बरेली नगरी नाथ नगरी एक परिचय :
बरेली नगरी नाथ नगरी एक परिचय :
बरेली। बरेली अर्थात पांचाल नगरी यानी द्रोपदी का मायका। यहां गुरु द्रोणाचार्य द्वारा बसाया गया गांव गुरुगवां है तो यहीं विशनपुरी लीलौर गांव में यक्ष और युधिष्ठिर संवाद की साक्षी झील भी है। महाभारत में पांचालों के राजवंश को भरजवंश कहा गया है। महाभारत के अनुसार राजा द्रोपद की पुत्री द्रोपदी का स्वयंवर इसी नगर में हुआ था। वैदिक वाड्मय के अनुसार प्रसिद्ध पांचाल नरेश प्रवाहणि जैबलि राजा जनक के समकालीन थे। ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार पूर्व समय में भारत पांच प्रमुख भागों प्राच्च, दक्षिण, प्रतीच्य, उदीच्य और मध्य देश में विभाजित था। कुरु पांचाल मध्यदेश की सीमा में आते थे। पांचाल जनपद में वर्तमान उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूं, एटा, फर्रुखाबाद तथा रूहेलखण्ड के समीपवर्ती जिले सम्मिलित थे। यहां पूर्व में गोमती व दक्षिण में चंबल नदी प्रवाहित होती थी। उत्तर में गंगोत्री के समीपवर्ती जंगलों तक पांचाल की सीमा थी। उत्तर में घने वन थे। यहां पवित्र पावनी गंगा कुरु व पांचाल जनपदों का विभाजन करती थी। उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र थी। दक्षिण पांचाल गंगा से चंबल नदी तक विस्तृत था। बौद्ध साहित्य की सूचनानुसार यहां पर भगवान गौतमबुद्ध ने 7 दिन धार्मिक प्रवचन दिये। महात्मा बुद्ध के जीवन तक पांचाल नगर उत्तरी भारत का एक महान समृधिशाली एवं शक्तिशाली जनपद रहा। सातवीं शताब्दी के चीनी यात्री हवेन्सांग ने भी इसका उल्लेख एक महत्वपूर्ण नगर के रूप में किया। वर्षों तक यहां नागवंशीय शासकों ने भी शासन किया है।
ग्यारहवीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणों के परिणाम स्वरूप अहिच्छत्र (पांचाल नगर) नष्ट हो गया जो बाद में मुगल शासकों के अधीन रहा। किसी समय यहां बांस व बरेल (बेंत) के घने जंगल थे। यहां के बेंत-बांस नक्काशीदार फर्नीचर के दुनिया भर में चर्चित थे। इससे प्रभावित होकर तत्कालीन कठेरिया राजवैद्य राजा जगत सिंह ने अपने दोनों पुत्रों के नाम ही बांसल देव और बरेल देव रख दिये। इन्हीं राजकुमारों के संयुक्त नाम पर 1537 में पांचाल नगरी का नाम बांसल-बरेल हो गया। फिर चलताऊ जुबान में बरेली हो गया। कट्टर मुस्लिम बादशाह आलमगीर औरंगजेब के शासनकाल में उसके नाम से आलमगिरी गंज मोहल्ला बसा। रूहेलों ने भी इस क्षेत्र पर अपना अधिकार रखा। रुहेला मूलतः अफगानिस्तान के रहने वाले थे। गुलाम दाऊद खां के दत्तक पुत्र अली मुहम्मद खां के समय से यह क्षेत्र रूहेलखण्ड के नाम से जाना जाने लगा। रुहेला सरदार हाफिज रहमत खाँ का वंश रुहेलखण्ड राज्य की स्थापना में मुख्य भागीदार था। अफगानिस्तान के शासक शाह आलम खां के बेटे हाफिज रहमत खां मुरादाबाद, रामपुर, पीलीभीत के बाद अल्मोड़ा और गढ़वाल को भी जीतकर रूहेलखण्ड में मिलादिया। विभिन्न कबीलों और बाहर से आने वाले लोगों के बस जाने के कारण यह क्षेत्र मिली-जुली संस्कृति का असर रखता है। यहां बौद्ध शैव और जैन मतावलंबियों के साथ ही वैदिक युग की मान्यताओं का प्रभाव समाज में देखने को मिलता है। जैन धर्म के 23वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने की तपस्या कर कैवल्यज्ञान की प्राप्ति की। तपस्या के समय वर्षा से बचाने के लिए भगवान पार्श्वनाथ के सिर पर एक सर्प ने छत्र बनाकर उनकी वर्षा से रक्षा की। सर्प (अहि) के छत्र बनाकर रक्षा करने के कारण इस क्षेत्र का नाम अहिच्छत्र पड़ा।
माँ काली के अनन्य भक्त संत शिरोमणि सतगुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने यहां 3 दिन प्रवास के दौरान अपने ओजस्वी वक्तव्य से जनमानस को अवगत कराया था। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1883 ई. में यहाँ अनाथालय की स्थापना की। हिंदुस्तान की आजादी में बरेली के अनेको वीर शहीद हुए उन्हीं में एक खान बहादुर खान के बेटे रहमत खां थे जिन्हें 1858 में अंग्रेजों ने पुरानी कोतवाली में बरगद के पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी। हाफिज रहमत खां को कैंट स्टेशन रोड स्थित सिगनल कोर के पास स्थित किला में बंदी बनाकर रखा गया। इस बंदीगृह को उत्तर भारत के लेफ्टिनेंट जनरल एसपी तंवर ने बरेली फोर्ट के नाम पर दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित कर सराहनीय पहल की है।
