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Amrita Pandey

Children Stories

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Amrita Pandey

Children Stories

चुनमुन, जूली और बच्चे

चुनमुन, जूली और बच्चे

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चुनमुन सात साल का बड़ा ही प्यारा बच्चा था। हमेशा मुस्कुराते हुए चेहरे में दो प्यारी सी आंखें चमकती रहती थीं और हमेशा कुछ खोजती रहती थीं। एक दिन संगीत कक्षा से लौटते वक्त उसने देखा कि उसके गली में रहने वाली जूली ने छोटे-छोटे तीन बच्चे दिए हैं। दिसंबर का महीना था। बारिश हो रही थी। ठंड अपने शबाब पर थी। तीनों बच्चे मां से चिपके हुए सड़क के किनारे पड़े थे। चुनमुन से देखा ना गया। उसने दो बच्चों को गोद में उठाया और संभल संभल कर चलते हुए उन्हें घर के गेट से अंदर कर तीसरे को लेने वापस चला गया। चूंकि बच्चों की मां जूली को मोहल्ले के बच्चे, खासकर चुनमुन दुलारता रहता था और खाना भी दिया करता था इसलिए उसने भी कोई विरोध नहीं किया। वह भी उठकर पीछे पीछे चली आई। चुनमुन की मां ने देखा तो बोली "बेटा इन्हें क्यों उठा लाए हो..? घर में इतनी जगह कहां कि तुम इन सब को यहां रख लोगे। देखो इन्हें बाहर ही रहने दो, वही दूध रोटी दे आना।"

चुनमुन की आंखों में आंसू आ गए। "मम्मा, बाहर कितनी ठंड है। बारिश भी हो रही है।

प्लीज, ये जीने के नीचे वाली जगह पर रह जाएंगे।" जूली बड़ी कातर निगाहों से देख रही थी। शायद कुछ कहना चाह रही थी पर बेजु़बान जो थी। मां को भी तरस आ गया। अपने नन्हे चुनमुन पर उन्हें गर्व भी हो रहा था।

मां ने गत्ते के डिब्बे में पुरानी चादर बिछा दी, जिसमें चुनमुन ने तीनों बच्चों को सुला दिया। काले, सफेद और भूरे बच्चों में से सफेद बच्चा सबसे ज्यादा चुस्त था। तीनों चूं-चूं करते धीरे-धीरे आंगन में घूमने लगे। चुनमुन ने उन्हें शाइनी, सिल्की और ब्राउनी का नाम भी दे दिया। धीरे-धीरे एक महीना बीत गया। चुनमुन की सेवा का असर उनमें साफ दिखाई दे रहा था।

तीनों बच्चे स्वस्थ और तंदुरुस्त थे। छोटा सा फ्लैट था जिसमें इन चार नये प्राणियों को रखना बहुत मुश्किल होने लगा था। एक दिन मां की कोई सहेली आई और एक बच्चे को ले जाने की इच्छा जाहिर की। मां ने भी चुनमुन को मना लिया।

चुनमुन के माता-पिता ने कुछ दिनों के लिए छुट्टियों में घर जाने की योजना बनाई थी पर सवाल था कि जूली और उसके दो बच्चों का क्या होगा...?

अगले दिन उनका माली आया। मां ने माली भैया को अपनी मुश्किल बतायी तो वह ब्राउनी को ले जाने को तैयार हो गया। उसे अपनी नर्सरी में ब्राउनी की जरूरत थी। अब बचा सिल्की जिसे चुनमुन के माता पिता ने अपने साथ गांव ले जाने का फैसला किया। चुनमुन पूरी तरह आश्वस्त था कि उसे तीनों बच्चों के बारे में खबर मिलती रहेगी। मां पापा की समस्या भी सुलझ गई और चुनमुन भी खुशी-खुशी अपनी तैयारी में व्यस्त हो गया।


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