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Dr Payal Sharma

Others

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Dr Payal Sharma

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बेटी नहीं चाहिए

बेटी नहीं चाहिए

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आज आयुषी बहुत खुश थी परंतु मन में कहीं ना कहीं एक डर भी था कि आज हॉस्पिटल जाते समय कि वह और उसका बच्चा सही होंगे भी या नहीं। क्योंकि पिछले दिनों उसकी ही बड़ी बहन के बेटा अपंग पैदा हुआ था ।जिस वजह से उसके मन में एक अजीब सा डर था और वह अपने डर को ना चाहते हुए भी मन से दूर नहीं ले जा पा रही थी ।डॉक्टर ने कहा कि ऑपरेशन हो भी सकता है और नहीं भी परंतु ऑपरेशन का डर कम और आने वाली संतान स्वस्थ हो इस विषय को लेकर मन में अनेकों शंकाएं थे। ऊपर से सासू मां का सहयोग ना के बराबर पति भी नाराज था शायद उसके ऑपरेशन की हामी भरने को लेकर, बरहाल ऑपरेशन के पश्चात उसने एक स्वस्थ बेटी को जन्म दिया वह बार-बार अपनी बेटी को देखे जा रही थी उसे ना ऑपरेशन का दर्द महसूस दे रहा था बस दिखाई दे रहा था अपनी संतान का प्यारा सा चेहरा पहली बार जब उसने ऑपरेशन थिएटर में डॉक्टर को कहा क्या हुआ  डॉक्टर ने कहा बेटी हुई है। जब उसने अपनी बेटी का चेहरा देखा तो अंगूठा मुंह में डाले हुए थे दर्द में भी उस के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और कहने लगी कि मां की तरह शायद यह भी भूखी है ।वहां पर ऑपरेशन थिएटर में सभी डॉक्टरों के चेहरे पर मुस्कान आ गई ।

अब उसके ना दिन का उसको पता चलता था ना रात का पूरे दिन वो अपनी बेटी के चेहरे को निहारती और इसी तरह दिन गुजरते जा रहे थे उसको अब किसी दोस्त की  भी जरूरत नहीं थी क्योंकि उसकी बेटी दोस्त और साथी दोनों बन चुकी थी उसके साथ उसके बचपन के खेल खेलने उसको बहुत पसंद है थे पति शहर से बाहर नौकरी पर रहते थे तो अब उनकी भी कमी उसको कम महसूस देती थी। अपनी बेटी के प्रति प्यार उसका बहुत अधिक गहराता जा रहा थ कुछ समय बाद दूसरी संतान के विषय में सोच कर दुखी हो जाया करती थी ऐसा नहीं था कि उसको दूसरी संतान की जरूरत नहीं थी परंतु अब वह यही चाहती थी कि उसके बेटी नहीं पैदा होनी चाहिए अचंभा और अचरज की बात है कि जिस बेटी को वह दिलो जान से चाहती थी अपनी दूसरी संतान वह बेटी नहीं चाहती थी डॉक्टर से अपनी वह हर बात शेयर करती है डॉक्टर ने तो गर्भावस्था के छठे महीने में उससे पूछ लिया कि आयुषी क्या चाहती हो बेटी या बेटा आयुषी ने कहा मुझे बेटी नहीं चाहिए डॉक्टर को बड़ा अचरज हुआ और उसने कहा कि मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी कि तुम्हें बेटी नहीं चाहिए पर तुम तो अपनी बेटी से बहुत प्यार करती हो उसने कहा कि इसीलिए बेटी नहीं चाहिए मुझे समाज के तौर तरीके और बेटियों के कन्यादान मैं देने की रीति बिल्कुल पसंद नहीं है इस बेटी को मैं दिलो जान से चाहती हूं उसे मैं दूसरों को सुपुर्द नहीं कर सकती क्योंकि उसके बिना मैं जीवन जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती, सोच कर ही मुझे रात को नींद आनी बंद हो जाती है। डॉक्टर की आंखों में आंसू थे और वह बेटी की विदाई और उससे जुड़े हुए दर्द को आयुषी की तरह समझ पा रही थी और परंतु माहौल को हल्का करने के लिए हंस पड़ी और बस इतना ही कहा बेटी चाहिए परंतु उसे विदा नहीं करना चाहती चलो कोई बात नहीं घर जमाई रख लेंगे आयुषी और डॉक्टर दोनों ठहाका मारकर हंस पड़ी।


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