जीवन का सार
जीवन का सार
विमल महज चार साल का था बड़ा ही सरल, दयालु, शांत स्वभाव का था। इतनी छोटी सी उम्र में भी उसके अंदर सही ग़लत का परिचय करना स्वाभाविक रुप से मानों कूट -कूट कर भरा हो साथ ही दयालुता उसके अंतरात्मा में मानों वास कर रही हो। विमल अक्सर लोगों को कुल्हाड़ी लेकर जंगलों की ओर जाते हुए देखा करता था। साथ ही दोपहर के वक्त उन लोगों के सिरों पर सूखी लकड़ियां के साथ हरे भरे पेड़ों के तरह तरह के भागों को ले जाते देखा करता था, वह रोज सुबह होते ही अपनें द्वार पर कुछ बच्चों के साथ खेला करता था मगर वह खेलने के साथ साथ अन्य कार्यों को भी परख लेता था मगर अभी वह शायद अनभिज्ञ था, विमल के दादा दादी भी उसे तरह तरह की कहानियां रात्रि में सुनाया करती थी , जिसका प्रभाव भी उसके अंदर पड़ा, साथ ही उन्हें अम्ल करने की पूरी कोशिश भी करता था, विमल ने एक दिन दादा जी से पूंछा दादा जी ये लोग सुबह-सुबह कुल्हाड़ी लेकर जंगलों की ओर जाते हैं फिर वहां से लकड़ी लाते हैं,
हां बेटा आप सही कह रहे हैं ये जंगलों से लकड़ी लाते हैं साथ उनके हाथों में जो कुल्हाड़ी होती है उसी से तो काट कर लकड़ी लाते हैं।
विमल के दादा जी जंगलों में कभी कभार ही जाते थे, विमल दादा जी को सुबह से बहुत कुछ खिलाया दादा जी गद् गद् हो उठे बेटा आज इतना स्वागत किसलिए विमल हंसते हुए दादा जी आज हम भी आपके साथ जंगल घूमने चलेंगे। दादी जी एक दिन बता रही थी की जंगल में स्वादिष्ट करौंदे, बेर झाड़ियों में मुकैए के फल इइन दिनों होते हैं जिन्हें खानें में मजा ही कुछ और है साथ वहां का वातावरण बहुत शांत होता है, तरह तरह के जीव जंतु देखने को मिलते हैं। तो ले चलेंगे न दादा जी हंसकर ओह इसके लिए सुबह से इतना स्वागत में लगे हैं हमारे छोटे उस्ताद बिल्कुल ले चलेंगे हम आपको दादा जी के साथ जंगलों की सैर में चल पड़े तरह तरह के स्वादिष्ट फलों को चखकर मजे ले रहे थे वहां देखा की लोग कुल्हाड़ी से हरे भरे पेड़ों को काट रहे थे तो कहीं तरह तरह के जानवर छालांग लगा रहे थे तरह तरह के जानवरों व पक्षियों कि आवाजें आ रही थी जिन्हें देखकर विमल बहुत खुश हुआ। दोपहर का वक्त होने को था। विमल दादा जी के साथ टहलते हुए अपनें घर आ गये। जंगलों की सैर सपाटे का सारा आनंद दादी जी के पलक झपकते ही रख दिया। साथ ही स्वादिष्ट बेर एक दोनें में रखकर दादी जी को लाया था लो दादी इसे खाओ बहुत मीठे है। विमल काफी बड़ा समझदार हो गया था उसके दादा जी गांव की ही स्कूल में प्रवेश करवा दिये। विमल शुरू आती तौर स्कूल में बहुत सुस्त व सभी से अनभिज्ञ था।
पर धीरे-धीरे से वह नियमित रुप से विन कहे ही घर से अपनी तैयारी कर स्कूल चला जाता था। वह नियमित रूप से हाजिरी में उपस्थित होता था और स्कूल की पूरी छुट्टी के बाद ही घर वापस आता था साथ ही स्कूल के बनाए गये सभी नियमों का पालन करता था। एक दिन गुरु जी पेड़ों के विषय पर चर्चा कर रहे थे। बच्चों को ध्यान में लाने के लिए तरह तरह के उदाहरण के तौर पर सिखाते थे। पेड़ों से हमें हवा, छाया, फल, जड़ी बूटियां, जलाऊ लकडियां आदि प्राप्त होती है, बच्चों हम सब जो सांस लेते हैं सब इन्हीं पेड़ों से ही हमें प्राप्त होता है, पेड़ों में भी जान होती है जिन्हें हमें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए अगर हम इन्हें सम्मान देंगे तो हमको भी ये सम्मान देगे, जैसे कै तैसा विमल आज की चर्चा पर भली-भांति परिचित हो चुका था, दादा जी के साथ जंगलों की ओर दुसरे दिन जाता है पास ही पर एक पेड़ पर कुल्हाड़ी चल रही थी बच्चा वहां पहुंचता है और गुरु के उपदेशों को उन लोगों को बता रहा था मगर अभी भी कोई मानने को तैयार नहीं था विमल को यह रवैए देखते देखते साल भर हो गये अब वह जंगल जंगल नहीं मानों बीहड़ हो चुका था पहले जैसी सुख समृद्धि वातावरण सब कुछ मिट्टी की भांति हो चुकी थी इस छोर से उस छोर तक गांव दिखाई दे रहे थे जंगलों के बीच खेत तैयार हो चुके थे। घर की बिजली के जाने के बाद विमल काफी हाताश होने लगा उसे गर्मी कतई बर्दाश्त नहीं होता था घर के पास ही लगे वृक्ष के पास बैठकर आराम फरमा रहा था काफी शांति मिली, उसकी हर एक चैनों हवा उसे मिली उसके अंदर से एक प्रश्न उभरकर सामने आया की एक पेड़ से मुझे आज इतनी खुशी मिल रही है फिर जंगलों में लगे असंख्य पेड़ जो आज कट चुके हैं वो कितनी खुशियां न देते रहे होंगे, हर तरफ बेचैनियां, किल्लतें, नाना प्रकार के मशक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, हवा जहरीली हो चुकी है। काफी विषयों की गहराई पर चिंतन करके मन में संकल्प कर लिया की इस जीवन में सभी का होना अतिआवश्यक है, विमल ने दादा जी से सलाह लिया और अपनें संकल्प प्रस्ताव को उनके पास रखा कि मै भी वृक्ष लगाकर हराभरा जंगल को पुनः देखना चाहता हूं, साथ ही सभी से वृक्षों को न काटने एवं वृक्षों का रोपण करनें के लिए हाथ जोड़कर आग्रह करूंगा वृक्षों के जीवन से ही हमारा सम्पूर्ण जीव जंतु का जीवन है यही तो है जीवन का सार । दादा जी यह प्रस्ताव सुन कर प्रफुल्लित होकर उसे अपने सीने से लगा लेते हैं।
धीरे-धीरे से उसके विषयों का सारा भावार्थ ग्रामीणों के जन जन तक पहुंची और एक दूसरे ने एक दूसरे को इस अनुभव को शेयर किए और सुकून की जिन्दगी जी रहे हैं।
सार-जीवन में दूसरों को उपदेश देने से पहले उपदेशों का सार स्वयं में अमल करना चाहिए, निश्चित ही आज नासमझ वाले व्यक्ति कल आपकी बातें मानेंगे साथ ही अमल करेंगे।