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SHAKIB FARIDI

Others

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SHAKIB FARIDI

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मुहब्बत, तुझसे अब नफ़रत करूँगा

मुहब्बत, तुझसे अब नफ़रत करूँगा

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ज़रा सोचा है कैसे मैं जियूँगा,

दिया जो ज़ख्म है वो कैसे सियूँगा।

मेरे आक़ा ने कुचला है मेरा दिल,

के अब फ़रियाद मैं किससे करूँगा।।


किया हर ख़्वाब को दो टुकड़े मेरे,

बताओ, दफ़्न इन्हें कैसे करूँगा।

मुहब्बत अब मेरी बदनाम है जो,

गुनाह इसका मैं किसके सर रखूँगा।।


बड़े नाज़ो से पाले ख़्वाब थे जो,

जनाज़ा इनका लेकर अब चलूँगा।

वफ़ादारी पे मेरे शक किया है,

बेवफाओं से अब असबाक़1 लूँगा।।


ये इबरत2 तुमने जो मुझको दिया है,

सिरहाने रख के मैं सोया करूँगा।

मुझे है नाज़, अब भी अपनी वफ़ा पे,

तुम ही लायक़ न थे खुद से कहूंगा।।


किया जो तुमने है अहद-ए-ख़िलाफ़ी3,

ना करना अहद ये सबसे कहूँगा।

बहुत नाशाद4 हूँ, ग़मग़ीन है दिल,

मुहब्बत, तुझसे अब नफ़रत करूँगा।।


शब्दार्थ

असबाक़ - सबक़ ,सीख

इबरत - सीख

अहद-ए-ख़िलाफ़ी - वादा तोड़ना 

नाशाद - नाख़ुश, दुःखी




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