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गति ही...
गति ही मनुष्य की...
गति ही...
“
गति ही मनुष्य की पहचान भी है और स्वभाव भी। रुका हुआ जल कीटाणु ही उत्पन्न करता है इसलिए एक नदी बनो, कभी शांत, कभी थोड़ी उछालें भरती हुई।
”
201
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