सपने-
सपने-
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कुछ छुट गए कुछ रूठ गए।
कुछ सपने अधूरे रह गए।
सपने संजोए हुए थे अपनी निगाहों मैं ।
सपने तो सपने हे हम निकल पड़े थे सपनो के नगर के राह को सच बनाने में।
सपनो के मन्दिर को सच बनाने चले थे।
तब एहसास हुआ ये कोई सच नही ये तो सपने की परछाई थे।
सपनो का इक साम्राज्य लिए।
यूं निकल पड़े अन्जानों मैं।
इक छोटी सि पहचान लिये।
सपनो का कारवा बसाने मैं।
मेरा एक सपना था जो सपना हीं रहा।
पुरे करने के कोशिश की पर पुरा कहाँ हो सका।
सपने टूटते देखा सभी के आंखों में।
पर सहारा न मिला किसी का सपने को सँवारने में।
दिल् टुटा सपना टुटा पुरे टूट गए हम्।
जीते जी ऐसा लगा पूरे मौत के करीब हैं हम्।
