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CHANDRAYEE BHATTACHARYYA (Pathak)

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CHANDRAYEE BHATTACHARYYA (Pathak)

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एक दैवाधीन-भेंट

एक दैवाधीन-भेंट

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स्कूल के रसोई-तथा-खलिहान-घर के पास एक सेब के पेड़ की शाखा पर लटका हुआ घंटी की आवाज़ काफ़ी तेज और स्पष्ट थी। उस विशिष्ट घंटी की 'बजने-का-जादू' ने 'ताशी-वामडोंग-हाई-स्कूल' में एक और 'कार्य-दिवस' की समाप्ति की घोषणा की।

'कोट्टायम-के-गंगा' ने रजिस्टर पर हस्ताक्षर किए, 'चीनी रेनकोट' को हल्के से अपने बाएँ कंधे पर रखा, कार्यालय से बाहर आए और बैडमिंटन-कोर्ट-आकार-का सीढ़ीदार-बरामदा पर खड़े हो गए। वह अपने एकमात्र साथी और सहकर्मी की तलाश कर रही थी। हिमालय की उन पहाड़ियों पर उनका यह 'स्व-निर्वासित जीवन' था। अन्य लोगों की अलग-अलग राय हो सकती थी, लेकिन वे दोनों, इसके लिए केवल यह वाक्यांश सोच समजकर गढ़ा था, जो उन्होंने सोचा वहाँ उनके जीवन का उपयुक्त वर्णन था।

उसने आत्मभाषण में कहा, “पौधों का अध्ययन करने के लिए पागल बिनय-सरकार, शायद अभी भी प्रयोगशाला में, अपने अजीब-सूक्ष्म-अध्ययनों में लीन।” कई अन्य लोगों के विपरीत, गंगा उस एकांत जीवन में सबसे ज़्यादा प्यार जो करती थी, वह थी, देकी-अम्मा की दुकान में 'शाम-की-चाय और जलपान'। प्रतीक्षा की यह समय उसके लिए परेशान करनेवाली थी। वह बेचैनी से फफक पड़ी। वैसे भी अनिच्छा से वह उसके लिए इंतज़ार कर रही थी, आखिरकार, ‘सरकार’ उसकी पति।


थोड़े समय के बाद, बिनय सरकार, उसके दुबले-पतले एकमात्र साथी, बाएँ गलियारे के दूर-छोर पर दिखाई दिए, दो पतलून एक दूसरे के ऊपर, दो शर्ट इसी तरह, एक चीनी स्वेटर और उसका ऊपर एक चमड़े का जैकेट। उन सब के अलावा, सिर के ऊपर' कॉफी-रंग की कश्मीरी टोपी" जिसे गंगा के द्वारा पिछले वेलेंटाइन डे में उपहार में दिया गया था, इन सबके साथ वह बाहर आया था, टोपी ने उनके क्षीण चेहरे को एक अजीब रूप दिया और पैरों में दो जोड़ी मोज़ा था, एक के ऊपर एक और उसके ऊपर चीनी कैनवास-जूते । 

वहाँ के जलवायु उसके लिए काफ़ी अनोखा था, छोटानागपुर-पठार की गर्म कोलियरी बस्ती में जन्मे और पले-बढ़े 'श्री बिनय सरकार' ने पाया कि हिमालय की ठंडी हवा को सहन करना सबसे मुश्किल काम।

"क्या हुआ? अपने सूक्ष्म-अध्ययनों के साथ, क्या आप यहाँ रात बिताना चाहते हैं? क्या मुझे देकी-अम्मा की दुकान से कुछ 'मोमो' भेजने चाहिए?" गंगा ने उसे ताना मारा।

 'मोमो' उस उजाड़ हिल-स्टेशन में उपलब्ध बहुत कम 'स्वादिष्ट-व्यंजनों' में से एक था। यह एक प्रकार का उबले हुए चावल-का-केक, जिसमें मसला-हुआ बिना-हड्डी-का-मीट या स्वादिष्ट मशरूम या केवल मसालेदार-सब्जियाँ भर दी जाती थीं।

अपने चेहरे पर एक बचकानी मुस्कान के साथ सरकार स्कूल-रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के लिए दफ्तर में अंदर प्रवेश किया और जल्दबाजी में उन्होंने शब्दों से कम, इशारों में से ज्यादा, संप्रेषित किया, "आप देकी अम्मा की दुकान पर इंतज़ार करें, मैं आ रहा हूँ।"

