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आस्था जैन 'अंतस'

Children Stories Classics Inspirational

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आस्था जैन 'अंतस'

Children Stories Classics Inspirational

बचपन, बारिश और कागज़ की नाव

बचपन, बारिश और कागज़ की नाव

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बारिश की हल्की फुहारें जारी थीं , उस छोटे से कस्बे में एक छोटी सी नहर थी जो कि एक बेहद पतली जलधारा जैसी थी और सिर्फ बरसातों में ही उसका अस्तित्व हुआ करता था, मैं उसी नहर के कच्चे किनारे पर दौड़ते हुए तेरे पास आया था और तेरे हाथ मे कागज़ की एक गीली नाव देखकर मैं तुझसे पूछ बैठा था।

ए मोड़ी, तूने हमाई नाव देखी का ?

तूने मुझे मुँह टेढ़ा करके देखा और उस नाव को उलट पलट कर देखने के बाद मुझसे पूछा।

ए मोड़े , तेरो नाम बंटा है का?

मेरे हताश मन मे उम्मीद का तूफान आ गया था , मैं तेज़ कदमों से तेरी तऱफ बढ़ रहा था और जोश में बोल रहा था

हमाओ नाम बंटी है , ये नाव हमाई है , वापिस कर दे जल्दी तें ।

तूने उखड़े मन से नाव मेरे पैरों के पास कच्ची जमीन पर फेंक दी , मैंने " पागल मोड़ी" कहते हुए उस नाव को उठाया और उस पर लिखा अपना नाम पढ़ा, पानी की वजह से स्याही फैल गई थी और बड़ी मुश्किल से बंटी की जगह बंटा लिखा हुआ ही समझ आ रहा था।

तू अपने दोनों हाथ बांधे उसी जगह खड़ी उस पतली और छोटी सी नहर के दोनों ओर मायूस सी देख रही थी।

मैं अपने दोस्तों को दिखाना चाहता था कि मेरी नाव मिल गई थी, मैं वापस चल पड़ा उन सबको ढूँढने, अपनी नाव को खोजने के चक्कर मे सब आगे पीछे हो गए थे, मुझे अपना एक दोस्त पास ही दिखा मैं उसके पास दौड़कर गया और विजयी उल्लास में चिल्लाया-

देख भूरे, हमाई नाव मिल गी , बहोत आगे निकर गी हथी।

भूरे ने उदास मन से मेरी तरफ़ देखा फिर मेरी नाव की तरफ़ देखा फिर नहर के किनारे एक पत्थर की तरफ इशारा करते हुए बोला

हमाई नाव तो खो गी बंटी, जा पत्थर तें चिपकी एक नाव धरी थी, हम समझे कि हमाई है , मगर जापैं तो पिंकी नाम लिखो है, अब जाने हमाई नाव कित्ती दूर निकर होगी यार ।

उसकी बात सुनके मैंने लपक के उस नाव को उठाया और दौड़ता हुआ वापस तेरे पास आ गया था , दोनों तरफ ताकती हुई तू अब भी वहीं खड़ी थी, फुहारों की वजह से तेरी फ्रॉक भी गीली हो गई थी और तू ठंड से काँप भी रही थी।

ए मोड़ी , तेरो नाम पिंकी है का?

मेरी आवाज़ सुनकर तू चौंक गई थी, और मेरे दोनों हाथों में पकड़ी हुई दोनों नावों को बारी बारी से देख रही थी।

जे ले, तेरी नाव तो महीं पीछे रह गी थी, तू जियादा आगे भग आई ।

तूने लपक के मेरे हाथ से अपनी नाव वापस ले ली थी और ख़ुशी से अपनी दोनों चोटियाँ हिलाती हुई तू वहाँ से नाचती हुई चली गई थी।

अगले दिन फिर से बारिश में भीगते भागते हम 8 साल से 11 साल तक की उम्र के दोस्तों की टोली फ़िर से उसी छोटी नहर के किनारे अपनी अपनी नाव बहा रहे थे , फिर आँख बंद करके एक से दस तक गिनती गिनते थे फ़िर अपनी अपनी कागज़ की नावों को बहती धारा में ढूँढने का काम शुरू हो जाता था जिसे उसकी नाव मिल गई वही विजेता होता था।

