मन की बात
मन की बात
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मैंने ढूँढा उस औरत को,
जो सबका सब करती थी
जब वो सबका करती थी ,
सबसे अच्छी रहती थी
मन की बातों को कहने का,
मौका उसको ना मिला कभी
एक दिन अकेली अपनी
परछाईं को, उपवन में
ढूँढा करती थी
उपवन में सब फूल खिले ,
उसको मुरझाए दिखते थे
मुरझाए उस फूलों में,
अपने को ढूँढा करती थी
किस्मत में है क्या लिखा,
वो हर वक्त सोचा करती थी
जीवन साथी भी उसका,
परिवार में उलझा रहता था
उसके नेत्र हमेशा,
साथी को ढूँढा करते थे
कहना चाहे कुछ और,
शब्दों पकड़ा जाता था
हो गई मौन इस दुनिया से,
अपने शब्दों को मौन किया
अब भी उपवन में फूल खिले,
परछाईं देखे कौन वहाँ
मौन हुई इस दुनिया से,
अपने शब्दों को मौन किया