छुट्टियों या सप्ताह-के-अंत में वे दोनों बाहर जाना पसंद करते थे। अक्सर वे शिलांग में 'गंगा की चाची और चाचा' से मिलने जाते थे, लंबी ट्रैकिंग और रस्किन बॉन्ड की कहानियों पढ़ने का आनंद लेते थे और यह उन सप्ताह के अंत की यात्राएँ थीं; जिसमें उसने अन्यमनस्क-दिमाग-वाले सरकार से हमारे अद्भुत दुनिया के पौधों के बारे में बहुत कुछ सीखा।

उसे कहानियाँ और उपन्यास पढ़ना बहुत पसंद था। उसने बच्चों के लिए काफ़ी कहानियाँ लिखी थीं, जो प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुईं।

जैसे ही आखिरी घंटी बजी सभी बच्चों के शोर से गूंज उठा था वातावरण, सभी सदन के छात्र-नेताओं ने अपने-अपने उपकरणों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया, स्टोर-कीपर (भंडार रक्षक) को लौटाने के लिए अपने-अपने बागवानी के सामग्री को इकट्ठा करना शुरू कर दिया।

स्टोर उस छोटी-सी शांत हिल-स्टेशन के स्कूल-भवन के निचली-मंजिल पर थी। निचली मंजिल के एक हिस्से का इस्तेमाल पुराने और टूटे हुए फर्नीचर को रखने के लिए किया जाता था और दूसरे हिस्से को पास के सेना-छावनी द्वारा धान्यागार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था।

छोटे-बच्चे पहले ही बड़े-से रसोई-सह-भोजन-हॉल में पहुँच गए थे। उनके कोलाहल ने आसपास की वायुमंडल को भर दिया। जब तक छोटों ने अपना दोपहर-का-भोजन पूरा किया तब तक आसपास के कम से कम आधा-दर्जन कुत्तों दिखाई दिए। थोड़ी देर बाद बड़ा-छात्र उनके दोपहर-के-भोजन के लिए शामिल हो गया और अंत में रसोइया, 'आत्ता-कर्मा ' भी शामिल हो गया।

यह शब्द 'आत्ता', स्थानीय लोग अपनी बोली में 'एक बड़े-भाई' का सम्मान करने के लिए सम्बोधित करते थे। स्कूल के बड़े लड़के '' आत्ता' को एक दोस्त, दार्शनिक और मार्गदर्शक मानते थे। उन्होंने ईमानदारी से उसका सम्मान किया करते थे, क्योंकि आत्ता अपने जीवन के बहुत लंबे समय में कई लोगों और घटनाओं को अनुभव किया था। जब वह एक युवक था, तब आत्ता भारतीय सेना में शामिल हो गया था। उनके पास अपनी प्राथमिक स्कूली शिक्षा पूरी करने का भी कोई अवसर नहीं था। वह पहाड़ी-गांवड़ी, जिसमें वह पैदा हुआ था और पले-बढ़े, उन दिनों वहाँ कोई स्कूल नहीं था। वह स्पष्ट रूप से अतीत के दिनों को याद करते और बड़े लड़कों के साथ अपने अनुभव साझा करता था। वह उनका मार्गदर्शन करता था और उन्हें सलाह देता था।

चाहे बारिश हो, ठंडी हवा हो या बर्फबारी हो, आत्ता बिना किसी असफलता के सुबह-सुबह स्कूल पहुँच जाते थे, कुछ जल्दी आनेवाला छात्रों सुबह की सभा से पहले उसे अपने नियमित काम में मदद करते थे। बड़े लड़के उसकी मदद करना पसंद करते थे। लड़कियाँ उसकी आश्चर्यजनक घटनाओं और अद्भुत यादों को ध्यान से सुनते थे, जब भी आत्ता उन किस्सों को साझा करते थे।


"कूजो जंग-पो ला, आम्मा", गंगा ने दुकानदार देकी-आम्मा का अभिवादन किया।उसके सुंदर-सपाट-चेहरे-पर चमकदार-आँखों से उसकी लगातार मुस्कुराहट के साथ उसने कहा, "कूजो जंग-पो ला, लोपेन" (लोपेन का अर्थ है शिक्षक) यहाँ स्थानीय लोग शिक्षकों को अत्यधिक सम्मान देते हैं। एक गृहिणी, साथ में वह एक महिला-दुकानदार भी, एक दिन देकी-आम्मा ने बातचीत में गंगा को बताया शादी का किस्सा, “मैडम, मेरी शादी तब हुई, जब मैं केवल कक्षा नौ में पढ़ रही थी।” वह पांच बच्चों की माँ थी। मिडिल-स्कूल में पढ़ाई के कारण वह अंग्रेज़ी बहुत अच्छी तरह से बोल सकते थे और समझ सकते थे।


