Akhilesh Kumar

5.0  

Akhilesh Kumar

ईमानदारी का फल

ईमानदारी का फल

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आज फिर दादी माँ, रामकिशोर को सुना रही थी - फिर अकेले खेतों पर जा रहा है काम करने।

अरे तेरे दो दो बेटे हैं उनको भी कभी कभी लेकर जाया कर खेतों पर, कुछ खेती बाड़ी इन्हें भी पता होनी चाहिए। तूने तो बस इनके हाथो में किताब थमा दी है जैसे ये किताबें ही इनका पेट भरेगींI पड़ोस के गोपाल को देख पांचों बेटे जाते हैं उसके साथ खेतों पर काम करने और गोपाल आराम से बैठा रहता है खेतों पर।

अरे इनकी अब उम्र भी है काम करने कि कुछ तो पता होना चाहिए इन्हें अपने खेतों के बारे में।

दादी माँ बोले जा रही थी और घर के सब सदस्य उनकी बातों को सुन रहे थे। लेकिन कोई भी दादी माँ को टोकने की हिम्मत नहीं कर रहा था। अपने बेटे रामकिशोर को खेतों पर यूँ अकेले अकेले काम काम करना उन्हें अच्छा नहीं लगता था।

सोचती है कि दो दो पोते है अगर अपने पिता का काम में हाथ बटायेंगे तो पिता को भी कुछ आराम मिलेगा। माँ है न इसलिए पुत्र के प्रति प्रेम तो उमड़ेगा ही। माँ को ऐसे बोलते देख रामकिशोर उनके पास जाता है और उन्हें चारपाई पर बैठाता है और कहता है कि-

देख माँ अभी तो मुझे इनके हाथ बटाने कि जरुरत नहीं है। थोड़ा बहुत काम तो होता ही है, वो मैं अकेले कर लेता हूँ और अभी तो इन बच्चों की पढ़ने की उम्र है। अभी इन्हें पढ़ने दो।

गोपाल ने पढ़ने की उम्र में ही बच्चों को घर के काम में लगा दिया इसलिए आज उसके पांचों बेटों में कोई भी दसवीं पास नहीं कर सका और हमारे मोहित को देखो दसवीं में स्कूल टॉप किया था और अब 12वीं में भी बहुत अच्छे अंक लेकर आएगा। इसके मास्टर साहब कह रहे थे कि आपके दोनों बेटे पढ़ने में बहुत अच्छे है इनकी पढ़ाई मत रोकना।

दादी माँ - अरे उस मास्टर को काम ही क्या है ?

रामकिशोर - नहीं माँ ऐसे नहीं कहते हैं हमारे बच्चों को पढ़ाते हैं वो और हमारे बच्चों का भविष्य बना रहे हैं दादी माँ - ठीक है, ठीक है जैसा तुझे अच्छा लगे वैसा कर I मेरी सुनता कब है ?

रामकिशोर (हँसते हुए) – अरे माँ अब लो चाय पियो (रामकिशोर कि पत्नी सुमन, रामकिशोर को चाय देती है)

(छोटा सा परिवार है रामकिशोर का – दो बच्चे मोहित और रोहित, पत्नी सुमन और रामकिशोर की माँ। खेती भी ज्यादा नहीं है पर घर के खर्च चलाने लायक रामकिशोर कमा लेता है उस खेती से लेकिन अपने बच्चों की पढ़ाई के मामले में कभी लापरवाही नहीं करता है। बच्चे भी पढ़ाई पूरा मन लगाकर करते हैं। मोहित इस बार 12वीं में है और रोहित दसवीं में।

रामकिशोर का ये ही सपना है कि बच्चे अच्छे से पढ़ लिख जाये और अच्छी सी नौकरी करें और बुढ़ापे में उसका सहारा बने। माँ को चाय देकर रामकिशोर अपने खेतों पर चला जाता है और बच्चे अपने–अपने स्कूल चले जाते हैं।

