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Raj kumar sunpat

Others

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Raj kumar sunpat

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मेरी माँ

मेरी माँ

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अड़सठ रुपए किलो भैंस का दूध

दो अंडे में फैट कर रोज़ मेरे

गले से उतार रही है मेरी माँ।

फांक पे फांक सेब की खिला

दे रही है मेरी माँ।


बाबा की झाड़ फूंक भी जारी है,

लाल मिर्च से रोज़ नजर

उतार रही है मेरी माँ।

उनको क्या मालूम

तेरे दर का,

तेरी तीखी नजर का,

तेरी मुस्कान से होती उँची नीची

मेरी नब का।

मेरे खोए सुध बुध पे, ठहाके

लगाते इन सब का।

तेरी गली के चक्कर में रोज़

अड़सठ का पेट्रोल फूंकता है।

नुक्कड़ पे घंटो खड़े रहने से

मेरे पैर भी दुखता है।

चौतीस की कमर थी अब

छोटी की आठाइश जीन्स आती है।


पीठ मेरी अब बिस्तर पे नहीं

टिकी जाती है।

तुमसे बेखबर, इन सब से अनजान,

ग्रहों पे दोष डाल रही मेरी माँ।

शायद किसी की नजर लगी,

बस ये ही मान रही मेरी माँ।


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