नावें पहचानने में गलती न हो इसलिये घर पे कागज की नाव बनाते समय उसपे अपने अपने नाम भी लिख देते थे।

आज फ़िर मेरे हाथ पिंकी नाम की नाव लगी, तू उस जगह से थोड़ा आगे ही खड़ी थी, जब मैंने तुझे दुबारा तेरी नाव दी तूने हँसते हुए अपना माथा पीट लिया था।

तेरी नाव हमेशा फँस जाती थी लेकिन उसके कागज की तहें कभी खुलती नहीं थीं । तूने बाद में मुझे भी मजबूत तह करना सिखाया था लेकिन मैं कभी उतनी मजबूत कागज़ की नाव न बना सका। जब जब मुझे लगता था कि मैंने बहुत अच्छी नाव बनाई है तब तब तू उसमें कोई न कोई नई कमी निकाल ही देती थी।

अचानक तेज बारिश शुरू हो गई, मैंने बस की खिड़की बन्द कर ली और बचपन की यादों की बारिश में भीगता मन अब वापस वर्तमान के रेगिस्तान में व्याकुल सा खड़ा हो गया था।

आज पूरे चार साल बाद उसी कस्बे में वापिस जा रहा हूँ उसी नहर के किनारे जहाँ तेरी और मेरी दोस्ती की मजबूत तहें बनाई थीं हम दोनों ने। आज 60 बरस की उम्र में भी मुझे सब याद है, आज वापस उन्हीं यादों की तरफ लौट रहा हूँ तो वे दुगुनी रफ्तार से मन के गलियारों को बरस बरस कर भिगा रही हैं और मैं उस बरसात में किसी कागज की नाव सा हिचकोले खा रहा हूँ।

मेरा बाकी सारा बचपन तेरे साथ ही बीत गया , मैं तुझसे सब साझा करता था और तू मुझसे , तू सबसे अलग थी मेरे लिए, मुझे याद है जब मैं सत्रह साल का था और तू अठारह साल की थी , हम खुद भीगते हुए उसी नहर किनारे अपनी कागज की नावें बहा रहे थे तब मैंने तुझसे पूछा था -

-तू मुझसे शादी करेगी पिंकी ?

कितनी जोर से खिलखिला कर हँस पड़ी थी तू।

मैं क्यों करूँगी जो तुझसे प्यार करेगी वो शादी भी करेगी तुझसे।

तू सोच ले, अगले साल हम दोनों कॉलेज में आ जाएंगे , फिर मुझे कोई पसन्द आ गई तो तुझे समय नही दे पाऊँगा मैं

ऐसा कभी होता है क्या कि दोस्तों के लिए समय न मिले ।

तू समझती नहीं है यार, अगर मेरे साथ कोई लड़की होगी तो वो तुझे मेरी दोस्त नही रहने देगी बल्कि शक करेगी ।

जो तुझपे शक करे ऐसे इंसान के साथ रिश्ते बनाना ही बेवकूफी है, देख मैं तो अपनी कागज की नाव पर भी भरोसा करती हूँ, चाहे कितनी भी तेज बारिश हो वो मुझे मिल ही जाती है ।

लेकिन मेरी गर्लफ्रैंड या बीवी तेरी मेरी दोस्ती पर शक न करें ऐसा होना मुश्किल है, अभी भी तो कितने लोग हमारी दोस्ती को गलत ही समझते हैं, इसलिए बोल रहा हूँ तू मुझसे ही शादी कर लेना और सबका मुँह बन्द कर देना।

देख बंटी , जिस तरह बचपन इन कागजों की तरह सरल और साफ़ होता है ना, बाकी की जिंदगी उतनी ही उलझन भरी होती है, लोगों का मुँह बन्द करने के लिए तू क्या क्या करेगा, देख इस बरसात को , कोई कहता है , सुबह बरसात हो, कोई कहता है दिन में हो, कोई कहता है रात में हो, लेकिन बरसात तो अपने मन से बरसती है, जब उसका मन इस मिट्टी में रम जाता है तभी वो अपना सारा प्यार इस मिट्टी पर लुटा देती है , तुझे जब सच मे कोई प्यार करने वाली मिलेगी तब वो भरोसा भी करेगी और लोगों का क्या है वो तो इन पत्थरों की तरह हैं जो अड़े रहते हैं पर न ही नहर को रोक पाते हैं और न ही कागज की नावों को।

