अबोध भक्त
अबोध भक्त
बसंत के गमन के साथ ही ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो चुका था। ऋतु परिवर्तन के कारण सभी जगह ताप कई अधिक बढ़ रहा था। सौराष्ट्र के उमेशपुर गांव की भी यही स्थिति थी। इस गांव ने अनेकों विपदाओं का सामना किया था। एक समय अकाल तक को झेल चुके इस ग्राम में एक छोटी सी कुटिया में एक छोटा किंतु संवेदना से संपूर्ण परिवार बसता था। वह परिवार में एक छोटा शिवजी-भक्त बालक जिसका नाम ज्ञानयं था, अपने माता पिता के साथ निवास करता था। उस बालक का परिवार अधिक धनी नहीं था लेकिन उनका गृह सदैव आभार से भरपूर रहता था। वह परिवार में सभी भगवान में अत्यंत विश्वास करते थे। उस बालक को कभी भी उसके माता-पिता से किसी भी प्रकार की कोई उपालंभ नहीं रहती थी। उसकी माता जब भी पूजा करने बैठती थी, वह भाग के पूजा स्थल के निकट बैठ देखने लगता था। उसकी मां को वह प्रसाद चढ़ाते देखता। तत्पश्चात वह अपनी मां को भगवान को चंदन इत्यादि अर्पित करते देखता और जैसे ही उसकी मां पूजा पूर्ण करने के बाद भोजन बनाने जाती,वह छुप कर वही पूजा स्थल के सामने बैठ जाता। वह प्रसाद उठाता, थोड़ा सा भगवान को खिलाता और थोड़ा स्वयं ग्रहण करता। भगवान को टीका लगाता और स्वयं के माथे पर भी लगा लेता। ईश्वर से बातें करता। उसका इतना सीधा स्वभाव था कि वह स्वभाव किसी के मन को भी भा जाता था। जहां एक और यह बालक था, वहीं दूसरी ओर सौराष्ट्र के महाराज विनम्रसेन भी शिव जी के भक्त थे। वह मन से भगवान की पूजा-पाठ में लीन तो रहते, किंतु अपने राज्य के दायित्वों को छोड़कर। राज्य पर ध्यान देते किंतु इतना कम कि कई गांवों में अकाल पड़ने के बाद भी, वे सदैव राज्य के प्रति उपेक्षित रहते एवं राज्य पाठ में कम ध्यान देते। ऐसा नहीं था कि वह ऐसा इसलिए करते क्योंकि उनके मन में किसी प्रकार की दुष्टता थी या वे संवेदनहीन थे ,अपितु वे स्वभाव के अच्छे थे, किंतु उनकी कर्तव्यों से विमुखता संकटों को निमंत्रण था। महारानी पूजावती ने उन्हें समझाने का प्रयत्न भी किया था, परंतु राजा ने उनकी बात अस्वीकार कर कह दिया कि समस्त संसार मोह माया है।इन दोनों भक्तों ने अपनी भक्ति का प्रमाण दे दिया था।
कैलाश में शिव जी ने भक्तों को दर्शन देने का निश्चय कर लिया था।पार्वती जी को लगा की शिवजी राजा से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद देने जा रहे हैं। परंतु उनके पूछने पर उन्हें पता चला कि वह उस छोटे भक्त ज्ञानयं के पास जा रहे हैं। शिवजी ने ज्ञानयं को दर्शन देने का चयन किया क्योंकि राजा विनम्रसेन ने अपनी भक्ति तो सिद्ध कर दी किंतु अपने दायित्वों को दुत्कार कर। और बालक ज्ञानयं भोला था, अपने दायित्व पूरा कर रहा था और प्रसन्न रहता था। इसीलिए ज्ञानयं उनके दर्शन का उचित पात्र था।
और इस प्रकार शिव जी व पार्वती जी ने ज्ञानयं को दर्शन दिया।यह ज्ञानयं की भक्ति, भोलापन और अपने दायित्वों को स्वीकार करने की इच्छा ही तो थी जिससे साक्षात् भगवान ने उसे दर्शन देकर धन्य किया।
