बिन कन्या यह कैसा कन्यादान ?
बिन कन्या यह कैसा कन्यादान ?


कन्यादान को सरल भाषा में दहेज भी कहा जाता है, और भी आसान शब्दों में हम इसे रिश्वत या घूसखोरी भी कह सकते हैं, क्योंकि माता-पिता अपनी पुत्री के विवाह के समय कन्या को तो दान करते ही हैं, साथ ही साथ एक मांग को भी दहेज के रूप में पूरा करते हैं, जो पुरुष के परिवार द्वारा मांगी जाती है| भारतीय कानून के मुताबिक दहेज लेना या देना कानून जुर्म है, परंतु यह जुर्म तो शायद अब भी उसी सीमा पर है जिस सीमा पर वह तब था जब यह कानून बनाया गया था| हमारी सरकार ने इस कानून को लागू करने के लिए बहुत से कदम उठाए हैं लेकिन कभी-कभी सरकार के अलावा जनता को भी , नियम और कानून का पालन खुद से करना पड़ता है क्योंकि सरकार 130 करोड़ भारतीयों के घर पर आकर नियम और कानून को लागू नहीं करवा सकती इसलिए जनता को भी अपना सहयोग खुद से देना अनिवार्य होना चाहिए|
वैैसे तो हैदराबाद बहुत ज्यादा जनसंख्या वाला शहर है, फिर भी यहां कि कुछ बस्तियों की सुबह गांव जैसी सुंदर और मीठी होती हैै | सुबह के साडे 5 बज रहे थे पंछियों कि चर चराहट, मंदिर में शंखनाद और घंटियों की आवाज ने सीमा कि मां की नींद खोल दी, उसने उठते ही अपनी बेटी को बड़े ही मीठे स्वर में जगाने की कोशिश की,
सीमा ओ सीमा? उठ जाओ, देखो सुबह हो गई, काम पर जाना है, जल्दी उठोगी, जल्दी जाओगी और जल्दी लौट आओगी, देर करोगी रात को लौटते देर हो जाएगी.....
सीमा ने कहा, मां सोने दो ना थोड़ी देर, मुझे नींद आ रही है..
सीमा वैसे भी बहुत काम करती थी दिन भर नौकरी करती, रात को घर आकर मां की मदद भी करती|
सीमा की मां अपनी प्यारी बेटी का मीठा आग्रह सुन उसेे थोड़ी देर और निद्रा देवी की बाहों में सौंप कर आंगन में झाड़ू लगाने चली गई| क़रीब आधे घंटे बाद सीमा की मां ने उसे जगाया, इस बार सीमा हड़बड़ा कर उठि और स्नान करने चली गई, सीमा बहुत ही मेहनती और सादे सरल स्वाभाव वाली लड़की थी| स्नान करते ही पूजा-पाठ और फिर अपनी मां केे कामों हाथ बंटाने के बाद अपना डिब्बा लिए अपने काम की ओर चल पड़ी|
सीमा के घर पर उसकी मांं के अलावा उसका बड़ा भाई और भाभी भी रहतेे थे| आर्थिक तंगी के कारण सीमा को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कई समझौते करने पड़ते थे थे, फिर भी वह स्वभाव से बहुत हसमुख थी अपने दर्द को कभी अपनी आंखों तक नहीं आनेेे दिया करती थी, सीमा पढ़ी लिखी ना होने के कारण छोटी सी दुकान में कपड़े सिलने का काम करती|
दुकन में कपड़े सिलते सिलते समय कब बीत जाता पता ही नहीं चलता, शाम के समय चाय की चुस्की लेतेे-लेते अपनी सहेलियों के साथ कुछ बातें कर लिया करती और हसी मजाक हुआ करता, उसी समय सहेलियों के बीच कहीं बाहर जाने की बातें हुई सबने मिलकर सिनेमा जाने का विचार रखा था लेकिन सीमा ने किसी और काम का बहाना बनाकर मना कर दिया, दरअसल उसके पास पैसे ना होने की वजह से सिनेमा देखने नहीं जा सकती थी वैसे तो सीमा का भी बहुत मन था सिनेेेमा देखने का,
उसकी सबसे चहेती सहेली दिशा ने उससे फिर से कहा चलना सीमा ऐसे मौकेेेे बार-बार नहीं आते, क्या पता शादी के बाद हम कभी इस तरह जिंदगी जी पाएंगे या नहीं अभी समय है अभी तो दोस्तोंं के थोड़ी साथ मस्ती कर ले...
दिशा की यह बातें सुन सीमा के मन में खयाल आया एक बार मां से पूछ कर देखती हूं फिर ओवरटाइम कर लूंगी और पैसे इकट्ठा कर लूंगी सीमा ने दिशा से कहा मैं तुझे मां से पूछ कर बताऊंगी क्या पता मां ने कुछ अलग सोच कर रखा होगा रविवार के दिन का इसीलिए पहले मां को बताना होगा.....
