अराधना

अराधना

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अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने अपना घर शिफ्ट किया। पुराने मकान मालिक बहस हो गयी थी , जवानी वाला खून है कहाँ रुकता है , मैंने भी जोश जोश में घर खाली कर दिया। भला हो उन ब्रोकरों का जो इमरजेंसी में घर दिलवा देते है। 

मकान दो मंज़िला है नीचे मकान मालिक और उन की फैमिली रहती है। ऊपर की मंजिल पर दो रूम है सबसे आखिरी वाला रूम मैंने लिया है। ठीक है अब जैसा भी है रहना है तो क्या देखना।

प्यार और मज़बूरी में सब जायज़ है। मजबूरी तो मेरी अभी थी पर प्यार ना था | कुछ दिन ऐसे ही गुजरते गए फिर एक दिन सुबह सुबह मेरी नींद अचानक खुल गयी, कानो में किसी के लड़ने की आवाज़ बहुत ज़ोर से आ रही थी | 

मै उठा और कमरे से बहार निकला तो भैया बालकनी में एक लड़की खड़े हो कर नीचे मकान मालिक से लड़ रही थी। तब तो कुछ समझ नहीं आया तो मैं आगे बढ़ता चला गया और उस लड़की से कुछ दूरी की तरफ जाकर खड़ा हो कर नीचे देखने लगा। 

अचानक वो लड़की मुझे देखती है और कहती है - "ऐ क्या है क्यों बीच में हीरो बन रा चल पीछे।" 

मेरा दिमाग ख़राब, मैंने निगाह उठाई और उसको देखा। 

"हाँ तुझे ही बोल रही हूँ पीछे हट। "

चेहरा बहुत मासूम , आँखे भी शांत पर पता नहीं ज़ुबान क्यों आग उगल रही थी। मै शान्ति का साथ लेते हुए अंदर की तरफ चलने में ही समझदारी दिखाई।  फिर कहीं न कही वो चेहरा मेरी आँखों में बस गया था। रुको रुको मुझे कोई प्यार व्यार नहीं हुआ था, मै तो केवल टाइमपास करने की सोच रहा था, कि पटा लूंगा घुमा लूंगा फिर छोड़ दूंगा, तो भैय्या अपन लग गए षड़यंत्र रचने की एक बार बात कर ले फिर तो मैंने देखा। 

काफी बात  करने की कोशिश की क्यों की उसका रूम सामने ही था। पर हो न सका | जैसे ही मैं उसको मुस्कुरा कर देखता वो चेहरा फेर लेती। फिर कुछ दिनों बाद मुझे लगा घमंडी है अपन से न हो पायेगा। फिर एक दिन रात के करीबन 11 बज रहे थे। 

मै अपने ऑफिस से चला आ रहा था बाइक बहुत धीमे चलाता हूँ। अचानक जोर से आवाज़ आयी मयूर मैंने बाइक का ब्रेक दिया और मुड़ा और देखा वही लड़की पीछे खड़ी हुई है। मेरी आँखे चमक गयी, मै बाइक से उतरा और उसके पास पहुँचा मैंने कहा- " जी बोलिये"

" मेरा पर्स गुम हो गया था मेरे पास घर तक जाने के लिए पैसे भी नहीं थे और अचानक तुम दिखाई दिए और मैंने तुमको आवाज़ लगा दी" - लड़की

"अरे ! कोई न भगवान खुद नहीं पहुँच पाते तो अपना शिष्य भेज देते हैं , और मैं भगवान का शिष्य हूँ," थोड़ा सा मस्का लगा कर मैंने बोला। 

वो हलकी से मुस्कुरायी फिर बोली "चलें ?"

मैंने सर हिलाते हुए जवाब दिया और हम दोनों बाइक पर बैठे और घर की तरफ चल दिए। 

मैंने साइड मिरर को थोड़ा टेड़ा किया और उसमे उसका चमकता हुआ चेहरा दिखने लगा , हवा के कारण कुछ बाल उसके चेहरे पर बार बार आ रहे थे वो वो उन्हें बार बार समेटने की कोशिश रही थी। यहाँ मैंने सारे सपने सजा लिए थे कि आगे इसे कैसे फसाना है। तभी मैंने उससे पूछा कि "तुम्हें मेरा नाम कैसे पता ?"

वो बोली -"आप ही तो फ़ोन पर चिल्लाते रहते हो मयूर बोल रहा हूँ "

मैंने कहा कि "अच्छा तो आप मुझे नोटिस करती हो !"

वो शांत रही फिर बोली थोड़ा "जल्दी चलाओ थक गयी हूँ नींद आ रही है।"

मैंने बाइक की स्पीड बढाई और हम घर पहुँच गए। वो बिना कुछ बोले उतर कर जाने लगी मैंने फटाफट लॉक लगा कर उसके पीछे भागा, सीढ़ियों पर मैंने उससे कहा -"अरे अपना नाम तो बता दो मैंने किस की हेल्प की पता नहीं "

कमरे में अंदर जाने से पहले वो बोली -"अराधना "

मैं मुस्कुराया और वो अंदर चली गयी , कुछ आध घंटे बाद दरवाज़ा बजता है, मैंने कहा "कौन है ?"  

