Anand Shekhawat

Others

2  

Anand Shekhawat

Others

अधूरे ख़्वाब - एक तृप्ति

अधूरे ख़्वाब - एक तृप्ति

5 mins
208


कहते है कि अगर सपने खुली आँखों से देखे जाए और अगले ही पल से जी तोड़ कोशिश उनको पूरा करने के लिये की जाए तो कोई अलौकिक ताकत भी आपका साथ देने लगती है और एक अटूट दृढ़ विश्वास के साथ पूरे भी होने लगते है।

ऋचा ने भी अपनी नई जिंदगी के साथ कुछ सपने देखे थे और मोहित जो कि ऋचा का हमसफर था, वह इन सबसे अनभिज्ञ था कि ऋचा की आकांक्षाए बड़ी थी।


जैसे ही दोनों परिणय सूत्र में बंधे तो एक दूजे के लिए सब कुछ नया जैसा था। धीरे-धीरे जिंदगी शुरू हुई और आगे बढ़ने लगी और दोनों अपने-अपने रोजमर्रा की आपाधापी में व्यस्त रहने लगे। और अब तक दोनों ने 24 बसंत पूरे कर लिए थे।

मोहित को छुट्टी मिलती आँफिस से और वह उसे अपने बाकी रहे घर के कामों में लगा रहता और रहे भी क्यों न, ग्रामीण परिवेश में पला बढ़ा मोहित एक सरकारी महकमे में बाबू जो था।

और ऋचा काफी पढ़ी लिखी और होशियार लड़की थी, वह तो बस अपनी गृहस्थी में लीन थी और फिर एक दिन उसे अपने पुराने दिनों की डायरी हाथ लगी और अपलक वह पढ़ने लगीं।

इसमे उसके कुछ सपने जो आज भी धुँधली स्याही में लिखे हुए और साफ दिखाई दे रहे थे। जिन्हें पढ़कर ऋचा एक दम उत्साहित हो गयी लेकिन अगले ही पल वह थोड़ी सी उदास हो गयी और फिर वापस डायरी पढ़ने लगी।

आज उसके ज़हन में वो सारे लक्ष्य सामने आ गए जो उसने कभी अपने कॉलेज के वक्त देखे थे लेकिन समस्या ये भी थी कि वह कैसे बिना मोहित के पूरे हो सकते थे। और वह तो ठहरी सरल स्वभाव की।

कैसे मोहित को बताए कि उसे ताजमहल के सामने बीचों-बीच फ़ोटो खिंचवानी है, शिमला की बर्फीली वादियों में मस्ती करनी है,और कैसे उसे एक लंबी यात्रा पर जाना है, जहाँ सिर्फ रहेंगे उसके सपने और वो। यह सब करने की उसकी प्रबल इच्छा थी जो अब वापस जागृत हो चुकी थी।


ऐसे चलते- चलते जब एक दिन अचानक वह डायरी मोहित के हाथ लगी और जैसे ही उसने पढ़ी तो वह एक दम अचंभित रह गया। और उसने सोचा कि कैसे भी करके इस साल वह उसके पहले सपने को तो पूरा करके ही दम लेगा।

ऐसे ही वह बहुत कोशिश करता कि- जैसे भी हो ऋचा को बाहर तो घूमा के लाना है लेकिन उसके विभाग में इतनी छुट्टियों का एक साथ लेना भी तो वर्जित था। लेकिन कहते है कि अगर बन्दा किसी चीज़ को पाने के लिए पूरा साहस और परिश्रम लगा दे तो पूरी कायनात उसकी सहायता में जुट जाती है। और ऐसे ही हुआ भी।


अगले ही सप्ताह उसके स्कूल में शीतकालीन अवकाश आया उसने भी कुछ छुट्टियाँ और अप्लाई कर दी। और घर आकर ऋचा से बोला- क्यों न ऋचा इस बार कही बाहर घूम के आया जाए। देखो न मैं भी इस बार खाली हूँ और बहुत टाइम से में बोर भी हो रहा हूँ। क्या कहती हो-कही चला जाये??

