Hari Lal

Others

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दुष्टता का फल

दुष्टता का फल

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अशोक और विनय एक ही ऑफिस में काम करते थे. दोनों में मित्रता भी थी, परन्तु काम और बुद्धिमानी के मामले में विनय जहाँ होशियार था वहीँ अशोक की कामचोरी और सहयोगियों के प्रति जलन से सभी वाकिफ़ थे. एक तरफ अशोक जहाँ स्वयं काम से जी चुराता था, वहीँ दूसरों के काम बिगाड़ने के लिए वह हमेशा साजिशें रचता रहता था. विनय से दोस्ती होने के बावजूद वह उसे हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता. परन्तु विनय सबकुछ जानते हुए भी अशोक की हरकतों को नज़रअंदाज कर देता था. ऑफिस में आए दिन अशोक की हरकतों से सभी कर्मचारी परेशान रहते थे. एक दिन तब हद हो गई जब ऑफिस के खाते में गड़बड़ी पाई गई. अशोक और विनय ऑफिस में कंपनी का हिसाब-किताब रखने वाले लेखा विभाग में कार्यरत थे. विनय की बुद्धिमता और उसकी ईमानदारी को देखते हुए कंपनी ने लेखा-जोखा का भार उसे सौंपा था. विनय सुलझे हुए तरीके से अपनी जिम्मेदारी को निभा भी रहा था. सभी उसके कामों की तारीफ भी करते थे. यही बात विनय के कनिष्ठ के तौर पर काम कर रहे अशोक को नागवार लगती थी. दुष्टता में वह विनय को बदनाम करने के लिए साजिशें रचता रहता था. विनय को बदनाम करने की कोशिशें तो उसने कई बार की थी, परन्तु हर बार उसे मुंह की खानी पड़ती थी. अंततः एक दिन ऐसा आया कि अशोक की दुष्ट कारगुजारी की वजह से विनय बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया.


दरअसल ऑफिस के हिसाब में पचास हजार रूपये की गड़बड़ी पाई गई. पैसे के गड़बड़ी की खबर से पूरे ऑफिस में हंगामा मच गया. जांच में पता चला कि लेखा विभाग में छोटे खर्चों के लिए रखे गए रकम में से पचास हजार रूपये चुराए गए हैं. शक की सुई सीधे तौर पर विनय पर गई. विनय के लाख सफाई के बावजूद कंपनी प्रबंधन ने उसके तर्क को नकारते हुए उसे नौकरी से निकाल दिया. जबकि पैसों के गबन की हकीकत कुछ और थी. पैसे अशोक ने चुराए थे. विनय भी इस बात को जानता था परन्तु कोई सबूत न होने के कारण वह अशोक को दोषी ठहराने में असमर्थ था. इधर अशोक अपने मंसूबे को पूरा होने पर मन ही मन खुश था.

अब जैसा कि संभावित था, पैसों के गबन में एक बार सफल होने के बाद अशोक की हिम्मत बढ़ गई. उसने देखा कि चोरी तो उसने की थी परन्तु फंसा तो विनय और सजा भी उसे भुगतनी पड़ी. वह एक बार फिर से पैसे चोरी करने की योजना बनाने लगा. परन्तु उसे यह पता नहीं था कि ऑफिस के अन्य सभी कर्मचारी विनय वाली घटना के बाद से सतर्क हो गए थे. इसकी वजह थी कि कोई भी कर्मचारी विनय को दोषी मानने को तैयार नहीं था. सभी को लगभग अशोक पर ही शक था. इसी शक के मद्देनज़र सभी की नज़रें हमेशा अशोक की गतिविधियों पर लगी रहती थी. परन्तु दुष्ट अशोक को अपनी चालाकी पर बड़ा गर्व था और वह छिपी नज़रों की जासूसी से अनजान बना रहा.


कई दिनों से लेखा विभाग से पैसे चुराने की जुगत में लगे रहे अशोक को आज मौका मिला था. लेखा विभाग के प्रमुख को अचानक एक इमरजेंसी फ़ोन आने के कारण कुछ देर के लिए बाहर जाना पड़ा. जल्दबाजी में वह नगद वाले आलमारी की चाबी अपने टेबल पर ही भूल गए. अशोक की नज़रें उस चाबी पर गड़ी रहीं. वह लंच के समय का इंतजार बेसब्री से करने लगा. उसे डर था कि कहीं बड़े बाबू लंच से पहले वापस न आ जाएं. कुछ समय पश्चात लंच का समय आया और लेखा विभाग के सभी कर्मचारी लंच के लिए बाहर जाने लगे, परन्तु अशोक वहीँ अपनी कुर्सी पर जमा रहा. एक सहयोगी के पूछने पर उसने बताया कि आज उसकी तबियत ठीक नहीं है इसलिए वह लंच करने बाहर नहीं जाएगा. अशोक के व्यव्हार पर अन्य कर्मचारियों को शक हो गया था. अंततः सभी ने फैसला किया कि आज अशोक पर विशेष नज़र रखी जाए. उसकी हरकतों पर नज़र रखने के लिए मोबाइल फ़ोन से रिकॉर्डिंग करने का फैसला किया गया. सभी कर्मचारियों ने लंच के लिए बाहर जाने का कार्यक्रम त्यागकर और वहीँ कमरे के बाहर छिपकर अशोक की निगरानी शुरू कर दी.