"मैं अराधना "

मैंने उठ कर गेट खोला उसके हाथ में एक काफी का कप था , धीरे से बोली- "थैंक्स "

और वापिस मुड़ कर वो अपने रूम में चली गयी। मैं उसको ही देखता रहा। 

दूसरे दिन मेरे मकान मालिक और उनकी फॅमिली रिस्तेदारो के यहाँ जा रही थी शादी में , 

" मयूर हम जा रहे है घर देखना "- मकान मालिक ने कहा, सर हिलाते हुए मैंने जवाब दिया 

फिर में ऑफिस के लिए निकल गया, शाम को वापिस आया। चेंज कर के मैंने छत्त पर जाने का सोचा और ऊपर की तरफ जाने लगा सीढ़ियों पर ऊपर जाते ही मैंने देखा वो सीढ़ियों पर टिकी हुई बैठी है, बिलकुल गुमसुम मैंने कहा -"और जी कैसे हो ?"

जवाब उसकी आखों ने दिया, कुछ मोती जो पानी के थे वो उसकी आँखों से छलक पड़े वो उठी और सीधे अपने कमरे की तरफ भागी। मैं देखता रहा - वो अपने कमरे में चली गयी। दूसरे दिन मैंने ऑफिस से छुट्टी लेने का मैं बनाया और मैं नहीं गया। बात मन की नहीं थी मौके की थी जो कभी कभी क़िस्मत वालों को मिलता है घर पर कोई नहीं लड़की अकेली तो सेट होने के फुल चांस। 

मैं रूम के बहार ही घूमता रहा आएगी पर वो नहीं आयी। मेरा मन नहीं माना तो किसी बहाने से उसके रूम में जाने की सोचने लगा। फिर मुझे याद आया की कॉफ़ी का मग मेरे पास है उसका तो बहाना मिल गया था। मग उठाया और उसके रूम का दरवाज़ा खटखटाया। 

कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला - उसने मुझे देखा, चेहरा काफी मुरझाया हुआ था ऐसा लग रहा हो जैसे वो अभी तक सोई नहीं। मैंने उसको देख कर कहा - "ये आपका कप देने आया था"

कप लेते हुए उसने कहा ठीक है और वो दरवाज़ा बंध कर के रूम में चली गयी। मैं चेहरा उतारते हुए अपने रूम में आ गया। करीब रात 8 बजे मेरे रूम का दरवाज़ा खटकता है। "कौन ?" अंदर से मैं चिल्लाया। 

"मैं हुूं"

मैं झट उठकर दरवाज़ा खोला 

सामने वो थी, थोड़ी देर मुझे देखने के बाद बोली "क्या मैं अंदर आ सकती हूँ।"

मेरा मैं खुश हो गया , मैं ही मैं लड्डू फूटने लगे। मिल गया मौका मैं मन ही मन बोला 

वो अंदर आ कर सोफे पर बैठ गयी। 

"कॉफ़ी ?"

उसने सर हिलाते हुए हाँ में जवाब दिया। 

मैं कॉफ़ी बना कर ले आया और उसके सामने बैठ गया। 

काफी पीते पीते वो बोली "क्या मैं तुमसे कुछ बात कर सकती हूँ।"

मैंने कहा "हाँ बोलो"

कॉफ़ी का मग साइड में रख कर वो मुझे एक निगाह देखने लगी। अचानक उसके आँखों से आंसू बहने लगे। मैं उसे देखता रहा, फिर चुप्पी तोड़ कर उसने बोलना शुरू किया। 

"मेरे पिता जी नहीं है , बचपन में ही गुज़र गए माँ ने ही मेरी परवरिश की है। पढ़ाया लिखाया है। ग्रेजुएशन के बाद उनकी तबियत अचानक ख़राब होने लगी तो माँ ने मुझे कहा अब तू कहीं नौकरी कर ले। मैंने उनकी बात मान ली , कुछ दिनों के बाद मालूम पड़ा माँ को ब्लड कैंसर है पर वो ठीक हो सकता है अगर प्रॉपर ट्रीटमेंट दिया जाए तो , तो में जॉब कर ही रही थी, फिर मुझे एक लड़के से प्यार हो गया, अच्छा था मैं उसे अपनी पूरी दुनिया समझने लगी थी। फिर एक दिन डॉक्टर का कॉल आया कि माँ के इलाज़ की फीस बाकी है अगर नहीं दी तो माँ का इलाज बंद कर देंगे। 