समय धीरे धीरे गुजरने लगता है और बच्चो की परीक्षाएं चलने लगती है। उम्मीद के अनुरूप दोनों अच्छे नम्बरों से पास होते हैं और गाँव में सब लोग रामकिशोर और उसके बच्चों की तारीफ करते हैं। अपने बच्चों की तारीफ सुनकर रामकिशोर और उसके परिवार की ख़ुशी का ठिकाना न था। अब रामकिशोर दोनों बच्चो का प्रवेश कराता है मोहित को कॉलेज में प्रवेश कराता है और रोहित को उसी स्कूल में जिससे मोहित उत्तीर्ण हुआ है।

जैसे-जैसे बच्चे बड़े हो रहे थे तो उनके खर्च भी बढ़ रहे थे और कमाई का साधन केवल खेती थी लेकिन रामकिशोर कभी अपने बच्चों को ये एहसास नहीं होने देता है कि पैसो की तंगी है लेकिन मोहित इस बात को समझता था। एक दो बार उसने कहा भी कि वह कुछ बच्चों को टयूशन पढ़ा दे तो रामकिशोर उसे मना कर देता था कि इससे तुम्हारी पढ़ाई प्रभावित होगी।

रामकिशोर दिन भर कड़ी मेहनत करता जिससे अच्छी फसल हो और उसके परिवार को कोई परेशानी न हो। जितनी मेहनत रामकशोर अपने खेतों में करता बच्चे भी पढाई में उतनी ही मेहनत करते जिससे प्रत्येक वर्ष दोनों बच्चे अच्छे अंको से पास होते। दोनों बच्चे इस बात को अच्छे से समझते थे कि हमारे अच्छे अंक हमारे माता पिता को असीम खुशी प्रदान करते हैं इसलिए वे अपनी मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ते थे और प्रत्येक वर्ष अच्छे अंक प्राप्त करते।

अब मोहित बी.एस.सी. के अंतिम वर्ष में तथा रोहित भी कॉलेज में आ चुका था। आज गाँव में चुनाव था। वर्तमान एम.एल.ए. दीनानाथ के समर्थक लोगों को वोट डालने के लिए कह रहे थे लेकिन गाँव वाले उनकी बातों पर ध्यान न देकर कह रहे थे कि हमें वोट डालकर क्या मिलेगा ? इतनी देर में हम अपने खेतों पर बहुत काम कर लेंगे I

हमें तो वोट डालने के बाद भी खेतों पर ही काम करना है तो मोहित उन लोगों को समझाता है और कहता है कि वोट हमारा अधिकार है हमें इसका प्रयोग जरुर करना चाहिए। अगर हम वोट नहीं डालेंगे तो हो सकता है कि कोई गलत व्यक्ति चुनकर आ जाये जिससे हमारे क्षेत्र का विकास रुक जाता है। पहले हम अपने खेतों पर कच्चे रास्ते से जाते हैं और बहुत परेशानियों का सामना करते हैं लेकिन अब पक्की सड़क होने से बहुत आसानी हो गयी है। मोहित की बातें लोगों के मन में घर कर गयी और उन सबने पहले वोट डालने का निर्णय लिया।

ये सब देखकर दीनानाथ के समर्थक मोहित से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने दीनानाथ को जाकर सारी घटना सुनाई।

दीनानाथ ने कहा - आज तो हम बहुत व्यस्त है कल उस लड़के को यहाँ लेकर आना हम उससे मिलेंगे। अगले दिन दीनानाथ के कुछ लोग रामकिशोर के घर आते हैं। गाड़ी को देखकर रामकिशोर सोच में पड़ जाता है कि एम.एल.ए. की गाड़ी उसके घर क्यों आई है। गाड़ी में से कुछ लोग उतरते हैं और रामकिशोर से कहते हैं कि M साहब तुम्हारे लड़के से मिलना चाहते हैं। यह सुनकर रामकिशोर उनसे पूछता है कि क्या बात है भाई ? मेरे लड़के से साहब क्यों मिलना चाहते है तो एम.एल.ए. के आदमी कहते हैं- घबराओ मत रामकिशोर, जब हमने कल की घटना के बारे में साहब को बताया तो उन्होंने मोहित से मिलने की इच्छा जताई, इसलिए हम यहाँ आये हैं।

