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abhinav daftuar

Others

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abhinav daftuar

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शहर

शहर

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तुम्हारे शहर में नया था मैं

और कुछ ख्वाब पुराने से,

सभी अपने से लगते थे यहां

और मैं खुद बेगानों सा ।


हर तरफ शोर था

और,आजमाइश थी हमारे हुनर की,

कांधे पर टाँगे स्कूली बस्ते सा,

कुछ पोटलियाँ समेटे उन यादों की! 

नया था मैं इस शहर में।


शाम भी यहा धुंधली थी,

आलस भरी निगाहें,

वक़्त भी बासी पड़ा उसी मोड़ पर!

और शाखों से लिपटे सन्नाटे,

बस दीवारों पर चिपकी खामोशी थी!


जाने किसके ख्यालों मे सोता है,

जाने कब कौन कितनी सिसकियाँ लेता है,

हर गलियों मे खामोशिओं का मंज़र है,

चीख़ें भी निकलती हैं,और आखें बंजर है!

शायद, नया था मैं इस शहर में।


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