हाथी - 5

हाथी - 5

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रात को हाथी बीमार बच्ची के घर लाया जाता है।

पीठ पर डले सफ़ेद कपड़े में वह बड़ी शान से रास्ते के बीचोंबीच आता है, सिर हिलाता है और अपनी सूँड को कभी खोलता है, कभी समेटता है। काफ़ी रात होने के बावजूद, उसके चारों ओर बड़ी सारी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। मगर हाथी उस पर ज़रा भी ध्यान नहीं देता : सर्कस में वह हर रोज़ सैकड़ों लोगों को जो देखता है। सिर्फ एक बार उसे थोड़ा-सा गुस्सा आ गया।

सड़क का कोई छोकरा भागकर उसके पैरों के नीचे खड़ा हो गया और मुँह बना-बनाकर देखने वालों का दिल बहलाने लगा।

तब हाथी ने शांति से अपनी सूँड से उसके सिर से टोपी निकाल दी और उसे बगल वाली, कीलें जड़ी फेन्सिंग के उस पार फेंक दिया।

पुलिस का सिपाही भीड़ में जाकर कहता है:

“महाशय, रास्ता दीजिए। आपको यहाँ कौन सी अजीब बात नज़र आ रही है ? ताज्जुब है ! जैसे कि आपने कभी ज़िन्दा हाथी को सड़क पर देखा ही नहीं है।”

वे घर के पास पहुँचते हैं। सीढ़ियों पर, और हाथी के पूरे रास्ते पर, बिल्कुल डाईनिंग हॉल तक, सारे दरवाज़े पूरे खुले हुए हैं, जिसके लिए हथौड़े की सहायता से दरवाज़ों के खटके तोड़ने पड़े थे। बिल्कुल ऐसा ही पहले भी एक बार करना पड़ा था, जब घर में बड़ी, चमत्कारी प्रतिमा लाई जा रही थी।

मगर सीढ़ियों के सामने हाथी परेशान होकर रुक गया और ज़िद करने लगा।

“उसे खाने की कोई चीज़ देनी पड़ेगी।” जर्मन ने कहा। “कोई मीठा ‘बन’ या कुछ और मगर टॉमी ! ओहो-हो ! टॉमी !”

नाद्या के पिता बगल वाली बेकरी में भागते हैं और बड़ा गोल, पिस्ते का केक खरीदते हैं। हाथी उसे एक ही बार में, गत्ते के डिब्बे समेत, निगलना चाहता है, मगर जर्मन ने उसे बस एक चौथाई केक ही दिया। टॉमी को केक पसन्द आ गया, और वह दूसरे निवाले के लिए सूण्ड फैलाता है। मगर जर्मन ज़्यादा चालाक निकला। हाथ में केक पकड़े-पकड़े वह एक-एक सीढ़ी ऊपर चढ़ता जाता है, और सूण्ड खोले, कान फैलाए हाथी मजबूरी में उसके पीछे-पीछे चलने लगता है। सीढियों वाले चौक पर उसे केक का दूसरा टुकड़ा दिया जाता है।

इस तरह उसे डाईनिंग हॉल में लाया जाता है, जहाँ से पहले ही पूरा फर्नीचर बाहर निकाल दिया गया है, और फर्श पर घास-फूस की मोटी तह बिखेर दी गई है। हाथी का पैर कुंदे से बांध दिया जाता है, जिसे फर्श में फिट किया गया है। उसके सामने ताज़ी-ताज़ी गाजर, गोभी और शलजम डाली जाती हैं। जर्मन पास ही में सोफ़े पर पसर जाता है। बत्तियाँ बुझा दी जाती हैं और सब सो जाते हैं।


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