दादी का घर
दादी का घर
गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो चुकी थी। मई का महीना खत्म हुआ और जून का महीना शुरू हुआ। गर्मी में जेठ की दुपहरी का अपना अलग ही आनंद होता है। सब अपने दादा दादी, नाना नानी, मामा मामी, मौसी के यहाँ घूमने जाते हैं। पूजा अपनी दादी के गाँव सफीपुर जाती हैं। गाँव का दृश्य बड़ा ही मनोरम लगता है। हरे भरे खेत-खलिहान ट्रेक्टर, नलकूप, आम का बगीचा, ताज़ी ताज़ी सब्जियों का खेतों से लाना, अविस्मरणीय पल होता है। जून के मध्य तक मानसून आता है। आंधी आती है और खूब आम टूटते हैं। पूजा का आम को पेड़ो से तोड़ना एक अलग ही एहसास दिलाता है। घर में एक बड़ा से द्वार बैठक है। कमरे में खिड़की खुली थी। पूजा पलंग पर बैठकर पढ़ रही थी। तभी एक चिड़िया खिड़की से अंदर आई। वह कभी मेज पर, दरवाजे पर तो कभी रसोईघर में बैठ जाती। थोड़ी देर बाद वह पलंग पर जा बैठी। पूजा को लगा की चिड़िया थक गई है। वह रसोईघर से कटोरे में पानी और थोड़ा बाजरा ले आयी। चिड़िया बाजरे के दाने चुगने लगी। पूजा बड़े गौर से देखते हुए ख्यालों में खो गई बचपन में माँ उसे अपने हाथों से खाना खिलाया करती थी। वह मन ही मन सोचकर मुस्कुरा दी। तभी दादी ने आवाज लगाई पूजा ......................... क्या कर रही बेटा?????