यह सुनकर रामकिशोर कहता है कि यह तो बहुत अच्छी बात है कि साहब मेरे लड़के से मिलना चाहते हैं। अगर आप लोगों को कोई परेशानी न हो तो क्या में भी मोहित के साथ चल सकता हूँ। इस बहाने में भी साहब से मिल लूंगा तो वे लोग कहते हैं कि हाँ हाँ जरुर चलो और सब लोग गाड़ी में बैठकर चले जाते हैं।

गाड़ी दीनानाथ जी के घर पहुँच जाती है, वे लोग मोहित और रामकिशोर को बाहर कुर्सी पर बैठाकर अंदर चले जाते हैं और दीनानाथ को बता देते हैं। थोड़ी देर बाद दीनानाथ जी भी बाहर आते हैं। साथ में कुछ लोग भी होते हैं। दीनानाथ को देखकर मोहित और रामकिशोर अपनी अपनी कुर्सी से उठ जाते हैं तो दीनानाथ उन्हें कहते हैं कि बैठ जाओ।

फिर दीनानाथ, रामकिशोर से कहते हैं - ये तुम्हारा बेटा है। हमारे आदमी तारीफ कर रहे थे तो हमने सोचा कि मिल लिया जाये। दीनानाथ (मोहित ओर देखते हुए)- क्या नाम है बेटा आपका ?

जी मोहित (मोहित खड़े होकर जवाब देता है)

दीनानाथ - खड़े होने कि जरुरत नहीं है बेटा, क्या कर रहे हो बेटा अभी ?

मोहित - जी बी. एस.सी. का आखिरी वर्ष है।

दीनानाथ - बहुत अच्छा, इसके बाद क्या करना है ?

मोहित - जी अभी ज्यादा कुछ सोचा नहीं है, कुछ फॉर्म डाले हुए हैं उनमें कुछ होता है तो ठीक है नहीं तो एम.एससी. करूँगा।

दीनानाथ – बहुत अच्छा। अच्छा ये बताओ नौकरी करोगे क्या ? गाँव के पास के शुगर मिल में एक जगह है खाली, आठ दस हजार रूपये मिल जायेंगे।

इसी बीच रामकिशोर बोल उठता है :- माफ़ी हुजूर, लेकिन अभी नौकरी करने से इसकी पढ़ाई खराब हो जाएगी।

दीनानाथ :- इसकी चिंता तुम मत करो। मैं इसको शाम कि शिफ्ट में लगवाऊंगा। जितने घंटो में इसे परेशानी न हो उतना काम किया करे। बताओ मोहित बेटा – क्या ख्याल है तुम्हारा।

मोहित कहता है - इस बारे में तो जो पिता जी निर्णय लेंगे वही सही रहेगा।

दीनानाथ :- ठीक है, तो रामकिशोर तुम ही मुझे एक दो दिन में सोचकर बता देना।

दीनानाथ अपने ड्राइवर से कहता है कि इनको घर छोडकर आना। रास्ते में रामकिशोर तो यही सोच रहा था कि ठीक ही तो कह रहे हैं दीनानाथ जी कि घर के पास ही आठ दस हजार कि नौकरी मिल रही है और मेरी पढ़ाई का भी ख्याल रख रहे हैं इतने पैसो से पिताजी को भी सहारा मिलेगा।

ये सोचते-सोचते कब घर आ गया पता ही नहीं चला। जब गाड़ी रूकती है तो गाड़ी से उतरकर घर की ओर चलते हैं।

