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फिर...
फिर इन्तजार में...
फिर...
“
फिर इन्तजार में ऐसा कटा दिन
रात का कुछ बंदोबस्त ही न हुआ!
जीना कुछ ऐसा बेदर्द हुआ मुझे
कि दर्द होने का ये दर्द ही न हुआ!!
”
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