मोल ज़िंदगी की !
मोल ज़िंदगी की !
शराफ़त भरी ज़िंदगी शायद जी लिया बहुत,
तुमने मोहब्बत भी शायद पा लिया बहुत।
दुआओं में बसने की तुम्हें बुरी आदत भी नहीं,
ज़िंदगी इक तमाशा बनाने की चाहत ही सही ।
चलो कुछ तो अधूरी ख़्वाहिश लिये घूम रहे हो,
लगता है मौत को इधर उधर भागे ढूंढ रहे हो ।
परेशान क्यूँ होते हो माना कि थोड़ी देर लगेगी,
यूँ भटकते रहे तो इक दिन मौत खुद तुमसे
आकर मिलेगी ।
यूँ तो उसे पता भी नहीं है तेरा कोई पता,
पर इतना पता है कि तू जो मुसाफ़िर हुआ,
उससे मिलने के लिए ना करनी होगी दुआ ।
जो बाहर मिल जाए उसी से आजकल वो मिलती है,
बिन मेहमान नवाजी के दूर ही पलती है ।
है बहुत ही प्यारी सी उसकी एक आदत,
जो भी मिल जाये उससे हो जाती है उसे चाहत।
उसने पसंद जो कर ली तुम नापसंद ना कर सकेगा,
फिर भागते फिरोगे मगर तुम्हें हर पल वो दिखेगा।
मौत ही मुकम्मल हो पर नहीं चाहिए चाहत अब उसकी,
ऐसी आवाज़ सी आयेगी हर पल तेरे अंदर से दिल की।
थोड़ी मनमानी छोड़ दुनियावालों की भी सोच ले,
घर पे अपनों संग चाय पकौड़े का थोड़ा मौज ले।
हम तेरे दुश्मनों में नहीं जो तेरी ख़ुशियों से जलें,
बस तेरी सलामती बनी रहे और किसी अनजाने
मोड़ पर हम मिलें ।
थोड़ा सब्र करो और इस ग़म के साये को हट जाने दो ,
तुम भी खुश रहो और हमें भी ख़ुशियाँ पाने दो ।
आओ संकल्प करें कि अब मौत को मौत देना है,
आने वाले कल के सुनहरे पल में हमें जीना है।
बहुत जल्द वो वक़्त आएगा जब हम साथ साथ
मुस्कुरायेंगे,
पुरी दुनिया महफूज़ हो जाने दे फिर इसे दुल्हन सी
सजाएंगे।