घरलाले भी उतने ही उत्सुक थे कि पता नहीं क्या क्या बात हुई होगी। घर पहुँचते ही सुमन पहले दोनों को पानी पिलाती है फिर दादी माँ, रामकिशोर से पूछती है क्या बात थी, क्यों बुलाया था उसने, तो रामकिशोर कहता है कि कोई बात नहीं माँ, वो कल इसने लोगों को समझाया था न वोट डालने के लिए, तो ये बात उनको अच्छी लगी इसलिए शाबासी देने को बुलाया था।

दादी माँ - बस इतनी सी बात थी। ये बड़े लोग भी न, तभी मोहित कहता है कि पूरी बात बताओ न।

पिताजी यह सुनकर रामकिशोर कहता है कि और पूरी क्या बेटा ? अभी तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो यह सुनकर दादी माँ गुस्से में रामकिशोर से कहती हैं कि तू मुझसे कब से बातें छिपाने लगा रे। चल बता पूरी बात ? तो रामकिशोर पूरी बात बताता है।

इस पर दादी माँ कहती हैं कि इसमें बुराई क्या है, घर के पास नौकरी रहेगी चार पैसे घर में आयेंगे ? तो रामकिशोर कहता है कि माँ अभी इसको पढ़ना है।

इस पर दादी माँ कहती हैं कि मैं कोन सी मना कर रही हूँ। अच्छा मोहित तू ही बता तुझे सही लगी उनकी बात, यह सुनकर मोहित, रामकिशोर कि तरफ देखता है, दादी उसको कहती है कि उसकी तरफ क्यों देख रहा है। मैं पूछ रही हूँ मुझे बता ?

मोहित कहता है कि दादी मुझे तो कोई परेशानी नहीं है। नौकरी करने के बाद भी में पढाई के लिए समय निकाल लूँगा। अगर नहीं हो पाता है तो दीनानाथ जी से कहकर नौकरी छोड़ दूंगा।

दादी माँ - हाँ ये ठीक है अब बता रामकिशोर तू क्या कहता है ? रामकिशोर कहता है दादी माँ ये अभी बच्चा है अभी नौकरी और पढ़ाई कैसे कर लेगा।

दादी माँ - बच्चा तो ये तेरे सामने हमेशा रहेगा कल मैंने भी इसे लोगो को समझाते देखा था, बहुत समझदार हो गया है। तू बोल इसको कल ये दीनानाथ जी के यहाँ जाये बस और कोई बात नहीं।

रामकिशोर – ठीक है आप कह रहे हो तो कल चले जायेगा ये लेकिन मोहित जरा भी लगे कि पढ़ाई नहीं हो रही तो तुरंत छोड़ देना नौकरी।

मोहित - जी।

अगले दिन मोहित, दीनानाथ जी के यहाँ जाता है और उन्हें नौकरी करने की इच्छा के बारे में बताता है। दीनानाथ जी उसे अपने पैड पर लिख देते हैं कि मिल मेनेजर को ये लैटर दे देना। मोहित वैसा ही करता है। मिल का मेनेजर रोहित से कहता है कि कल 3 बजे से 11 बजे तक तुम्हारी ड्युटी रहेगी।

तुम्हारा काम ज्यादा नहीं है बस रजिस्टर में ये लिखना है कि किस नंबर के ट्रक से कितनी बार खोई (गन्ने का रस निकलने के बाद का अवशेष छिलका) भर कर गयी। अब तुम कल आना।

मोहित घर जाकर रामकिशोर को बताता है कि उसे क्या काम मिला है और बताता है कि उस काम में वह अपनी पढाई भी कर सकता है, रामकिशोर कहता है कि चलो ठीक है।

अगले दिन मोहित अपने काम पर जाता है वहाँ पर पहले से ही एक व्यक्ति दीनानाथ का होता है, वह मोहित को बताता है कि यह ज्यादातर ट्रक साहब के ही हैं। मैं तुम्हें बता दूंगा कि कौन से ट्रक साहब के हैं और कौन से मिल के हैं। उस पर मोहित कहता है कि पहचानना ही क्या है भाई मुझे बस जो ट्रक है उसका नंबर लिखना है फिर चाहे वो साहब का हो या मिल का।