"मैडम, तुम्हारा पति कहाँ है?" देकी-आम्मा ने पूछा।"वह आ रहा है, कृपया दो कप बहुत अच्छा कॉफी बनाएँ और कुछ स्नैक्स खाने के लिए दें।" उसने देकी-आम्मा से अनुरोध किया।गंगा अपने विचारों में डूबी हुई थी, एकाएक वहाँ प्रकट हुई एक जुलूस, जैसे कि अचानक कहीं से, उच्चभूमि-जनजातियों का एक जुलूस, जो विशाल हिमालय के ऊंचाई-वाले-स्थानों पर रहते थे। वे खानाबदोश पहाड़ी-जनजातियाँ थीं। वे 'याक' (चमरी गाय) और 'गौर' के अपने-अपने झुंड के साथ ऊंचे पहाड़ क्षेत्रों में रहते थे। वे घोड़ों, खच्चरों और कुत्तों को भी हमेशा अपने पास रखते थे।


उस समय वह सरकार को दुकान की ओर ओर आते हुए देखा । सीढ़ी की पहली लकड़ी-का-तख़्ती पर क़दम रखने से पहले उन्होंने दीकी-आममा को अभिवादन दी। वह मुस्कुराया और उसका अभिवादन स्वीकार किया।


"लोपेन, आज आप बहुत देर से पहुँचे।" उसने मुस्कुराते हुए कहा।"ओ, एर, हाँ ... यह आज ... मैं ... बहुत देर... हो चुकी है।" उसने रुकते हुए कहा।वे खानाबदोश पहाड़ी-जनजातियाँ सर्दियों में जब उनके ऊंचाई-वाले क्षेत्रों में बार-बार बर्फबारी होती है, तो निचली-घाटियों में आ जाते हैं। वे पनीर और मक्खन बेचते थे और स्थानीय दुकानदारों से जीवन की अपनी सीमित आवश्यकताओं को खरीदते थे। वे कुछ प्रकार की दालें, तेल, मसाला, सूखी मछली और

निश्चित रूप से 'समुद्री-नमक' खरीदते थे।आमतौर पर वे रॉक-सॉल्ट पर निर्भर होते है। इसके कारण उनमें से कुछ गण्डमाला से पीड़ित होते है।


वे अपने घर वापस लौट रहे थे। छोटी सपाट टोपी के साथ-साथ पांच से छह की संख्या में नीचे की ओर लटकके हुए चोटियों जैसा उनके याक-बाल निर्मित सिर-का-पहनावा काफ़ी अजीब थे। उसने उन्हें एक-दूसरे से बात करते हुए पाया और अजीब इशारों से लड़ते हुए अपने साथियों के साथ और अपने जानवरों के साथ भी। उनके हाव-भाव एक प्रकार से अति भद्दा क़िस्म का, वास्तव में बहुत ही अजीब लोग।देकी-आम्मा की दुकान में बैठे हुए उन्होंने देखा कि एक आदमी दूर सांप-जैसा 'पहाड़ी-सड़क' के ट्रैक के अंत में एक बौद्ध-स्तूप के आसपास से हो कर ऊपर जा रहा था। पहाड़ी के घुमावदार किनारे पर कुछ ऊंचे प्रार्थना-ध्वज खड़े थे। उसके क़दम थोड़े कांपने लगे। वह सामान्य रूप से 'माल्ट-से-बना' स्थानीय दारू, मतलब 'हार्ड-ड्रिंक', अपना ‘कोटे’ से थोड़ा अधिक-ही पी लिया था। उनकी पत्नी टखने-की-लंबाई-वाली चमकीले चेकर-वाली-पोशाक में लिपटी हुई थी, जिसे आमतौर पर एक पारंपरिक-हथ-करघा में बनाया जाता था, उनका पीछे-पीछे चल रही थी और लगातार उसे उसके दोहराया शब्दों का उपयोग करके परेशान कर रही थी।

दूर उन्हें देखते हुए गंगा के पति ने इस साहसी तथा अलौकिक किस्से को उनके साथ साझा किया, जो वास्तव में पिछले साल आत्ता ने उन्हें सुनाया था।

ये रहा वह उपाख्यान।

… … …

यह किस्सा कुछ साल पहले का था ...

