भूतिया फेक्टरी

भूतिया फेक्टरी

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पापा के अचानक मरने के बाद उनके सब बिज़नेस की जिम्मेदारी अब रोहन पे आयी थी। रोहन के पापा कि मौत कार एक्सीडेंट से हुई थी लेकिन ताज्जुब की बात तो ये थी कि गाड़ी कभी भी ड्राइवर ही चलाते थे। वो कभी कोई गाड़ी नहींं चलते थे। लेकिन सब लोग हैरान थे कि जिस दिन एक्सीडेंट हुआ उस वक्त वो खुद गाड़ी चला रहे थे। उनका देहांत हुआ तब रोहन लंदन में अपनी पढ़ाई कर रहा था। उसने हाल ही में कॉलेज कि पढ़ाई खत्म की थी। पिताजी की मौत कि खबर सुनके उसने लंदन छोड के अपने शहर अपने माँ के साथ ही रहने का फैसला किया क्यों के उसके पापा बहुत बड़े बिजनेसमैन थे और रोहन को कोई भाई बहन भी नहींं थे। घर में बस माँ अकेली थी और इसलिये उसने अपने पापा का पूरा बिज़नेस संभालने का सोच लिया था। इतनी कम उम्र होते हुये भी वो ये जिम्मेदारी उठाने के लिये तैयार था रोहन ने बिना किसी ताजुरबेके भी बहुत ही कम दिनों मे पूरे बिज़नेस पे अपनी पकड़ जमा ली।

उसके पापा के बहुत बिज़नेस थे। अब रोहन उनके तरह ही अपना दिमाग सही जगह लगा के अच्छे काम करने लगा था। सब जगह जहाँ फैक्टरियां थी वह वो खुद जा के देखता था। पूरे स्टाफ से बात किया करता था। कुछ गलत काम थे वो उसने बंद किये और लोगों की मांगें भी पूरी करता था पर एक जगह की फैक्ट्री जो एकदम सही जगह पे थी वो बंद थी। बल्कि वहाँ से तो बहुत पैसा भी मिलता था। वो उसके पापाने कुछ ही महीनों पहले किसी कारण वश बंद की थी। उसने उस के बारे में अपने पापा के सेक्रेटरी को पूछा तो उन्होने बताया कि वो फैक्ट्री भुतिया है। वहा एक आदमी की आत्मा रहती ही और वो फैक्ट्री चलने नहींं देती है। किसी को अंदर आने नहींं देता है वो।

बहुत लोगों ने कोशिश की लेकिन कुछ भी नहींं हुआ। वो और भी बोल रहा था तो रोहन ने ये बात हँसी में उड़ाई और बाद में अपने दोस्तों को बतायी। उसके दोस्तों ने भी ये बात हँसी में उड़ायी और वो भूत कौन है जिसने फैक्ट्री बंद करवाई ये देखने के लिय सबने अंदर जाने का फैसला लिया।

रोहन के साथ में वरून, सिमरन, जॉय और दीप्ती थे। रात को ठीक ११ बजे वो लोग फैक्ट्री के बाहर खडे थे। सब जगह का मुआयना किया तो पता चला के सब दरवाजों को बंद किया गया है तो जॉय ने एक जगह से खिड़की के कांच को पत्थर मार के तोड़ा और अंदर जाने का रास्ता बना लिया। जॉय को ऐसी भूत-प्रेत आदि चिजों का बडा शौक था और उससे उलटा वरुण था। उसको भूत प्रेतों से बहुत डर लागता था लेकिन उसको इन सब लोगों ने जबरदस्ती अपने साथ लिया था। अंदर जाते ही बहुत अंधेरे के वजह से किसी को भी कुछ नहींं दिख रहा था। सभी ने अपने मोबाइल कि बेट्री चालू की। दीप्ति ने कहा "ओय भूत, सामने तो आ.." और भूत का मजाक उड़ाया। वरुण बोला “दोस्तों, अभीभी हमारे पास वक्त है चलो यहाँ से वापस जाते हैं, मुझे बहुत डर लग रहा है।”।