इस पर वह व्यक्ति कहता है लेकिन फिर भी तुम्हें उनके ट्रक का ध्यान तो रखना ही होगा। आखिरकार उनकी वजह से ही तुम्हें ये नौकरी मिली है। ये बात मोहित को अच्छी नहीं लगी। फिर भी वो कुछ नहीं कहता है और अपने काम को करने लगता है। समय धीरे-धीरे व्यतीत होने लगा I

मोहित को मिल से पहली बार वेतन मिला मोहित बहुत खुश था I उसने सरे पैसे रामकिशोर को लाकर दे दिए बेटे कि पहली कमाई देखकर रामकिशोर भावुक हो गया, उसने मोहित को गले से लगा लिया। घर में सब लोग खुश थे। अब घर में आमदनी बढ़ने से रामकिशोर का बोझ भी हल्का हो गया था। मोहित भी अपना काम बड़ी ईमानदारी से कर रहा था।

एक दिन मोहित जब अपने काम पर था तो दीनानाथ का वही आदमी उसे कहता है कि साहब के ट्रक का नंबर मिल के ट्रक से पहले लगा दो तो पहले तो मोहित मना कर देता है लेकिन जब वह व्यक्ति बार बार कहता है कि क्या फर्क पड़ रहा है लगवा दो साहब, तो मोहित लगा देता। फिर तो रोज-रोज ऐसा ही होता है। मिल के ट्रक का नंबर ही नहीं आता है और साहब के ट्रक दो दो बार चले जाते हैं लेकिन मोहित को ये बात अच्छी नहीं लगती थी। कुछ महीने तो ऐसे ही कट गये, घर के सब लोग खुश थे परन्तु मोहित का मन अंदर ही अंदर खुश नहीं था।

एक दिन वह व्यक्ति मोहित के पास आता है और कहता है कि साहब ऐसे तो काम नहीं चलेगा आपको और थोडा सा कष्ट उठाना पड़ेगा तो मोहित कहता है कि बताओ क्या बात है ? कि आपको साहब के रोज दो ट्रक अलग से रजिस्टर में लिखने होंगे। यह सुनकर मोहित आग बबूला हो जाता है और कहता है कि में पहले से ही वो कर रहा हूँ जो मुझे पसंद नहीं है। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये कहने किी मुझसे।

मोहित का गुस्सा देखकर वह आदमी कहता है कि माफ़ी साहब मैं तो बस बही बता रहा था जो यहाँ पर होता है अगर तुम ऐसा करते हो तो तुम्हें रोज के 200 रूपये मिलेंगे। यह सुनकर मोहित कहता है - इससे पहले कि में तुम्हें कुछ और कहूँ, मेरी नजरों के सामने से चले जाओ।

यह सुनकर वह आदमी चला जाता है। अगले दिन मोहित सीधे दीनानाथ जी के पास जाता है और उन्हें सारी बात बताता है तो दीनानाथ कहते हैं- अभी तुम बच्चे हो धीरे-धीरे सीख जाओगे। देखो अगर तुम ऐसा करोगे तो और पैसे आयेंगे तुम्हारे घर। तो मोहित कहता है कि सर में ईमानदारी में विश्वास रखता हूँ जब में नौकरी नहीं करता था तब भी मेरे घरवाले खुश थे। ऐसा करना अपने मालिक के खिलाफ विश्वासघात होगा जो में कभी नहीं कर सकता। मैं उनकी नौकरी कर रहा हूँ।

दीनानाथ – लेकिन ये मत भूलो कि ये नौकरी हमने दिलाई है तुम्हें।

मोहित – जी बिलकुल, बस यही गलती की मैंने, अगर नौकरी में अपनी काबिलियत पर लेता तो आज इतना न सुनना पड़ता। मैं कल ही ये नौकरी छोड़ दूँगा।