आत्ता ने, हमेशा की तरह, किचन को जाँच किया, परिवेश का निरीक्षण किया, चार अलग-अलग किचन गार्डन, जो स्कूल का चार सदनों के छात्रों द्वारा बनाया गया था, आत्ता ने छात्रों द्वारा लापरवाही से छोड़े गए उपयोगी उपकरणों की तलाश में थे। तीन छात्र, वांगडी, सोनम और रिनचेन, तीनों, स्कूल के बाद घर वापस जाने के दौरान एक साथ चलने के लिए इंतज़ार कर रहे थे।

[प्रिय पाठक कृपया "सोनम" नाम से भ्रमित न हों, यह एक लड़की नहीं है। वहाँ हर एक नाम के दो भाग हुआ करते है और दूसरा भाग उसका लिंग तय करता है। 'सोनम' केवल पहला भाग थी।]

वांगडी ने आश्चर्यचकित होकर कहा, "आत्ता हर सुबह बिना असफलता के इतनी जल्दी कैसे उठती है?" उसने अपना थैला ले लिए और तीनों लड़कों को चलने के लिए निशान कर दिया।

समतल चट्टान के टुकड़ों को एक-दूसरे से जोड़कर रखा गया है, जो छेरिंग-अम्मा की दुकान के पास सीमेंटेड-सड़क पर पहुँचता है। कुछ लोग आम-छेरिंग की दुकान भी कहते हैं। सोनम ने चुरपी (कठोर-सूखा-पनीर) के कुछ टुकड़े खरीदे और आपस में बांटे, उन्होंने कुछ शब्दों का आदान-प्रदान भी किया। अम्मा ने एक पान का पत्ता, कच्ची सुपारी का एक टुकड़ा, थोड़ा-सा चूना आत्ता को दिया और उसे नमस्कार की। आत्ता ने उसे धन्यवाद दिया। लोग कहते है, "वह यहाँ की सबसे अच्छी बुनकर है।" वह दुकान के साथ ड्राइंग रूम के एक कोने में अपने पारंपरिक करघे की मदद से कपड़े बनाती थीं, उन पर वह अद्भुत डिज़ाइन भी बनाती थीं।

अपने विदेशी धनुष का निरीक्षण करते समय आम-छेरिंग के पति ने आम्मा से कुछ पूछा। महंगे धनुष को देखते हुए वांगड़ी ने पूछा, "आपने इसे कब खरीदा है?

• 'पवित्र-धन्य-वर्षा-दिवस' के अंतिम त्यौहार के दौरान

• क्या आपका आज तीरंदाजी मैच है?

• हाँ, क्या तुम सब ने नहीं देखा कि लोग पहले से ही अपना मठ के पास इकट्ठा हो गए हैं?

• "चलो चलते हैं आत्ता", वांगडी ने प्रस्ताव दिया।

• फिर मुझे अपना धनुष और तीर लाना होगा।

• रिंचेन लाएगा, आप उसे बताएँ कि आपने कहाँ रखा है।

सुपारी चबाने के दौरान आत्ता ने सोचा; "रुको मैं याद करने की कोशिश करता हूँ, शायद सबसे अधिक तीर उस हिस्से के पास रसोई के मचान पर हैं जहाँ मैंने हाल ही में सूखने के लिए मांस के पट्टीया रखे थे और धनुष को उस कोने में लटका रखा था।"

• क्या आपको अपनी ड्रेस बदलने की ज़रूरत नहीं है? सोनम ने सुझाव दिया।

• मेरे जैसे एक बूढ़े आदमी के लिए यह ठीक है।

हिमालय की उस हिस्से के लोग अभी भी पश्चिमी-कपड़ों की तुलना में पारंपरिक हस्तनिर्मित चमकीला-पोशाक को अधिक पसंद करते हैं। हर युवा ऐसे परंपरागत पोशाक चाहते हैं। रिनचेन ने इस तरह के एक पोशाक को उधार लिया और उन तीनों ने आत्ता को ज़ोर दिया। आत्ता हमेशा की तरह उस पोशाक को पहनने के लिए बहुत अनिच्छुक था। अंत में तीनों दोस्त सफल हुए।


