STORYMIRROR
विह्वल हृदय
विह्वल हृदय
विह्वल हृदय
विह्वल हृदय
क्षत विक्षत होकर
धराशायी सा
पड़ा हुआ है
हृदय।
उमंग,
साहस,
उत्साह
से लिप्त
शरीर अब
इतनी कोशिश
भी करने में
असमर्थ है
की पुनः किसी
प्रेयसी के लिए
उठ खड़ा हो
और पुनः किसी
कवि के श्रृंगार रस
का कोई उदाहरण बन सके।
More hindi poem from कबीरा सूरज जायसवाल
Download StoryMirror App