जॉय बोला "अबे फट्टू हम है ना चुपचाप साथ मे चल वरना तुझे यही छोड़ देंगे।” और सब हँसने लगे। बेचारा वरुण उनके साथ चलने लगा। जॉय सबसे आगे था और सब जगह की तलाशी ले रहा था। तभी सबसे पीछे चल रही दीप्ती का किसी ने पैर छू लिया इसलिये वो जोर से चिल्लाई और बोली, “गाइज, मेरा पैर अभी किसी ने छुआ।" तो जॉय बोला, “अरे छुआ होगा किसी तुम्हारे ही आशिक ने, क्यों कि हर रोज तो किसी ना किसी को मारती ही रहती हो अपनी इन अदाओं से।" और सब जोर जोर से हँसने लगे और इस बात को नजर अंदाज करके फिर से फैक्ट्री तलाश करने लगे।

थोड़ी देर बाद फिर से किसी ने दीप्ती का पैर छुआ लेकिन इस बार उसने दोस्तों को बताया नहींं क्योंकि वो फिर से हँसी उड़ाते और वो बहुत डर गयी थी। कुछ देर बाद सब कुछ देखने के बाद जॉय बोला, “अबे यार शायद उस सेक्रेटरी को किसी ने कुछ गलत बताया है, यहाँ पे तो न भूत है नहींं किसी भूत का साया। साला इतनी अच्छी जगह को ख़ामख्वा बंद करवाया।” तभी दीप्ति का पैर फिर से किसी ने छुआ लेकिन इस बार बहुत जोर से पकड़ा और उसको जोर से घसीटते हुए दूर ले के गया। सबको कुछ समझने से पहले ही उसको वहाँ से घसीट के दूसरे रूम में ले गया और अब बस उसकी चीखें ही आ रही थी। अब सबको डर लगने लागा और डरने के साथ साथ दीप्ती को आवाज देके सब कमरे ढूंढ़ रहे थे अचानक सबके मोबाइल की बैटरी बंद हुई और अब तो इतना सन्नाटा फेल गया था के सबको अपने दिल कि धड़कनें भी सुनाई दे राही थी और ठंड के मौसम में भी पसीना आ रहा था। अंदर अब बस खिड़कियों से चाँद की हलकी सी रोशनी आ रही थी।

तभी अंदर की चीजें जैसी ऑइल के खाली डिब्बे, नट बोल्ट्स जैसी चीजें सब हिलने लागी।

खिड़कियों के दरवाज़े भी हिलने लगे, सबको सिमरन ने कहा "चलो इधर से बाहर जाते हैं और लोगों को बुलाकर दीप्ती को बचाते हैं।" सब लोगों को ये बात सही लगी और सब बाहर जाने का रास्ता ढूंढने लगे लेकिन सबकी कोशिश बेकार गयी। किसको भी बाहर जाने का रास्ता नहींं मिल रहा था और दरवाजे थे वो बाहर से बंद कर दिए गए थे। 

और उसी समय एक कमरे का दरवाजा खोला तो वहाँ पे एक लड़की पड़ी मिली । जॉय, वरुण, राहुल उसे देखने गए। उनको लगा के दीप्ति होगी लेकिन वो तो सिमरन थी सब लोगों ने उसे उठाया लेकिन सिमरन तो साथ में ही थी ! अब सब लोग हैरान हो गए। 

और इतने समय जो सिमरन थी वो पीछे खड़ी थी उसको देखने मुड़े तो वो वहाँ नहींं थी। सब लोग बहुत ज्यादा डर गए थे। ये सब क्या हो रहा है उनके कुछ समझ नहींं आ रहा था। सिमरन को वरुण ने पूछा की "तू यहाँ कैसी आई, और बेहोश कैसी हो गई ?" तो सिमरन बोली "जब हुम् लोग दीप्ति को ढूंढ रहे थे तभी मुझे भी किसी ने अंदर खीच लिया।" किसी को कुछ समझ में नहींं आ रहा था और सब लोग दीप्ति को ढूंढ़ने लगे और तभी एक और कमरे का दरवाजा खोला तो कोई गिरा हुआ मिला तो वो वरुण था और अब तक का वरुण जो साथ में ही था सब उसको देखने लगे तो वो भागा और दीवार के अंदर गायब हो गया !

