वसंत ऋतु।
वसंत ऋतु।


सर्दी में सब ठहरा हुआ सा रहने के बाद
रफ़्तार पकड़ने लगता है
हाँ इस वसंत–ऋतु में कुछ प्यार सा होने लगता है।
ठंड में दबे हुए पत्तों को देख कर
किसी ने क्या कभी सोचा होगा कि ये नया जन्म ले रहे हैं ?
हरे-भरे ये पत्ते न जाने कुछ कह रहे हैं?
ज़िंदगी फिर नए हर्फ़ लिखने लगती है।
पुराने दुःखों के पन्नो को पलट
एक नयी कहानी लिखने लगती है।
कुछ उलझे रिश्तों से दूर हो कर
ख़ुद को सुलझाने लगती है।
सकारात्मक सोच रखके आगे बढ़ने की आब-ओ-हवा है ये।
पुराने डर को भूल कर एक नए एहसास को जीने का अहद है ये।
न जाने क्यों वो ये नही
ं समझती?
क्यों वो अपने डर को पूरी तरह दूर नहीं कर पाती ?
हाँ, शायद वो नए रिश्ते बनाने से डरती है।
या शायद वो किसी को खोने से डरती है।
यूँ तो वसंत में हर तरफ़ रंग खिले होते हैं
पर वो इस नयी दोस्ती के रंग में
ढलने से शायद डरती है।
शायद वो किसी को अपना कहना चाहती भी है
पर भरोसा करने से डरती है।
यहीं उम्मीद है उसे कि शायद वो
इस डर को दूर कर के किसी को समझने लगे,
किसी पे भरोसा करने लगे।
जिस तरह ठंड के बाद
निष्प्राण पत्तों का मधुमास में नया जन्म होता है।
इस वसंत में शायद नए रिश्तों की शुरुआत हो
ऐसा फिर महसूस होता है।