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Mayank Tripathi

Others

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Mayank Tripathi

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परजीवी काया

परजीवी काया

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सद्भभावनाओं का बोझ लादे,

सड़क के पार दिखी एक जीर्ण काया

तपती दोपहरी में निराशा के अंध की छाया।

लुटेरे दुर्भावनाओं के रोकते थे

पग-पग पर साथ चलते थे,

मन के आन्तरिक विचारों की जकड़न

ह्रदय में सत्य के ढेर की सिकुडन

सत्य के सह विचारों का आलिगंन

भीतरी सांस के उच्छवास का क्रन्दन

कराहों की भाप से बनता हुआ निर्मल बादल

वेदनाओं के आंसू से भरता हुआ स्वच्छ छागल।


उगते अंकुर कोमल भावों के

पीड़ित था शुष्क विचारों से

खुशी के बुलबुले फूट जाते अकेले पन में

सुख वैभव लूट लेती क्रूर किस्मत,

क्या बचा उसके जीवन में।

मरियल पेड़ की तरह फिक्र न थी तन की

रात में उठ बैठता आवाज सुन

चीखते टूटते बर्तन की।

शोर,वेग,ज्वाला,स्पन्दन,मोह,लज्जा कुछ नहीं

केवल होंठ का कम्पन।


आह! परजीवी काया ये कैसा तेरा जीवन।



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