मोहित को गुस्से में देखकर दीनानाथ तुरंत अपनी बात मोड़ देते हैं और कहते हैं कि नहीं नहीं बेटा नौकरी छोड़ने की बात मत करो। मैं तो इसलिए कह रहा था कि तुम्हारे घर में चार पैसे ज्यादा आयेंगे पर कोई बात नहीं तुम आराम से अपनी नौकरी करो, कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा। अगर कोई कुछ कहे तो तुम सीधे मुझसे कहना और इस बारे में घर पर कुछ मत कहना।

यह सुनकर मोहित शांत हो जाता है और वहाँ से चला जाता है। अगले दिन जब मोहित काम पर आता है तो एक ड्राइवर जिसका ट्रक, दो ट्रक के पीछे खड़ा था मोहित के पास आता है और उसे 400 रूपये देता है और कहता है कि साहब इन पैसो को रख लीजिये, मेरे ट्रक का नंबर देर से आएगा में खाना खाने जा रहा हूँ। मेरा क्लीनर आयेगा तो उसे दे दीजियेगा। जैसे ही मोहित उन पैसो को अपने हाथ में लेता है तभी मिल मैनेजर वहाँ आ जाता है और मोहित से पूछता है ये क्या हो रहा है तो इससे पहले मोहित कुछ बोल पाता है वह ड्राइवर अपनी बात से बदलकर बोलता है कि माफ़ी हुजुर ये तो रोज का काम है। अपने ट्रक का नंबर पहले लगवाने के लिए मैं साहब को पैसे दे रहा हूँ।

मोहित उसकी बात सुनकर भोंचक्का रह जाता है और कहता है ये तुम क्या कर रहे हो। तभी मैनेजर कहता है कि पिछले कई दिनों से में ये देख रहा था कि मिल के ट्रक के नंबर कम लग रहे हैं। तुमसे यह उम्मीद नहीं थी मोहित,तुम अभी के अभी मेरे ऑफिस में आओ। मोहित मैनेजर के ऑफिस में आता है।

मैनेजर - मैं चाहूँ तो अभी पुलिस को बुलाकर तुम्हें जेल भिजवा सकता हूँ पर तुम्हें एम.एल.ए. साहब के कहने से रखा था इसलिए सिर्फ तुम्हें नौकरी से निकाल रहा हूँ। तुम जा सकते हो।

मोहित कुछ नहीं कहता और जैसे ही मैनेजर के कमरे से बाहर आता है तो सामने से दीनानाथ आ रहा होता है। दीनानाथ को देखकर मोहित समझ जाता है कि सब कुछ दीनानाथ ने ही कराया है। जब दीनानाथ, मोहित के पास आता है तो दीनानाथ कहता है - अरे मोहित क्या हुआ ? अब क्या है ? तुम्हारी तो नौकरी गयी।

तो मोहित कहता है कि साहब मेरे पास मेरी आत्मसंतुष्टि है कि मेरी नौकरी गयी है पर मैंने विश्वासघात नहीं किया और वैसे भी ये नौकरी मेरी काबिलियत पर नहीं मिली थी।

अब में जो नौकरी करूँगा अपनी क़ाबलियत पर करूँगा। मोहित की ये बात दीनानाथ को चोट कर जाती है पर वो कुछ कह नहीं पाता।

मोहित सब कुछ घरवालों को आकर बता देता है पहले तो सब शांत रहते हैं फिर दादी माँ कहती है कि तुझे क्या जरुरत थी इतने झमेले में पड़ने की। अरे लिख देता एक दो ट्रक के नंबर ज्यादा वैसे भी तो ये मिल मालिक किसानों का खून चूसते हैं। इनको चूसने वाला भी तो कोई होना चाहिए। अरे में पूछती हूँ तेरी जेब से क्या जा रहा था। अच्छे खासे चार पैसे आ रहे थे घर में लेकिन ये सब तेरी इन किताबों का खोट है। अब पढ़ना जी भर के इन्हें।