क्या चल रहा था किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था सब लोगों ने एक दूसरों के हाथों को पकड़कर चैन बना ली ताकि फिर से ऐसा कुछ ना हो। अब एक कमरे का दरवाजा खोला तो वहाँ दीप्ति बैठी थी। उसके पैरों से से खून बह रहा। उसको किसी ने बहुत जोर से खिंचा था। सिमरन ने अपना स्कार्फ़ उसके पैर को बांधा ताकि ज्यादा खून ना बह जाए।

अब दीप्ति भी मिल गयी थी तो सबको थोड़ा सुकून मिला और अब सब लोग मिलके बाहर जाने का रास्ता या फिर कुछ मदत मिलती है ये देख रहे थे। तभी सामने से दो लोग आए। ध्यान से देखा तो वो सिमरन और वरुण थे और बोले "गाईज वो कौन है जो हमारे तरह दिख रहे है ! हम असली है, वो बहरूपिये है।" और तभी साथवाले सिमरन और वरुण भी बोलने लगे कि "हम तो कब से यहाँ ही है तुम्हारे साथ है वो भूत है उनकी बातों का यकीन मत करो" ये सुनके रोहन जॉय और दीप्ति का दिमाग घूम गया। उनको कुछ समझ नहीं रहा था। तभी रोहन ने कहा " अगर तुम सच्चे हो तो फिर मेरा फेसबुक का पासवर्ड बताओ साथवाले सिमरन और वरुण चुप बैठें और सामनेवाले ने तुरंत बताया कि पासवर्ड 'संगीता@68' था जो कि उसके माँ का नाम और उनका जन्मवर्ष था। ये सुनते ही सब लोग साथवाले सिमरन और वरुण को देखने लगे क्यों कि ये पासवर्ड वरुण ने ही सेट करके दिया था। तभी बहुरूपिये सिमरन और वरुण का रंग अचानक बदल गया और वो डरावने और गुस्से से देखने लगे तो सब लोग वहाँ से भाग गए और उस कमरे में से बाहर जाकर दरवाजे को कड़ी लगाई। इतना सब हो गया तो सब के दिमाग सुन्न पड़ गए थे। सब लोग सुबह की राह देख रहे थे लेकिन उसको अभी बहुत समय था। और क्या क्या देखना बाकी था कुछ समझ नहीं आ रहा था।

तभी एक दरवाजा खुला उसमें से एक आदमी लालटेन लेके आया उसके कपड़े पुराने और मैले थे, उसकी आंखें लाल और गुस्सेल थी वो शांति से एक एक पैर आगे आ रहा था। सब लोग उसको देखके डर गए। उसने गहरी आवाज में पूछा "कौन हो तुम लोग ?" जॉय ने डरते डरते बोला कि "ग..ग..गलती से आये है यहाँ, फिर क..कभी नहीं आएंगे" वो आदमी उसी गहरी आवाज में बोला "अच्छा तो गलती से आये हो ! लेकिन तुम्हें पता है ना ये जगह पे आना मना है।" 

सिमरन डरते डरते बोली "ग..गलती हो गई हमसे हमे अब बस यहाँ से बाहर निकालो।"

वो आदमी बोला "अब सुबह तक नहीं जा सकते बाहर.. क्योंके अब मदत तो बस सुबह ही मिल सकती है रात भर अगर चिल्लाओगे तो भी लोग मदद नहीं करेंगे। तब तक आओ मेरे साथ बैठो अब कोई नहीं परेशान करेगा" और 'अंधेरे मे तिनके का सहारा' जैसे सब लोग उसके पीछे एक कमरे में जाके बैठ गए, वो आदमी साथ में था तो सबको थोड़ा अच्छा लगा। रोहन ने पूछा कि "चाचा आप कौन हो ? आप यहाँ हमारे फैक्टरी में क्या कर रहे हो !" वो आदमी एक सांस लेके बोला कि "मालिक, हम भी यहाँ गलती से आये थे.. अब तो बस इधर ही रहते है।" सब को कुछ समझ नहीं आया लेकिन किसी ने पूछा नहीं इसका मतलब।

फिर जॉय ने पूछा "आपको इस फैक्टरी में डर नहीं है क्या ? और आप उसको कैसे जानते हो ?"

