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नीरजा मेहता

Others

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नीरजा मेहता

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हादसा

हादसा

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चार दिन ही हुए थे नीरा-नरेश को नए घर में आये हुए कि अचानक नरेश के पिता की हृदयाघात से मृत्यु हो गई। अभी घर पूरी तरह व्यवस्थित भी नहीं हुआ था और इतनी बड़ी अनहोनी घट गई। इस बड़े हादसे से नए घर में आने की खुशी काफ़ूर हो गयी। रिश्तेदार कानाफूसी करने लगे कि घर इनको फला नहीं, अब इस घर में इनको नहीं रहना चाहिए। नरेश के कान में ये बात पड़ी तो उसको बहुत बुरा लगा। कितनी कठिनाइयों से पाई-पाई बचाकर, अपनी इच्छाएं दबाकर, ज़रूरतें कम करके बैंक से लोन लिया और दो कमरों का फ्लैट खरीदा।


नरेश और नीरा विवाह के बाद से ही घर खरीदना चाहते थे। आख़िर किराए के मकान में भी हर महीने इतनी राशि निकल जाती थी, इतने में तो घर की क़िस्त चुकता हो जाएगी लेकिन एक भारी राशि जो प्रारम्भ में देनी होती है उसके लिए इंतज़ाम नहीं हो पा रहा था। 

नरेश के पिता कहते, "बेटा गांव की जमीन और मकान बेचकर यहाँ एक घर खरीद लो।" लेकिन नरेश अपना घर अपने बलबूते पर बनाना चाहता था इसलिए पिता से उसने कहा था, "पिताजी वो घर और जमीन आपकी है, मैं नहीं चाहता कि कभी कोई अनहोनी हो और आपके पास सर छुपाने के लिए छत भी न हो।"

ये सुनकर नीरा खुशी से अपने पति को देखती और कहती, "आपके जैसा बेटा सौभाग्य से किसी को मिलता है।"

पिता बार-बार कहते, "बेटा ये सब तुम्हारा ही है। अब बुढ़ापे में हमको भला क्या जरूरत। हम तुम्हारे साथ खुशी से रह ही रहे हैं।" लेकिन नरेश ने उनकी बात नहीं मानी और घर खरीदने का फैसला रद्द कर दिया।


दो वर्ष ऐसे ही बीत गए। कार्यालय में प्रमोशन के लिए परीक्षा की घोषणा हुई तो नरेश ने मेहनत करके उसी कार्यालय में ऊंचे पद के लिए परीक्षा दी और उसकी मेहनत रंग लाई, वो क्लर्क से हेडक्लर्क बन गया। आमदनी में बढ़ोतरी हुई तो अपना घर खरीदने की चाह एक बार फिर हिलोरें मारने लगी। इस बार नरेश ने मन की सुनी और घर खरीदने का फैसला कर लिया। नीरा भी खुशी से फूली नहीं समाई। अपनी आमदनी और खर्च के अनुसार उसने दो कमरों का छोटा सा फ्लैट लोन पर ले लिया था। दोनों बहुत खुश थे लेकिन गृह प्रवेश के चार दिन बाद ही अचानक पिता के जाने से और फिर नाते-रिश्तेदारों की बातों से जैसे मन टूट सा गया।


लोगों की बात को अनसुना कर तेरहवीं की पूजा सम्पन्न करके नीरा-नरेश घर को व्यवस्थित करने में लग गए। नरेश की माँ अपने पति के अचानक देहावसान से दुःखी रहने लगीं, यद्यपि नीरा उनका बहुत ख्याल रखती पर वो इस सदमे को सहन नहीं कर पाईं और बीमार रहने लगीं। अभी तीन महीने ही हुए थे नरेश के पिता को गए कि उसकी माँ भी चल बसीं। नीरा-नरेश सकते में आ गए। नए घर में आने के बाद तीन महीने के भीतर ही इन दो बड़े हादसों ने नरेश को अंदर से तोड़ दिया। रिश्तेदारों के साथ अब तो आस-पास के लोगों ने भी कहना शुरू कर दिया, "इस घर को बेचकर दूसरा घर ले लो, ये घर तुम लोगों के लिए अशुभ है।" नरेश सबकी बातें सुन चुप्पी साध लेता। आख़िर घर बेचना और फिर दूसरा खरीदना कोई सरल काम तो था नहीं। 


