रिश्ता
रिश्ता
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रिश्ता एक मोती की माला जैसी एक डोर में
गोल बंधन की तरह सुंदरता से चमकती रहती है,
जैसे चांद की रोशनी हो माता - पिता,
भाई - बहन, चाचा - चाची, दादा - दादी से मिलती प्यार हो
लेकिन समय को क्या पता की यह रिश्ता
एक दिन धागा टूटने से मोती बिखर जाती है,
उसी प्रकार यह भी टूट जाएगा।
भगवान राम जैसे पुत्र और भरत जैसे भाई भी सबको मिलता है।
आज्ञा किया माता कैकेयी ने और निभाया राम जैसे पुत्र ने।
आज यह राम और भरत का प्यार का भाई का प्यार एक शब्द लगता है।
लोग भाई - भाई को नही मानते है।
भाई - भाई को एक दुश्मन मानते हैं।
रिश्ता निभाना हो अपने को राम और भरत की रिश्ता निभाओ।
माता कैकयी नहीं कौशल्या बनो तभी यह रिश्ता एक बंधन की तरह बनेगा।