कुछ देर तक तो अशोक अपनी कुर्सी पर बैठा रहा. कुछ देर बाद जब उसे लगा कि अब सभी बाहर चले गए हैं तो उसने निश्चिंत होकर बड़े बाबू के टेबल पर रखी चाबी उठाई और आलमीरा खोलकर वहां रखी पूरी नगदी को उठा लिया. महीना का अंत होने के कारण आज नगदी कम थी. उसने झटपट नगदी निकाली और आलमीरा को बंद कर नगदी को अपने टेबल के दराज में रखे फाइलों के नीचे दबा दिया. किसी को शक न हो इसलिए चाबी को बड़े बाबू के टेबल के दराज में डाल कर उसने एक लंबी श्वांस ली और घबराहट में माथे से टपक रहे पसीने को पोछकर अपनी कुर्सी पर इत्मीनान से आकर बैठ गया. उसे नहीं पता था कि उसकी हरकतों पर सभी की निगाहें लगी हुई है और उसे मोबाइल में रिकॉर्ड भी किया जा रहा है.

कुछ समय बाद लंच का वक्त खत्म हो गया और सभी कर्मचारी अपनी-अपनी जगह पर आकर बैठ गए. इस दौरान लेखा विभाग के बड़े बाबू भी लौट चुके थे. सभी शांत भाव से अपने काम में जुट गए, परन्तु अशोक के चेहरे पर घबराहट और तनाव के लक्षण स्पष्ट दिख रहे थे. बड़े बाबू को याद आ गया था कि आलमीरा की चाबी वे टेबल पर ही भूल आए हैं इसलिए आते ही पहले तो उन्होंने चाबी खोजनी शुरू की. इधर-उधर खोजने के बाद जब उन्होंने दराज खोला तो उन्हें चाबी वहीँ पड़ी हुई मिली. चाबी मिलने पर उन्हें सकून मिला और फिर वे नगदी रखने वाले आलमीरा की ओर बढ़े. बड़े बाबू की हरकतों को अशोक तिरछी नज़रों से देख रहा था. जब उसने देखा कि वे आलमीरा की ओर बढ़ रहे हैं तो उसकी दिल की धड़कने बढ़ गई. इस बीच आलमीरा खोलते ही बड़े बाबू चीख पड़े, ‘पैसा कहां गया.’ बड़े बाबू की चीख सुनते ही सभी कर्मचारी अपनी जगहों से उठकर उस ओर भागे. सभी ने देखा कि आलमीरा में नगदी नहीं है.

एक बार फिर से पूरे ऑफिस में कोहराम मच गया. डर के मारे बड़े बाबू के आँखों में आंसू आ गए थे. उन्होंने अपने आपको निर्दोष बताया. इसी बीच कंपनी के मालिक भी वहां आ गए और बड़े बाबू से बोले कि मैं जानता हूं कि आप निर्दोष हैं और केवल हम नहीं बल्कि सभी लोग जानते हैं कि चोरी किसने की है. आपसे पहले चोरी की जानकारी मेरे पास पहुंच चुकी है और वह भी सबूत के साथ. हमने पुलिस को भी बुला लिया है. फिर भी मैं एक मौका उसको देना चाहता हूं जिसने चोरी की है. अगर वह स्वयं स्वीकार कर लेगा तो उसे पुलिस के हवाले नहीं किया जाएगा. इतना सुनते ही अशोक परेशान हो उठा और धीरे से खिसकते हुए वहां से भागने की कोशिश करने लगा. उसे नहीं पता था कि सबकी निगाहें उसी के ऊपर है. जैसे ही अशोक दरवाजे की ओर लपका एक कर्मचारी ने उसका हाथ पकड़ लिया. इसी बीच पुलिस भी वहां आ गई थी. कंपनी के मालिक ने अशोक के लाख गिडगिडाने के बावजूद उसे पुलिस के हवाले कर दिया. आज सभी को अशोक की दुष्ट प्रवृत्ति के कारण विनय जैसे होनहार कर्मचारी को खोने का दुःख हो रहा था. परन्तु सभी को ख़ुशी इस बात की थी कि अशोक को उसके किए का फल मिल गया और आगे से उसकी दुष्टता का शिकार ऑफिस में किसी और को नहीं होना पड़ेगा.


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