उन्होंने उस दोपहर का आनंद लिया और चिल्लाते हुए एक लक्ष्य से दूसरे छोर तक दौड़ते रहे। बाद में वे मठ में शाम-की-प्रार्थना में शामिल हुए। वहाँ अनोखा ड्रम थे, जो कुछ अजीब घुमावदार हथौड़े द्वारा बजाते थे, असामान्य रूप से लंबे भोंपू थे, इन सभी उपकरणों की आवाज़ वहाँ के गूढ़ परिसर में गूंज रही थी और शांति और अहिंसा के संदेश को फैला रही थी।


घाटी के आस-पास दूर स्थित बस्तियों की टिमटिमाती रोशनी अंधेरे जंगलों के मध्य से गुजरते हुए दिखाई देने लगी।

आस-पास के पहाड़ी-गांवड़ी से मठ में एक विशेष-समारोह में भाग लेने के लिए अच्छी संख्या में लोग आए थे। तीनों छात्रों ने कई अज्ञात चेहरों को देखा । लामाओं ने मठ की गर्भगृह के भीतर वेदियों और मूर्तियों को सजाया था। हर जगह धूप का घना धुआं था। सोनम ने शेरब ताशी, आम-छोमो के बेटे को देखा, एक अज्ञात लड़की से बात कर रही थी। आम-छोमो इलाके की सबसे आत्मनिर्भर महिला थीं। वह अपने दो बच्चों, एक बेटे और एक बेटी के साथ एक बड़े घर में रहती थी, उनके पास एक बहुत बड़ी रसोई थी और उनका घर उस सुरम्य पहाड़ी गाँव के प्रवेश द्वार पर सड़क के बाईं ओर खड़ा था। आलू, मक्का, बीन्स, लेट्यूस इत्यादि के खेती करने में, खाना पकाने के लिए और कुछ मवेशियों की भी देखभाल करने में उसे बहुत मेहनत करनी पड़ती थी।

शेरब ताशी उस समय दूसरी कक्षा में पढ़ रहा था, स्थानीय मठ के एक त्यौहार के तुरंत बाद, आम-छोमो का पति अचानक गायब हो गया। यद्यपि उसने प्रशासन को सूचित किया था, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला। उसने उम्मीद नहीं छोड़ी। काफ़ी बार वह अपने दो छोटे बच्चों के साथ, कलेक्टर के कार्यालय में भी गई थी लेकिन कोई उम्मीद नहीं बची थी।

बार-बार प्रयास करने के बाद, आखिरकार उसने वास्तविकता को स्वीकार कर ली। पर लोग कहते हैं, वह अपने पति की एक अश्लील हरकत सहन नहीं किया। वे कहते हैं कि उसने उसे रंगे हाथ पकड़ा था, एक पड़ोसी लड़की को गले लगाया, जिसके साथ उसका प्रेम संबंध था। हालाँकि, वहाँ यह बहुत दुर्लभ नहीं था, लेकिन लोग छिप छिप कर गपशप करते हैं कि उसने उसी समय उसे घर छोड़ने के लिए कहा। लोग कहते हैं, अपमान से बचने के लिए आम-छोमो का पति चला गया।

तब से आम-छोमो अपने दो बच्चों के साथ अकेली ही रह रही थी। एक गोर्खा परिवार कुछ समय पहले किराए पर घर का निचला खण्ड के एक हिस्से में रहता था। उसके एक छोटे से हिस्से में उनकी एक दुकान भी थी।

समय समय पर आम-छोमो अन्य कमरों को भी किराए पर दे देती थी।

वह लड़की, जिसके साथ शेरब ताशी इधर-उधर घूम रहा था, संभवतः रिंकचेनगोम्पा से आया था, जो पास के एक पहाड़ी गांवड़ी, जो उत्तर पश्चिम की ओर स्थित लगभग दो से तीन घंटे की पैदल दूरी पर था। शेरब ताशी स्कूल का बहुत अच्छा छात्र था। अपने अधिकांश स्कूल के दिनों में वे शिक्षकों के क्वार्टर में रहा करता था, जिससे उन्हें अपने घरेलू कामों में मदद मिलती थी, जलाऊ-लकड़ी, दूध, अंडे आदि लाने और विशेष रूप से देसी बुख़ारी को जलाने के लिए। मदद के बदले में उसे भोजन, कपड़े और कभी-कभी आर्थिक मदद भी दी जाती थी। अपनी स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने कहीं प्रशिक्षण प्राप्त किया और निकट भविष्य में नौकरी की उम्मीद थी।