इतने में ऋचा तपाक से बोली-वैसे कितने दिन की छुट्टियाँ है आपकी?

और मोहित बोला-दस काफी होंगी।?


अब तो ऋचा की खुशी का ठिकाना ही नहीं था, वह मन ही मन सोच रही थी कि इस बार वह अपने एक सपने को तो पूरा कर पाएगी। और अगले ही पल बोल पड़ी- क्यों न शिमला चला जाये वहाँ बर्फ भी खूब मिलेगी और पहाड़ भी।

मोहित पहले तो थोड़ा सोच में पड़ गया लेकिन फिर बोला - ठीक है, रज्जो। ये 10 दिन शिमला के नाम।

अब तो बस ऋचा को छुट्टियों का इंतज़ार था और वह बड़े उत्साह से सारे काम करने लगी। एक दिन मोहित की छुट्टियाँ भी आ ही गयी और दोनों ने उसकी तैयारी भी शुरू कर दी।

सर्दी के कपड़े और बाकी समान लिए और एक दिन दोनों रवाना हो गए।

शिमला पहुँच कर ऋचा ने बर्फ में काफी मस्ती की और खूब अच्छी -अच्छी जगहों पर घूमे। घूमते-घूमते एक दिन सूर्यास्त पॉइंट पर बैठे बातें कर ही रहे थे तो ऋचा ने बोला- मोहित , क्यों न हम साल में एक कार्यक्रम घूमने का रखे।

मोहित बोला- बिल्कुल। क्यों नहीं, एक तो रख ही सकते है। कुछ सोचकर मोहित बोला- ऋचा, तुम्हें और कहाँ-कहाँ घूमना है?

ऋचा बोली- एक एक कर घूम ही लेंगे अब तो।

इतने में मोहित बोला- मेरी एक इच्छा है कि ताजमहल चले अगली बार और उसके सामने एक बड़ी सी फोटो हो हमारी।

ऋचा संदेह से बोली- तुम्हें भी ताजमहल पसंद है?

मोहित- बिल्कुल।

ऋचा- मतल, हम दोनों को अच्छा लगता है ये?

मोहित- मतलब तुम्हें भी?

ऋचा - हाँ भी, कॉलेज टाइम से सोच रही थी, लेकिन कभी जाना ही नही हुआ।

मोहित- अगला, पॉइंट वही रखे?

ऋचा- क्यों नही।

मोहित- चलो फिर पक्का, लेकिन ऋचा तुम्हारे और क्या क्या शौक है-?

इतने में ऋचा तो बस रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं, ऐसे लग रहा था जैसे भगवान ने उसकी इच्छाएं पूछी हो और वो एक एक करके सारी बता दी।

मोहित अब ज्यादा खुश था क्योंकि पहली बार इतने सालों में उसकी अर्धांगिनी ने कोई इच्छा उसके सामने रखी थी जो अब बिना मोहित के पूरी नहीं हो सकती थी।


ऐसे प्लान बनाते बनाते कब दोनों एक दूसरे की बाहों में सो गये पता भी नहीं चला।

तभी ड्राइवर बोला- साब जी, अंधेरा हो गया, चलते है।

इसी के साथ दोनो सकपका कर उठे और गाड़ी में बैठ कर वहाँ से होटल पहुँचे।

लेकिन मोहित ने अभी तक ऋचा को एहसास तक नही होने दिया कि उसने उसकी डायरी पढ़ी भी है।

इसलिए कहते है कि - कभी -कभी चोरी से किसी के राज जानना भी अच्छा होता है।

और कहते है कि- उम्र सफर करती है हर पल, ख़्वाब वही रहते है।

दोस्तों, जिंदगी बड़ी छोटी है और सपने ढेर सारे, आज ही से उनको पूरा करने की कोशिश करे।   

              



Rate this content
Log in