वो आदमी ने कहा " मुझे डर नहीं लगता उसका और हाँ, मैं जानता हूं उसको.. कई महीनों पहले की बात है। यहाँ बहुत सारे मजदूर काम करते थे उनमें से एक नंदू था। बिचारा यहां दिल से काम करता था क्योंकि उसको अपने बेटी को खूब सिखाकर बड़ा अफसर बनान था। इसलिए वो ओवरटाइम काम करता था वो। उस दिन अपना काम खत्म करके अपने घर जा रहा था तो रास्ते में उसको समझ आया कि वो अपना कुछ सामान फैक्टरी में ही भूल गया है। उसने अपने बेटी का स्कूल में एडमिशन करवाने के लिए अगले दिन छुटी भी ली थी। इसलिए वो फिर से फैक्टरी में गया। रात हो गयी थी और मैन दरवाजा भी बंद था लेकिन उसको अंदर जाने का दूसरा रास्ता पता था जो पीछे की खिड़की में से जा सकते थे। उसने अपना समान लिया और बाहर जा ही रह था तब कोई अंदर आया। अच्छे से देखा तो वो फैक्टरी के मालिक सिंग साहब थे। अगर उन्हेंने देख लिया तो बवाल हो जाएगा और नौकरी भी जा सकती है इसलिए वो उधर ही छुपके बैठा।

सिंग साहब और कुछ बड़े लोग फॅक्टरी में कुछ ऐसे केमिकल यूज करने के बारे में बात कर रहे थे जो कि कम क़ीमत में आता है। उससे उनका खर्च भी कम होगा ओर से पैदा होने वाले गैसेस से गांववालों को नुकसान हो रहा था और सिंग साहब ऐसा उनके सब फॅक्टरी में करने वाले थे ताकि उनको ज्यादा फायदा हो। ये सब नंदू सुन ही रहा था तबी उसके वजह से कुछ गिरा और आवाज हुई तो सिंग साहब ने नंदू को पकड़ा और उसने जो सुना वो किसी और को बताएगा इस डर से उसको उधर ही मार डालने का हुक्म उनके बॉडीगार्ड को दिया। उन्होंने उसका गला दबाके उसे मार दिया और लोगों को दिखाने के लिए उसकी लाश को एक कमरे में ले जा के रस्सी से लटका दिया और पोलिस की मदत से नंदू ने आत्महत्या की है ऐसा साबित किया। सब लोगों को भी ये दिखावा सच्चा लगा। बिचारे नंदू की बीवी का हाल न देखने लायक था। उसका नंदू के सिवाय कोइ सहारा नहीं था। उसके बेटी का एडमिशन करके उसको बड़ा अफसर बनाने का नंदू का सपना टूट गया और तबसे वो इस फैक्ट्री में भूत बनके बैठा है। नंदू के आत्माने एक दिन सिंग साहब को खुद गाड़ी चलाने पे मजबूर करके उनके गाड़ी का ब्रेक फैल करके एक्सीडेंट कर दिया और उनकी मौत उनकी ही गलती से हुई है ये साबित करके अपना बदला पूरा कर दिया " ये बोल के वो आदमी शांत बैठा।

दीप्तिने पूछा "आपको इतना सब कैसे पता बाबा ?"

वो आदमी 'बाबा' सुनते ही बस दीप्ति को देखते रह गया और इसके गुस्सेल आंखों से पानी आया। वो जल्दी में उठा और सबको बोला, "आओ मेरे साथ मेरे पीछे।" और दरवाजे के पास आया और दरवाजा खोल के बोला "ये गलती फिर से मत करना बच्चों, उसदिन अगर मेरी बेटी का एडमिशन बड़े स्कूल में कर पाता तो वो बड़ी अफसर बन पाती लेकिन आज वो मजूरी कर रही है और मेरा सपना भी सपना ही रह गया, फिर इस नरक में मत आना। जाओ तुम यहां से जिसकी गलती थी वो तो चल बसा लेकिन मेरा मकसद अभी भी पूरा नहीं हुआ वो लोग अभी भी वही केमिकल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं और मेरी बेटी स्कूल छोड़ के काम कर रही है तुम जाओ यहाँ से" और दरवाजा जोर से लगा दिया। 

सब को सब कुछ पता चल गया था। वो आदमी ही नंदू था और उसने उसका बदले का काम किया पर दूसरे काम अभी भी अधूरे थे जो कि वो नहीं कर सकता था। पर अगले ही दिन रोहन ने नंदू के घर की जानकारी ली और उसके बेटी का एडमिशन अच्छी स्कूल में कर दिया। नंदू के बीवी को भी नंदू के जाने का मुआबजा दिया और उनकी जिंदगी अच्छी बानाई। और रही बात सस्ते और हानिकारक केमिकल की तो वो सभी जगह की फैक्ट्री में से तुरंत बदलने का फैसला लिया। इसी तरह से रोहन ने वो भूतिया फैक्ट्री और नंदू की आत्मा को मुक्त कर दिया।


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