मठ के परिसर में समारोह कुछ और दिनों तक जारी रहा।

शेरब ताशी ने रिंकचेनगोम्पा की उक्त लड़की पेमा के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाया, वह उससे, उसके परिवार, दोस्तों और पसंदीदा चीजों के बारे में अधिक जानने के बाद उससे कुछ और बार मिले।


एक शाम तीनों दोस्तों ने उस नवोदित रिश्ते के बारे में आत्ता से चर्चा की। आत्ता ने कभी भी अन्य लोगों या उनकी गतिविधियों से सम्बंधित मामलों पर चर्चा करने में रुचि नहीं दिखाई।


लेकिन बाद में उन तीनों को पता चला कि शेरब ताशी ने पहले ही आत्ता को उनकी मदद के लिए अनुरोध किया। शेरबने यह भी बताया कि उसके माता-पिता बहुत ही सरल और गहरे-धार्मिक थे। अगर वे कोई लामा या एक साधारण अनपढ़ लेकिन अच्छी स्वास्थ्य वाला ग्रामीण लोक के साथ शादी करते हैं, तो वे खुश होंगे।


आशंका थी, "उसके माता-पिता को कैसे मनाएँ?"

उक्त समस्या का हल खोजना कोई आसान काम नहीं था। आत्ता ने शेरब के बचपन के दिनों को याद किया। वह बहुत आज्ञाकारी लड़का था। फुटबॉल उसका पसंदीदा खेल था। उसके उत्कृष्ट प्रदर्शन के कारण स्कूल ने कई टूर्नामेंट जीते।


एक सुबह छात्रों को आत्ता के स्थान पर स्कूल की रसोई में एक नया आदमी मिला। उसका नाम डंगला था। वह आदमी लगभग ख़ुद आत्ता जितना ही उम्र था। वह बहुत कम बोलता था लेकिन ईमानदारी से उन सभी कामों को किया जो आत्ता प्रतिदिन करते थे।


पिछली शाम आत्ता मठ में गया था। उनके बचपन के-मित्र वहाँ एक भिक्षु के रूप में रहते थे। उसे पता चला कि लड़की और वे लोग जिनके साथ वह समारोह में आई थी, वे सब चले गए। एक कोने में बैठकर उन्होंने प्रार्थना की और काफ़ी समय तक ध्यान किया और फिर उसने अपने दोस्त से एक भिक्षु के संपूर्ण पहनावा का एक सेट उधार लिया और उससे अनुरोध किया कि वह किसी को भी उसके बारे में नहीं बताए।


अगली सुबह एक मध्यम आयु के लामा निद्रालु पहाड़ी गांवड़ी, रिंकचेनगोम्पा में पहुँचे। उसने उन सभी को आशीर्वाद दिया, जिन्हें वह रास्ते में मिला था। चेहरे पर सदा-मुस्कुराहट के साथ उन्होंने उनकी भलाई के लिए प्रार्थना की। अंत में वह पेमा के घर के आंगन के पास पहुँचा। वह आड़ू के पेड़ के नीचे खड़ा था, जो स्वर्गीय-फूलों से सुशोभित था।

उनके घर के नीचे ढलान पर, सेब और आड़ू के पेड़ों की अच्छी संख्या थी। वहाँ से उस छोटी-सी गांवड़ी के कुछ घरों को भी देखा जा सकता है। निचली पहाड़ियों से परे उन्होंने नीचे देखा कि उस घर से बहुत दूर एक छोटी-सी घाटी थी (कम से कम तीन दिन की पैदल दूरी पर) और हरे-भरे शांत वातावरण के बीच सुनसान-सुनहरा डांगमेचू नदी को भी देखा।


खेतों में काम करने के लिए बाहर जाते समय पेमा के चाचा ने उन्हें देखा। उन्होंने उसे बहुत सम्मान के साथ झुकाया और उनसे अनुरोध किया, "कृपया हमारी भलाई के लिए प्रार्थना करें। कृपया, अंदर आएँ और थोड़ी देर आराम करें। हम एक बहुत कठिन समय से गुजर रहे हैं।"