तब मैं चुप रह गया था, लेकिन 10 साल बाद वही परिस्थिति मेरे सामने थी जब मुझे अपनी पत्नी रिया और तेरी दोस्ती में से एक को चुनना था। तब भी मैं तुझी से शिकायत कर रहा था।

देख ले अब, मैंने बोला था न तुझे यही सब ड्रामा होगा , अब मैं क्या करूँ , तुझे छोड़ूँ या रिया को।

किसी को भी मत छोड़, बस अपने कागज़ की तहें मजबूत कर , फिर तुम दोनों की प्रेम की नाव हर बरसात और हर पत्थर से लड़कर जीवन की नहर में दूर तक बहती जाएगी।

क्या बकवास कर रही है तू यार।

अच्छा देख , मेरे और मेरे पति कमल के बीच में ऐसा कोई झगड़ा क्यों नही हुआ तुम्हे लेकर, क्योंकि हम दोनों में भरोसा है, और भरोसा बनाने के लिए रिश्ते को समय देना पढ़ता है, अपनी तरफ से प्रयास करने पड़ते हैं, और आँखे बंद करके रिश्ते की नाव को गुमराह नही होने दिया जाता बल्कि उसकी देख रेख करनी पड़ती है ।

तू चाहती क्या है कि अब मैं औरतों वाले काम करूँ , रिश्ते सहेजना शुरू करूँ , अपना काम धंधा छोड़कर रिश्ते को मजबूत करने के प्रयास करूँ , है ना।

अच्छा ...... जी, रिश्ते सिर्फ औरत ही संभालेगी तो फिर ये रिश्ते एकतरफा होकर रह जाएंगे, अगर तुम्हें अपने रिश्ते की जिम्मेदारी सिर्फ रिया पर रखनी है तो इसके खत्म होने या बने रहने से तुम्हे फ़र्क भी नही पड़ना चाहिए, देखो , तुमको तुम्हारी दादी, माँ, बहनों से हमेशा अपनी तारीफें ही मिलीं हैं, और तो और रिया भी तुम्हे भगवान का अवतार मानती है, इसी वजह से तुम खुद को इंसान का दर्जा देना शायद भूल चुके हो, तो सुन मेरे बेवकूफ दोस्त, हर इंसान को अपने रिश्तों के लिए समय और प्रयास देने पड़ते हैं , जिस तरह एक कागज की नाव बनाने में ।

बस अब तू हर जगह अपनी कागज की नाव लेकर मत आ जाया कर, मैं सच मे रिया से बहुत प्यार करता हूँ, देख मैं करता हूँ कोशिश , अपने रिश्ते को बचाने की, रिया का भरोसा जीतने की।

जीवन के हर मोड़ पर जब मैंने खुद को सबसे ऊपर समझा , तूने मेरी टांग खींच कर मुझे ज़मीन पर खड़ा कर दिया , तेरी ही वजह से मैं अच्छा पति बन पाया, एक अच्छा पिता बन पाया , क्योंकि तूने हमेशा मेरे पुरूष होने के अहम को तोड़ा और मुझे मेरे इंसान होने की औकात दिखाई।

आज जब मैं अपने पूरे जीवन की यादों की बारिश में अकेला खड़ा हूँ तो इन बूँदों में मुझे तू दिखाई देती है, हमेशा मेरी कागज़ की नाव ढूंढकर मुझे वापस करती हुई, मेरी जिन्दगी की नाव को सही रास्ता दिखाती हुई, पर मैं तेरी नाव की अनदेखी कर गया, मुझे लगा कि तेरी नाव तो हमेशा की तरह ही मजबूत है, पर मुझसे गलती हो गई , तू अपनी नाव की ही तरह न जाने किस पत्थर की ओट में छिपकर बैठ गई है।

मेरी आँखें बरस पड़ी थीं, मेरी बगल की सीट पर बैठे एक सज्जन मुझे घूर रहे थे।इन्हें नही पता कि तीन महीने पहले ही मेरी सबसे अच्छी दोस्त की सड़क हादसे में मौत हो चुकी है या फिर इन्हें ये नहीं पता कि पुरूष भी रोते हैं, शायद तेरे जैसी कोई दोस्त इन्हें नही मिली होगी, याद है जब एक दिन मैंने तुझे बोला था-

