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उड़ते पत्तो को देख, जड़े जमी नही छोड़ती, पनपाती है वो शाखो ...
पैर जमीं पर हैं पर सोच आसमान की रखते हैं कितनी भी कठिन हो र ...
सुलगती नदी थी वो शीतल सा आग था वो तपती रेत को फिर से मुट्ठी ...
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