साथी
साथी
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कट चुकी रात आधी,
नींद मानो रूठ गई,
कहनी कुछ बात साथी,
थोड़ी झूठ थोड़ी सही।
ना दिल राज़ी ना मन राज़ी,
कि तू मेरे साथ नहीं,
सोचूँ ये कैसे साथी,
राम जिए बिन वैदहि।
मिल मिट्टी से दे महक सौंधी,
बरसी न ऐसी बूँद कही,
आँखों से निकले आँसू साथी,
पर उसमें वो बात नहीं।
बरसो बीते सुने पियाजी,
जो तुम मेरे साथ नहीं,
चेहरा किसका देखूँ साथी,
तुझ सा ना कोई मोहिनी।