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जीव ...
जीव के कर्म ...
जीव के ...
“
जीव के कर्म पर जीव का अवतरण
जीव ऊपर चढ़ा माटी का आवरण
कर्म ऐसे करो मनुष्य देह ही मिले
सद्गुणों क करो, मिलके अब अनुशरण
नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
”
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