काम खत्म कर सीमा को घर पहुंचने तक रात के 8 बज गए थे| घर पहुंचने पर रोज की तरह मां दहलीज के पास ठहरी सीमा की राह देख रही थी जैसे ही वह घर आई मां की आंखों की चिंता दूर हुई और आंखों में हल्
की सी राहत और खुशी नजर आई,
सीमा को देख मां ने कहा, आ गई तू चल अब जल्दी से हाथ मुंह धो ले मैं खाना लगाती हूं...
सीमा ने कहा अरे मां अंदर तो आने दो फिर दोनों साथ में खाएंगे ना और भैया आ गए क्या? भाभी ने भी खाना खाया क्या?
मां ने कहा जब जवाब तुझे पता होता है तो सवाल ही क्यों है क्यों करती हो?
सीमा हल्की सी मुस्कान दिए अपनी मां का हाथ पकड़ अंदर आई और दोनों ने साथ में खाना खाया, खाना होने के बाद सीमा ने अपनी मां से सिनेमा वाली बात बताइ,
मां ने उसे सिनेमा जाने को हा कहा लेकिन शर्त में दूसरे दिन घर पर रहने को कहां,
सोमवार को सीमा को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे थे,
सीमा की मां ने उसे यह बात नहीं बताई क्योंकि सीमा शादी नहीं करना चाहती थी वह अपनी मां को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहतीं थी, सीमा कि मां ने बस कह दिया कि उसे काम है|
सोमवार का दिन आया, लड़के वाले घर पर आए, लड़का दिखने में ठीक-ठाक और सरकारी नौकरी वाला था, सीमा
गुणों की जितनी सुशील थी दिखने में उससे कहीं ज्यादा सुंदर भी थी इसीलिए पढ़ी लिखी ना होने के बावजूद लड़के वालों ने उसे बहुत पसंद किया, लेकिन चिंता की बात यह थी की उन्होंने दहेज में पांच लाख की रकम मांगी जो सीमा की मां के लिए इकट्ठा कर पाना लगभग नामुमकिन था पर वह यह रिश्ता हाथ से गवाना नहीं चाहती थी|
सीमा ने तो साफ-साफ इस रिश्ते से मना करने को कह दिया था क्योंकि वह जानती थी पांच लाख जितनी बड़ी रकम जमा कर पाना बहुत ही मुश्किल है| ऐसे ही दिन बीत रहे थे और सीमा की मां की जिद्द भी बढ़ती जा रही थी, अब तो सीमा की मां खुद काम कर रही थी वह भी घर पर सिलाई का काम करनेे लगी, सीमा ने बहुत समझाना चाहा लेकिन मां नहीं मानी अंततः सीमा ने हार मान ली और दुकान पर ओवरटाइम करनेे लगी हर रोज वो 8:00 बजे के बजाय घर पर 9:30 बजे आया करती और घर पर भी मां के साथ सिलाई का काम अथवा घर काम दोनों किया करती, ऐसे ही समय बीत रहा था आजकल सीमा की तबीयत बहुत खराब रहा करती लेकिन वह अपनी मां को अपनी तबीयत के बारे में नहीं बताती |
एक दिन आधी रात के समय सीमा ने अपनी 'मां की गोद में सर रखकर कहा मां अगर मैं अपने ससुराल चली जाऊंगी तो क्या तुम मुझे याद करोगी?'
मां ने अपनी आंखों में आते हुए आंसुओं को दबाते हुए कहा बेटी तो होती ही पराई है और तू खुश रहे, अपने परिवार में रहे यही तो मैं चाहती हूंं, बस एक बार तुझे तेरे घर भेज दूं तो मैं तेरी खुशी में बहुत खुश रहूंगी|
जैसे-जैसे सुबह के बाद दोपहर और दोपहर के बाद शाम का ढलना होता है वैसे ही सीमा कि तबीयत का बिगड़ना भी तेजी से बड़ रहा था और यह बात अब उसकी माँ से भी छिपी नहींं|
सीमा को टीबी की बीमारी हो चुकी थी और अब उसका बचना लगभग नामुमकिन सा था चूूूकी उसने प्रथम श्रेणी में टीबी का इलाज नहीं करवाया था और उसे अनदेखा किया था इसी वजह से इस बीमारी ने उसे अंदर से खोकला कर दिया था वैसे तो दहेज के लगभग पैसे जमा हो चुके थे लेकिन पैसों के होने के बावजूद भी सीमा का बचना नामुमकिन था| सीमा कई दिनों से अस्पताल में भर्ती थी उसकी मां भी उसके साथ ही अस्पताल में रहती, भाभी उसे और मां को खाना बनाकर भाई से भेजा करती और कभी-कभी देखने आया करती|
कई दिनों तक इस बीमारी से जूझने के बाद एक दिन सीमा के प्राण पखेरू जीवन रूपी पिंजरे से उड़कर कहीं आसमान में खो गए और मां को सबके बीच अकेला छोड़ गए|
अंततः सीमा की पगली मां बस यही कहती जाती कन्यादान जमा हुआ पर कन्या नहीं रही 'बिन कन्या यह कैसा कन्यादान?'