रामकिशोर - अपनी माँ को शांत करता है और कहता है कि माँ मोहित ने सही किया। उसने अपनी ईमानदारी से समझोता नहीं किया, मुझे गर्व है तुझ पर बेटा।

दादी माँ कहती हैं कि बेटा ईमानदारी से पेट नहीं भरता आजकल, लेकिन मेरी सुनता कौन है,यहाँ।

ऐसा कहती हुई दादी माँ अपने कमरे में चली जाती है। रामकिशोर, मोहित को कहता है कि बेटा तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। अरे तुमने कोई गलती थोड़ी कि है कुछ जो ऐसे चुप बैठे हो। जाओ अपने कमरे में और पढ़ाई करो।

अगले दिन सुबह मोहित कहता है कि उसे कुछ फॉर्म भरने है इसलिए शहर जा रहा है शाम तक आ जाऊँगा I रामकिशोर कहता है कि ठीक है ध्यान से जाना। जैसे ही मोहित घर से निकलता है तो गोपाल उससे पूछता है कि अरे बेटा मोहित नौकरी कैसी चल रही है तो मोहित कहता है चाचा नौकरी तो छूट गयी, गोपाल कहता है कि हमने तो कुछ और ही सुना। यह सुनकर जैसे ही मोहित, गोपाल की ओर देखता है तो गोपाल कहता है कि अरे बेटा सौ मुँह तो सौ बाते होती हैं। मैंने तो कह दिया था कि हमारा मोहित तो बहुत नेक लड़का है वो ऐसे काम नहीं करता, चल ठीक है शायद कही जा रहा हैं तो मुझे भी खेत पर काम है।

मोहित भी शहर चला जाता है। उधर मिल मैनेजर एम.एल.ए. साहब के पास जाता है। दोनों बातें कर रहे होते हैं तो मैनेजर कहता है कि साहब और तो सब बातें ठीक है लेकिन मोहित लड़का था बहुत ईमानदार।

जैसे मैनेजर ये बात बोलता है तो दीनानाथ के कानों में मोहित की ईमानदारी वाली बात गूंज उठती है। अभी दोनों बातें कर ही रहे थे कि दीनानाथ के पास फोन आता है कि उसके लड़के का एक्सीडेंट हो गया है जल्दी से हॉस्पिटल पहुँचे।

दीनानाथ तुरंत पत्नी को लेकर हॉस्पिटल पहुँचते हैं। हॉस्पिटल पहुंचकर दीनानाथ डॉक्टर से पूछते हैं कि उनका बेटा किस वार्ड में है और कहाँ है तो डॉक्टर कहता है कि घबराने कि जरूरत नहीं है अब आपका लड़का खतरे से बाहर है। दीनानाथ डॉक्टर को धन्यवाद देते हैं तो डॉक्टर कहते हैं कि धन्यवाद तो उस लड़के को दीजियेगा जो आपके बेटे को यहाँ तक लाया और अपना खून भी दिया। दीनानाथ कहते हैं कि कौन वो लड़का है, हम उससे अभी मिलना चाहते हैं, तो डॉक्टर कहते हैं कि हमने उससे कहा था कि आपसे मिल के जाये पर समय काफी हो गया था उसे अपने गाँव जाना था।

दीनानाथ पूछते हैं कि क्या नाम था उसका और कौन सा गाँव है ? डॉक्टर के मुँह से जैसे ही दीनानाथ के प्रश्नों का उत्तर मिला, दीनानाथ अवाक रह गया, जहाँ खड़ा था वहीं खड़ा रह गया, बिल्कुल स्थिर क्यूंकि डॉक्टर ने नाम बताया था- मोहित।