मैं एक लड़का हूँ और लड़के कभी नहीं रोते।

देख , ये बादल शब्द पुल्लिंग है, लेकिन ये तो बरसता है, अपने प्रेम, क्रोध, अवसाद , भय, दुःख, स्नेह , हर भाव को बरसने देता है, तो पुरुष को भी अपनी भावनाओं व्यक्त होने देना चाहिए न, लड़के नही रोते , ये बात तो तब सच होगी जब ये सच हो कि बादल नहीं बरसते।

आज हमारी दोस्ती की 50 वीं सालगिरह है, चार महीने पहले ही तूने ये इच्छा व्यक्त की थी कि हम दोनों फिर से अपने कस्बे की उस नहर के पास जायेंगे, अपनी अपनी कागज की नावें बनाएंगे और उन पर अपने नाम लिखकर उन्हें ढूँढेंगे।

हमारे बच्चे कितने हँसे थे इस बात पर, उनकी शहरी जिंदगियां तो कुछ मशीनों की दुनिया मे ही कैद होकर रह गई है ना, उन्हें कैसे समझ आ सकता है कि बचपन की बरसात में बहाई हुई उन कागज़ की नावों ने हमें जिंदगी जीना और निभाना सिखाया है।

बस स्टैंड पे उतर कर मै अपने पुराने घर भी नहीं गया, शाम होने ही वाली थी और बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी, उस छोटी सी नहर के किनारे की जमीन में मेरे पैर धँसे जा रहे थे, किनारों पर बच्चों के जमघट लगे हुए थे , कोई अपनी नाव बहा रहा था तो कोई अपनी नाव खोज रहा था, तो कोई अपनी नावों में चल रही प्रतिस्पर्धा से रोमांचित हुआ जा रहा था, ये बचपन कितना सरल होता है, बादल इसी बचपन के सरल और साफ़ मन से मिलने आते हैं धरती पर , उत्साही और उत्सवी बाल मन कागज़ की तहें मोड़कर दोस्ती की एक नाव बनाता है फ़िर बहा देता है उन बरसते हुए बादलों की जलधारा के बीच , अगर बारिश को ये नन्हे हाथों से बनी कागज़ की नावे न मिलें तो उसे कैसा लगेगा , जैसे उसके धरती पर आने से कोई खुश नही है, किसी ने उसका स्वागत ही नही किया।

फ़िर कैसे किसी बंटी या पिंकी को जीवन जीने के रहस्य पता चलेंगे, कैसे उन्हें बेनाम दोस्ती निभाने की वजह मिलेगी।

तू ये बात समझती थी न पिंकी, तभी तू यहाँ वापस आना चाहती थी । पर देख आज मैं अकेला ही आया हूँ, अपने बचपन को शुक्रिया कहने, इस बारिश को शुक्रिया कहने, एक बार फ़िर इन कागज़ की नावों का अर्थ समझने।

मैंने अपने बैग में से दो कागज़ की नावें निकाली, एक पर बंटी औऱ दूसरी पर पिंकी लिखा था मैंने।

मैंने दोनों नावों को तेज बहती जलधारा में बहा दिया , मैं आँखे बंद न कर सका, तेरी नाव मेरी नाव से आगे चल रही थी, थोड़ी दूर चलकर मैने तेरे नाम की नाव को उठा लिया, और अपनी नाव को बहते जाने दिया, शायद ये नाव बहकर इतनी दूर चली जाए जहाँ तू चली गई है, शायद ये नाव तुझे मिले और उस नाव को मुझे वापस करने के बहाने से ही सही तू अपने इस दोस्त के पास वापस चली आये।

बारिश रुक गई थी, हल्का उजाला अभी बाकी था पर मैं

बरसती हुई आँखों और गीली मिट्टी में धँसते हुए पैरों के साथ वापस लौट चला था कि तभी किसी लड़की की आवाज़ सुनकर मेरे पैर ठिठक गए।

काका , तुमाओ नाम पिंका है का ? 

मेरे सामने एक छोटी सी लड़की खड़ी थी जिसके हाथ में पूरी तरह भीग चुकी कागज़ की नाव थी, मैंने झुककर उसके हाथ से वो नाव ली, स्याही हल्की सी फैल चुकी थी और उस पर धुँधला सा एक नाम पिंका लिखा हुआ समझ आ रहा था।


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