मैंने देखा है
मैंने देखा है
जुगनुओं को अक्सर मैंने सूरज से लड़ते देखा है
कड़ी धूप में अक्सर मैंने धरती को तपते देखा है... ।
देखा है मैंने ऋषि को मंत्र जपते देखा है,
यकीन मानिए मैंने ईश्वर को धरती पे देखा है....।।
धूप में अक्सर ये कलियां मुरझा जाती हैं....
हवाएं भी अपने साथ आंधी को ले आती हैं...
देखा है मैंने अक्सर इन कलियों को हंसते देखा है....
तपन सहने के बाद भी इनको फूलो से सजते देखा है...।।
अक्सर इन पक्षियों को मैंने राग अलापे देखा है ...
सब को मैंने एक संग में चुगा चुगते देखा है.....
देखा है अक्सर मैंने इनको आसमान में उड़ते देखा है...
पंख फैलाकर उड़ते हुए, इन खगो को मैंने देखा है..।।
अक्सर लोगो को मैंने,आपस में लड़ते देखा है.....
फरेबी मुस्कान संग बगल में छिपा हुआ ख़ंजर भी मैने देखा है.....
देखा है लोगो को अक्सर मेरी बुराई करते देखा है...
पास बैठ कर दगा करे,ऐसा धोखेबाज भी मैंने देखा है.... ।।