दीनानाथ की पत्नी दीनानाथ को हिलाकर कहती है कि मेरा बेटा कहाँ है। अब तो डॉक्टर उन्हें वार्ड की ओर ले जाते हैं लेकिन दीनानाथ बिलकुल शांत और धीरे-धीरे अपने बेटे के वार्ड की ओर ले जाते हैं और मन ही मन सोचता है कि आज उसने मुझे मेरी जिंदगी कि सबसे मूल्यवान वस्तु लोटाई है जिसकी मैंने कोई कद्र नहीं की। अगले दिन सब लोग अपने अपने काम के लिए तैयार हो रहे थे, रामकिशोर खेत पर जाने के लिए मोहित और रोहित अपने कॉलेज के लिए और दादी माँ भी बाहर अपनी चारपाई पर बैठी थी। सुमन भी अपना रसोई का काम कर रही थी।

तभी दीनानाथ की गाडियों का काफिला रामकिशोर के घर पर आकर रुकता है। इतनी सारी गाड़ियाँ देख सब लोग उस ओर देखने लगते हैं। रामकिशोर को पता चल जाता है कि गाड़ियों में दीनानाथ और उसके आदमी है और मन ही मन डरकर ये सोचने लगता है कि पता नहीं अब क्या होगा पर कोई बात नहीं मैं साहब से हाथ जोड़कर माफ़ी मांँग लूँगा और कहूँगा कि साहब ये तो बच्चा है इसे अभी दुनियादारी कहाँ आती है। रामकिशोर भी अपनी इसी सोच के सागर में डूब रहे थे कि दीनानाथ अपनी गाड़ी में से निकलकर रामकिशोर के सामने पहुंचकर हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं।

यह देखकर रामकिशोर कुछ समझ नहीं पाता है और उनके सामने हाथ जोड़कर कहता है कि ये आप क्या कर रहे हो साहब ? इससे पहले कि रामकिशोर कुछ और बोलता दीनानाथ उसका हाथ पकड़कर कहते हैं कि रामकिशोर हमसे एक बहुमूल्य हीरा खोने वाला था। समय ने हमें उसकी कीमत सही समय पर बता दी। हम उस हीरे को तुमसे लेने आये हैं। रामकिशोर की समझ में कुछ नहीं आ रहा था तो वो कहता है कि साहब आप क्या कर हे हो हमें कुछ समझ नहीं आ रहा है, तो दीनानाथ कहते हैं कि रामकिशोर, हम तुम्हारे बेटे मोहित के बारे में बात कर रहे हैं, हम मोहित को अपने यहाँ मैनेजर की नौकरी देना चाहते है, अब से हमारे सारे काम भी देखभाल मोहित करेगा और उसकी पढ़ाई का सारा खर्च भी हम ही उठाएंगे (मोहित की ओर देखते हुए) क्यों बेटा मोहित बताओ ? मोहित कहता है कि इस बारे में तो पिताजी ही बता सकते हैं कि तो रामकिशोर कहता है कि साहब आप इस पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी दे रहे हैं इतना बड़ा काम है आपका ये तो बच्चा है अभी ? दीनानाथ कहते हैं कि रामकिशोरे तुम्हारे पास हीरा है हीरा और में उस हीरे को तरासूँगा, फिर देखना इसकी चमक।

फिर रामकिशोर कहता है कि ठीक है साहब। जैसा आपको उचित लगे। इस पर दादी माँ कहती है कि ठीक क्या ? हमारा मोहित अब हमारा आपका है साहब ये सब बातें दूर खड़ा गोपाल भी सुन रहा था।

दीनानाथ, मोहित से कहते हैं कि मोहित जो जिम्मेदारी अब में तुम्हे दे रहा हूँ वो तुम्हारी काबिलियत और ईमानदारी पर दे रहा हूँ। ऐसा कहकर दीनानाथ मोहित को अपनी गाड़ी में बैठाता है। सब लोग बहुत खुश होते हैं I


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