और तब उसे पेमा के चाचा से पता चला कि पिछले कोई दिनों में वे जंगली जानवर का हमलों से डरते थे, क्योंकि पिछली कुछ रातों में एक तेंदुआ उनके घर के पास बार-बार घूम रहा है।

उन्होंने कहा, "भगवान आप सभी को आशीर्वाद दें, आप बहुत समर्पित लोग हैं"


उनसे बात करते हुए, उन्होंने उनकी बेटी पेमा को देखा, वह पास आई और लामा को उसी तरह झुकके प्रणाम किया, जिस तरह से उनके पारंपरिक शिष्टाचार मांग करती है। वह एक कालीन पर बैठ गया और अपने बगल की थैली से एक प्रार्थना-पुस्तिका निकाल ली। पुस्तक को खोलने से पहले धागा को एकजुट करते हुए वह अंतहीन-प्रार्थना का जाप करने लगा। वे लोग उसे फल, मेवे, पनीर और पारंपरिक हर्बल नमकीन-मक्खन-चाय की पेशकश की।


 जब वह जंगली-सुगंधित पौधों की पत्तियों से रगड़कर साफ किया गया लकड़ी-के-फर्श पर फैले हुए चमकीले-रंग के कालीन पर बैठ गया, तब पेमा ने उनके बाएँ पैर के उभरे हुए पिंडली की मांसपेशियों के करीब स्पष्ट चोट-का-निशान को देखा। उसी समय वह उसे पहचान लिया। लेकिन वह शांत बनी रही और एक हल्का मुस्कान दिया जो उसके होठों के चारों ओर चमकती रही, तब वह घर का भीतर के मार्ग की ओर मुड़ गई थी।

पेमा के बुजुर्गों ने महसूस किया कि उन्हें उस 'दैवाधीन-भेंट' द्वारा शुभकामना दी गई है। इस प्रकार वे दो, मतलब पेमा के माता-पिता, ने एक साथ पूजा करने का फ़ैसला किया और घर पर एक बहुत ही विशेष प्रार्थना करने की योजना बनाई।


पेमा को सभी ज़रूरी इंतज़ाम करने के निर्देश दिए गए थे।


आत्ता आड़ू के पेड़ के नीचे खड़ा था, दिव्य-सुगंध-वाले स्वर्गीय-फूलों से पेड़ सुशोभित था और नीचे लंबे साँप-जैसा-ट्रेकिंग-पथ को देखा। वह अन्यमनस्क था, धीरे-धीरे दूर से गोधूलि के अंधेरे आ रहा था।

वह कुछ सेकंड के लिए सुंदर आड़ू के पेड़ के पास खड़ा रहा और धुंधली-अंधेरी-पहाड़ियों और तैरते विचित्र आकृति-वाला सिरस-बादलों की ओर, बस वह केवल उसी को देख रहा था।


अंत में ‘लामा-की-छद्म-वेश-में आत्ता' जितनी तेजी से हो सकता था उतना ही तेजी से चल रहा था घर वापस जाने के लिए।


रास्ते में उन्हें मिले एक भिक्षु और उनके सहयोगी संभवतः पास के एक मठ में जा रहे थे। भिक्षु का सहयोगी आत्ता के करीब आया और उसे सम्मान के साथ सिर झुकाकर अभिवादन किया और उसके होठों के चारों ओर एक विशिष्ट चमकती मुस्कुराहट के साथ फुसफुसाया, "कृपया अपने स्थान पर वापस जाते समय ध्यान रखें क्योंकि ताशी-वामडोंग-स्कूल में दिन-का-भोजन के लिये काफ़ी अच्छी संख्या में बाल-बच्चे आपका इंतज़ार कर रहा हैं ।"

आत्ता पूरी तरह से हैरान हो गया था, लेकिन प्रतिक्रिया नहीं किया और शांत बना रहा। उसने उसे सम्मान के साथ सर झुकाकर अभिवादन किया और धीरे-धीरे चलना जारी रखा। 


आत्ता थोड़ा-थोड़ा तुहिन-से-ढके निद्रालु पहाड़ी-गांवड़ी से विदाई ली, स्नेहपूर्वक सर्वशक्तिमान से मन-के-भीतर अनुरोध किया, "हे परमेश्वर, मेरी समस्त सादगी और शांति के साथ मैंने पेमा के घर की भलाई के लिए ईमानदारी से प्रार्थना की। हे भगवान, इस परिवार के सदस्यों को आशीर्वाद दें।"