नरेश सरकारी दफ्तर में हेडक्लर्क था, आमदनी अधिक नहीं थी लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उनको अपनी जरूरतों के लिए परेशानी उठानी पड़ी हो। नीरा भी एक प्राइवेट विद्यालय में अध्यापिका थी। दोनों की तनख़्वाह से घर खर्च आसानी से निकल जाता था। बस एक ही मलाल था, विवाह के दस वर्ष हो गए थे पर अभी तक उनकी कोई संतान नहीं थी। कई डॉक्टरों से सलाह भी ली किन्तु नीरा के पैर भारी न हो सके। धीरे-धीरे उन्होंने बच्चे की आस छोड़ दी और अपने भाग्य से समझौता कर लिया था। 


माता-पिता की मृत्यु के बाद नरेश ने गांव का घर और जो जमीन थी, उसको बेच दिया और जो पैसा मिला उसको कुछ बैंक में फिक्स करा दिया, कुछ लोन चुकता किया।  

सबकी बातें सुनकर नीरा ने एक दिन नरेश से कहा, "लोग ठीक कह रहे हैं, ये घर हमारे लिए शुभ नहीं है।"

"तुम पढ़ी-लिखी हो, अध्यापिका हो, ऐसे विचार तुम्हारे मन में कैसे आये ? अपने मन से ये बात निकाल दो क्योंकि जब-जब जो होना लिखा है तब-तब वो होकर रहता है।" 

"पर नरेश, देखो न हम इतने वर्ष किराए के घर में रहे लेकिन कभी ऐसा हादसा नहीं हुआ और यहाँ आते ही...।"

"नीरा, अचानक कोई हादसा होने का ये अर्थ तो नहीं कि ये घर हमारे लिए शुभ नहीं है। ये तो ईश्वर की इच्छा थी।" 


नरेश की बात सुनकर नीरा चुप हो गयी। दोनों के जीवन की गृहस्थी फिर चल पड़ी, वो अपने-अपने काम पर जाने लगे और इस तरह दो-तीन महीने और बीत गए कि अचानक एक दिन नीरा चक्कर ख़ाकर गिर पड़ी। नरेश बहुत घबरा गया, उसके मन में लोगों की कही बातें गूँजने लगीं कि शायद ये घर हमको फला नहीं। मन ही मन नरेश बुदबुदाया, "क्या अब तीसरा हादसा....!" घबराकर स्वयं से ही बोल उठा, "नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता।" उसने तभी घर बदलने का मन बना लिया। 


नरेश ने जल्दी से नीरा के मुख पर पानी के छींटे मारे और उसे होश में लाने की कोशिश करने लगा। सौभाग्य से नीरा को होश आ गया तो वो उसको अपने निजि डॉक्टर के पास ले गया। 

डॉक्टर ने जांच करने के बाद कहा, "मुबारक हो, आप पिता बनने वाले हैं।"

नरेश आँखें फाड़े डॉक्टर को देखता रह गया। विवाह के दस वर्ष तक कोई संतान न होने के कारण उसने पिता बनने की आशा ही छोड़ दी थी और अचानक इस ख़बर को सुनकर उसको विश्वास नहीं हो रहा था। समझ नहीं पा रहा था कि वो अपने माता-पिता के जाने का दुःख मनाए या अपनी संतान के आने की खुशी। 


घर आकर नरेश ने प्यार से नीरा का हाथ पकड़कर कहा, "माना कि इस घर में आने के बाद हम बहुत बुरे दो हादसों से गुजरे लेकिन अब ये तीसरा हादसा...! और खुशी से नरेश ने नीरा को सीने से लगा लिया। 


नौ महीने बाद नीरा ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। एक बेटी और एक बेटे को पाकर नरेश बोल उठा, "ये घर हमारे लिए बहुत शुभ है। इन बच्चों के रूप में माँ-पिताजी हमारे पास हमेशा के लिए वापस आ गए हैं।"

अस्पताल से बच्चों को लेकर नीरा जब घर आई तो उसे लगा वो एक बार फिर गृह प्रवेश कर रही है। उसकी आँखें खुशी से भीग गईं। 



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