मेरा पैगाम,तेरे नाम
मेरा पैगाम,तेरे नाम
भाषा के ही द्वारा मैं,
तेरा पैग़ाम सुनती हूँ।
तू गाता है।
मैं सुनती हूँ।
यही बस काम करती हूँ।
क्या कम हूँ मैं तुझसे
जो तू ये समझता है
लो मैं भी अब तुम्हें
सरे आम ये पैग़ाम देती हूँ। आदमी ख़ास से,
जिस दिन तू ,हो गया था आम।
सुन कर व्यथित से हो गये थे
उस दिन जैसे मेरे प्राण ।
हुआ कैसे मेरा यू ख़ास शायर
आदमी आदमी आदमी यूँ आम
दिल से आह निकली हाय!
बचा लो मेरे श्री राम
शुक्र है राम का।
जो आ गया तू फिर से अपने धाम
सोचा मैंने भी तुमको
भेज दूँ अपना ये पैग़ाम
नहीं भूली हूँ मैं तुझको ।
सुन लो अब मेरे श्री राम।
नहीं भूली ना भूलूंगी
तुम हो मेरे श्री राम
जान जाएं चाहें दुनियाँ
मेरी बातें जो है गुमनाम।
मैंने भी सोंच लिया है
लिखूँगी मैं भी सरेआम।
आज की समर्पित मेरी कविता
बस तेरे है नाम
गौर करके तू पढ़ना
मेरे दिल के ये पैगाम।