शेरब ताशी की शादी कुछ महीनों के बाद पेमा के साथ हुई थी। स्थानीय मठ के एक भिक्षु ने उनकी शादी सम्पन्न की। समारोह में बहुत कम लोग शामिल हुए। माँ अपने बेटे और बहू को पास के कई मठों में ले जाती थीं आशीर्वाद पाने के लिए।


एक शाम वे अपने इलाके के एक मठ में शाम की प्रार्थना में शामिल होने आए। संध्या की प्रार्थना में शामिल होने के लिए आत्ता और उसका दोस्त डंगला भी आए। गर्भगृह के भीतर धूप और लोहबान का धुआं काफ़ी घना था।

पेमा शेरब ताशी के बाएँ कान के पास अपना मुँह काफ़ी करीब लाते हुए फुसफुसाया, "देखो वह आदमी 'एक भिक्षु के भेष में' रिंकचेंगोमपा में हमारे घर आया था।" उसने अपने दाहिने हाथ की तर्जनी को आत्ता को दिखाते हुए इशारा किया। उसने यह भी कहा, "मैंने उसे पहचान लिया था और मुझे पता था कि हम उससे पहले मिले थे।"

शेरब ताशी ने मुस्कुराते हुए कहा। वह जानता था क्योंकि आत्ता ने उस दुस्साहसिक घटना को उसके साथ साझा किया था।


अंत में वे मठ से बाहर आए और बड़े आंगन में खड़े हो गए। शेरब ताशी ने देखा कि आत्ता और उसका दोस्त एक अज्ञात भिक्षु से बात कर रहे थे। उस भिक्षु के इशारों से पता चला कि वह बहुत जल्दी में था।

"क्यों वह आदमी इतना जल्दी में प्रतीत होता है?" पेमा आश्चर्यचकित हो गया।

शेरब ताशी की माँ ने एक भिक्षु को प्रणाम किया और आशीर्वाद प्राप्त किया। उस भिक्षु ने उसे दूसरे भिक्षु से मिलवाया।

और फिर शेरब ताशी को आत्ता से पता चला कि रिंकचेनगोम्पा से लौटते समय आत्ता जिस भिक्षु से मिला था, वह शेरब के लापता पिता के ठिकाने को जानता था। आत्ता ने सोचा की रिंकचेनगोम्पा के वह यात्रा ने वास्तव में एक 'दैवाधीन-भेंट' संभव किया था।

शेरब के पिता का पता पाने के लिए माँ, बेटा और बहू मठ से बाहर आँगन में इंतज़ार कर रहे थे, एक वरिष्ठ लामा से मिलने के लिए । लेकिन आखिरकार उन्हें मठ से एक संदेश मिला, "उन्हें एक गुप्त मिशन सौंपा गया है, वह निश्चित रूप से आएंगे और कुछ समय बाद अपने परिवार से जुड़ेंगे।"

… … …


 गंगा शून्यमनस्क थी, वह बाहर की ओर देख रही थी... वह खिड़की से बाहर केवल देख रही थी बिना उद्देश्य के ...बहती हवा ने पवित्र शास्त्र-के-शब्दों और तांत्रिक-रूपांकनों के पारंपरिक ठप्पा-छपाई के साथ सजाए गए लंबे प्रार्थना-झंडे के शुद्ध-रेशम के ध्वजा को फहराया।आज भी गंगा स्मरण करती है, "यह कैसा अजीब किस्सा था!" …

अगली छोटी-छुट्टी में उसने बाहर जाने की योजना बनाई और उस समय एक 'थ्रिलर' की रचना करने की सोच रही थी, जो उसने पहले कभी नहीं किया था। सरकार आउट-ऑफ-स्टेशन नहीं जा सके क्योंकि यह बोर्ड के छात्रों के लिए विज्ञान विषयों को दोहराने का समय था।

गंगा गुवाहाटी में कामरूप-एक्सप्रेस से नीचे उतर गई, और उसके बाद, शिलांग जाने के लिए एक ऊबेर-कार के अंदर बैठकर उसने सोचा कि वह इस समय 'रस्किन' के साथ संपर्क नहीं करने जा रही, शायद 'जेम्स' के साथ लेकिन 'रस्किन' के साथ तो बिल्कुल भी नहीं।  


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