Prabodh Govil

Children Stories

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Prabodh Govil

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जंगल चला शहर होने -8

जंगल चला शहर होने -8

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चींटी केस हार गई। न्यायमूर्ति शार्क ने अपने फ़ैसले में कहा कि चींटी के हिप्पो पर लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं। हिप्पो ने अध्यापकों की भर्ती में कोई धांधली नहीं की है बल्कि वास्तव में तो कहानी कुछ और है।

सबसे पहले जंगल में स्कूल खोलने का प्रयास कभी ख़ुद चींटी ने ही किया था। परंतु न तो उसने शासन से इसकी कोई अनुमति ली और न ही भवन का नक्शा पास कराया। गुपचुप तरीके से चुपचाप उसने अपने कुछ मित्रों की मदद से विद्यालय भवन बना भी लिया। परंतु जब भवन तैयार हुआ और उसमें विद्यार्थियों का प्रवेश शुरू किया तो पता चला कि स्कूल के कक्ष बहुत ही छोटे हैं। अधिकांश विद्यार्थी तो स्कूल के गेट में से भीतर ही नहीं घुस सके। ऐसे में छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा और सबने उस स्कूल का बहिष्कार कर दिया।

जब चींटी ने हिप्पो जी का शानदार स्कूल देखा तो उसने ईर्ष्या के कारण उन पर मिथ्या आरोप मढ़कर उन्हें कोर्ट में घसीट लिया।चींटी पर भारी जुर्माना भी लगाया गया और उसे माफ़ी भी मांगनी पड़ी।

केस जीतने पर हिप्पो जी ने स्कूल में ही एक शानदार पार्टी रखी जिसमें सभी को पिज़्ज़ा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइज़, नान, पनीर ग्रेवी, जलेबी, गुलाब जामुन परोसे गए। सभी विद्यार्थियों को जाते समय एक- एक नाचोज़ का पैकेट भी दिया गया।

पार्टी के बाद रात को जब हिप्पो जी अपने घर पहुंचे तो उन्हें याद आया कि पार्टी में उनका ख़ास दोस्त जिराफ़ तो आया ही नहीं।

ओह, उनसे भारी भूल हो गई। न जाने उसे निमंत्रण मिला या नहीं मिल सका। उन्हें कम से कम पता तो करना चाहिए था। पर काम की व्यतता में उन्हें ये ख्याल ही नहीं रहा कि जिराफ़ के न आने का कारण तो जानें। ख़ैर! अब क्या हो सकता था। कल देखेंगे, ऐसा सोच कर उन्होंने सोने की कोशिश की। मगर उन्हें नींद नहीं आई।

उन्हें महसूस हुआ कि जीवन में मित्रों का बहुत महत्व है। लाखों करोड़ों की भीड़ में कोई मित्र मिल जाना एक नसीब की ही बात है। अच्छे और सच्चे मित्रों को हर हाल में सहेज कर रखना ही चाहिए।सोचते- सोचते हिप्पो जी की न जाने कब आंख लगी।

अगले दिन स्कूल पहुंचते ही हिप्पो जी ने जिराफ़ को फ़ोन किया। पता चला कि दो- तीन दिन से तबीयत ठीक नहीं होने के कारण वह कल पार्टी में नहीं आ पाया।हिप्पो जी ने जिराफ़ को अगले दिन स्कूल में आने का न्यौता दे डाला। उन्होंने कहा - हम तुम्हारे लिए कोई ख़ास व्यवस्था नहीं करेंगे, केवल हमारे विद्यार्थी जो अपना टिफिन लाते हैं उन्हीं में से थोड़ा- थोड़ा हम दोनों शेयर करके खायेंगे, आ जाओ।


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