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Gordhanbhai Vegad

Others

4.0  

Gordhanbhai Vegad

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परम गुनाह

परम गुनाह

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वो मुझसे बिछड़कर भी मेरे ही शहर के अंदर रहा,

मेरे ही इर्दगिर्द मेरा हादसा बनकर कहर में रहा !!


और किनारा भी करता तो किस तरह करता मैं किनारा,

सारे किनारों के दरम्यान भी तो वो हर लहर में रहा !!


दिल के मर्ज़ की दवा बनकर ही वो आया था जिंदगी में,

कैसे पता चलता, दवा में भी वो ज़हर बनकर रहा !!


ये वक़्त कमबख्त इसीलिए नहीं कट रहा था शायद,

वक़्त के हर लम्हों में वो याद बनकर हर प्रहर में रहा !!


रात भर अँधियारो में न जाने कहाँ रहा वो गायब,

आँख खुली तो देखा वो सूरज बनकर हर सहर में रहा !!


अब कुछ लोग गुलदस्ते लेकर आये हैं हमदर्द बनकर,

मैं भी तो उनके सामने ऐसे रहा,जैसे में क़बर में रहा !!


मेरा "परम" गुनाह था ये, तुझसे इश्क सरेआम करना,

शायद इसीलिए "पागल" बनकर मैं हर खबर में रहा !!



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