस्तकों को ही साथी बनाना है । अब भी खुद को यही बोले जा रही थी -"मुझे अभी पढ़ाई करनी है क्यों पुरानी बातों को याद कर रही हूँ मैं …" मगर ये सम्भव ही नहीं था कि मैं इस हाल में पढ़ाई पर ध्यान लगा पाऊं । तब माँ ने कहा एक मिनट बैठो मैं अभी आई और ये कह कर माँ अपने कमरे में गयी और मेरा फ़ोन उठा कर ले आई जो मै 1 जनवरी को माँ को सौप दिया था ये कह कर की इसको सम्भाल कर रख दो मुझे तब वापस देना जब मै परीक्षा पास कर लू । माँ ने मगर अभी फ़ोन मेरे हाथ में दिया और बोली -"ये ले कुछ देर इसको चला मन बदलेगा , थोडा अच्छा महसस होगा फिर पढ़ना ।"
मै भी यही उचित समझा । वैसे भी मुझे विपिन, माँ और सभी भाईयों की बहुत याद आ रही थी और ये भी टेंशन मुझे रहती थी कि विपिन माँ और सारे भाई कॉल लगा लगा परेशान हो रहे होंगे क्योकि मै कॉलिंग भी बन्द कर रखी है फ़ोन की और डेटा तो ऑफ है ही जिसकी वजह से कोई व्हाट्सएप्प पर डबल टिक देख ये तसल्ली नहीं कर सकते की उनकी रश्मि ठीक है ।तब मैं ने सोचा कि आज एक बार सबसे बात कर लेती हूँ । एक दिन का रेस्ट ले लेती हूँ वैसे भी आज पढ़ाई न हो पाएगी मुझसे । मैं ने यही सोच कर फ़ोन हाथ में लिया । जैसे ही फ़ोन मेरे हाथ में आया मैं ये भूल गयी की कुछ मिनट पहले किसी वजह से बेहद उदास थी , अब बस जल्दी थी सबसे बात करने की । मै फ़ोन की कॉलिंग और डेटा ऑन किया और सबसे पहले व्हाट्सएप्प खोला और जैसे ही मै व्हाट्सएप्प खोला मेरी आँखे फिर से नम हो गयीं वजह कुछ और नहीं सिर्फ इतनी सी थी कि सभी भाईयों और विपिन माँ के मैसेज आये थे और अजीब बात की जनवरी के पहले हफ्ते के ही मैसेज थे । किसी के दो मैसेज तो किसी के चार । सभी के मैसेज में यही लिखा था कई दिन से कहां गायब हो रश्मि ? कहीं भी एक्टिव नही दिख रही ।
इन मैसेज से साफ़ पता चल रहा था कि उन सब को ये महसूस हो रहा था कि मै एक्टिव नही हूँ । शायद मेरी थोड़ी कमी भी खल रही थी उन्हें क्योंकि आदत जो थी मेरी रोज सबसे थोड़ी ही सही बात करने की । तभी दिमाग में एक सवाल आया की क्या सब मुझे एक हफ्ते में ही भूल गए थे जनवरी के पहले हफ्ते के बाद किसी का भी मैसेज नहीं । मगर ये बात मन मानने को तैयार नहीं था । तभी मैं ने सोचा सब को लगा होगा कि मै व्हाट्सऐप हटा दिया और अभी फेसबुक भी तो चेक नंही की शायद सब के मैसेज फेसबुक पर आयें हों इस के बाद । बस इसी लिए मैं जल्दी से अपनी फेसबुक खोली मगर अफ़सोस वहाँ भी किसी का मेसेज नहीं । ऎसा थोड़ी होता है कि मेरे भाइयों और माँ ने मुझे भुला दिया हो और मेरे बारे में जानने की कोशिश भी न की । बस इसी उम्मीद से मै मिस्ड कॉल लिस्ट खोली तभी वहाँ देखा की कोई भी कॉल नहीं था । तब पता चला किसी के लिए हम कोई ख़ास नहीं थे वो बात अलग है विपिन माँ और सभी भाई हमको खास कहा करते थे । आज वो जो प्यारी सी भाईयों के नाम की लिस्ट थी जिसमें बहुत प्यारे प्यारे भाईयों के नाम थे जैसे - गोपाल भईया , गज्जू भईया , अज्जु , रिजवान , भूपेंद्र , अलेक्स ,संदीप, गुड्डू सब गायब हैं । शायद कहीं उनकी धुंधली यादो में जिन्दा हों हम मगर सब भूल चुके हैं हमें अब । हाँ ,बहुत दुःख हुआ अचानक सबको गायब देख कर मगर 2020 में सब 20- 20 खेल गए तो गलत भी क्या हुआ ? खेर अब खुद को सम्भालना था क्योंकि 1 जनवरी 2020 में संकल्प जो लिया था पढ़ाई पर ध्यान देंगे बस इस लिए खुद को समझाना उचित समझा कि जिंदगी है हजार रंग है इसके और सच ये भी है हर रंग को स्वीकार कर जीना ही एक दिलदार मनुष्य की पहचान है ।
हाँ एक बार ऐसा लगा था की 2020 ने मेरे सारे अपने छिन लिए मगर अब समझ आया 2020 ने 1 जनवरी से ही हमे ये बता दिया था की मनुष्य के लिए बेसक सब अपने हों मगर आप किसी के अपने हैं ये उम्मीद किसी से न रखकर अपने कर्तव्य को करने में ही भलाई है । कभी किसी से कोई उम्मीद न रख कर सभी की उम्मीद बनकर जीने की कोशिश अगर एक मनुष्य करे तो शायद वो जीवन में ज्यादा कुछ नहीं मगर एक मनुष्य जीवन पाकर एक मनुष्य होने के कर्तव्य पूर्ण करके अपना इस धरती पर जीवन पाने का मकसद पूर्ण कर जाता है।
खुद के लिए दुनिया से कुछ चाहोगे तो ये तुम्हारा स्वार्थ है मगर दुनिया की ख़ुशी के लिए अपने कदम बढ़ाओगे और उनकी सहायता करोगे तो तुम्हारा मनुष्य जीवन पाना सफल होगा । जीवन में
घटित कोई भी घटना महज घटना नहीं होती क्योंकि कोई भी घटना केवल और केवल आपको तकलीफ से ज्यादा जीने के समझ और बहुत सारी ज्ञान भरी बातें दे जाती हैं ।
कभी किसी को उम्मीद मत बनाओ बस हजारो की उम्मीद बन जाओ , यक़ीन मानो सबकी उम्मीद बनकर उनकी उम्मीद को पूरा कर के जो ख़ुशी मिलती है वो कभी किसी को अपनी उम्मीद बना कर नहीं मिलती ।