मैं घबरा गयी थी , तो मैंने अपने बॉयफ्रेंड से हेल्प ली, उसने हेल्प तो कर दी पर एक दिन उसने मुझे अपने घर बुलाया, मैं वहां गयी तो उसके घर पर कोई नहीं था। वहां हम दोनों एक दूसरे के और करीब आ गए। मैं उससे शादी करना चाहती थी और वो भी तो मुझे उसमे कुछ गलत नहीं लगा। 

वो मेरी माँ का इलाज कराने में काफी मदद करने लगा। और हम दोनों आये दिन अकेले में मिलने लगे , फिर एक दिन उसका फ़ोन आया तो में उसके घर चली गयी। घर जा कर देखा तो उसका कोई फ्रेंड वहां बैठा हुआ था। उसने मुझे उससे मिलवाया वो उसका बॉस था। 

वो मुझसे बोलै मैंने तुम्हरी कितनी हेल्प की है। क्या आज तुम मेरी हेल्प करोगी। मैंने कहा इसमें बोलने की क्या बात है तो बोलो ,उसने अपने बॉस को देखा तो वो उठ कर एक कमरे के अंदर चले गए। उसने मुझसे कहा जायो करो हेल्प। 

 मैं कुछ समझी नहीं , वो बोला कि- " मैं ऑफिस में कॅश चुराते हुए पकड़ा जा चूका हूँ और मेरा बॉस मुझे अंदर करवा देगा , प्लीज मेरी मदद करो तुम बस थोड़ा सी हेल्प कर दो,रूम में चली जाओ और वो जो बोले वो कर दो " ।

मैंने अपने बॉयफ्रेंड को देखा और खींच कर थप्पड़ दिया और वहां से जाने लगी तब वो बोलै की जिन पैसो से तुम माँ का इलाज़ करवाती हो वो पैसे भी चोरी के होते है। तो तुम भी इस चोरी में शामिल हो और अगर मुझे सजा मिल रही है तो तुमको भी भुगतना पड़ेगी। 

मैं कुछ देर शांत रही और फिर रूम में चली गयी, रूम से बहार आते हुए उसके बॉस ने मुझे कुछ रूपए दिए और तभी मेरा फ़ोन रिंग हुआ , डॉक्टर का फ़ोन था बोल रहा था की जल्दी पैसे जमा कराओ नहीं तो अभी बहार निकालते है। मैंने वो पैसे लिए और डॉक्टर के यहाँ इलाज के लिए दे दिए , फिर कुछ दिनों बाद मुझे पता लगा की मैं प्रेग्नेंट हूँ , तो मैंने अबबोरशन करा लिया, फिर वो हरकत मेरे साथ आये दिन होने लगी, फिर कुछ दिनों बाद मेरी डॉक्टर मुझे बोलती है की अगर मैंने इसके बाद अबबोरशन कराया तो मैं फिर कभी माँ नहीं बन पाओगी। 

कुछ दिनों पहले ही मुझे फिर पता लगा की मैं प्रेग्नेंट हूँ। तो मैं काफी सकते में पड़ गयी की अब क्या करू , तो मैंने अबबोरशन करा लिया और मैं अब कभी माँ नहीं बन सकती। उस दिन जब तुम मुझे रात में मिले थे तब मेरा अबोरशन हुआ था। मरने जा रही थी तब मैंने तुमको सामने देखा और वो बातें याद आयी जब तुम अपनी माँ से बात करते हो, तो ये लगा कि तुम भी माँ से प्यार करते हो और जो माँ से प्यार करता है वो लड़की की भी इज्तज करता है, लड़की का दर्द उसे भी पता होता है। तब मैंने तुमको आवाज़ दी और बात करने की सोची फिर मुझे लगा कि तुम मेरे बारे में क्या कहोगे तो मैंने तुमसे कुछ नहीं कहा।"


फिर वो शांत हो गयी और अपनी दोनों आँख अपने हाथो से ढँक ली। मेरी हालत ऐसी थी कि काटो तो खून नहीं, मैं क्या क्या सोच रहा था और ये मेरे बारे मैं क्या क्या सोच रही थी। अगर मैं इसको धोखा देता तो फिर किस पर विश्वास करती ?आज अपनी ही आँखों में शर्मिंदा हो गया था। 

मैंने उसको बुला कर कहा - "अराधना माँ कैसी है ?"

वो बोली इलाज चल रहा है , उसको हौसला देते हुए उसका हाथ थाम लिया और उसका सर मेरे कंधे पर था। तब एहसास हुआ की प्यार सबके लिए जरुरी क्यों है वो भले ही आप अपनी माँ से करो या अपनी पत्नी से या अपनी गर्लफ्रेंड से औरत की इज्जत हमेशा करो। 

मेरे और मेरे माँ के प्यार को देखते हुए उसने मुझ पर विश्वास जताया क्यों कि मेरी माँ भी एक औरत है और वो भी एक औरत। अराधना हमारे आस पास हमेशा होती है उसे हर वक़्त एक मयूर की तलाश होती है तो प्लीज इस वैलेंटाइन किसी का मयूर बनो।


  


  


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