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Mansi Kakkad

Others

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Mansi Kakkad

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मैं भी...

मैं भी...

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मैं भी अपने लिए जी रही हूं

कुछ तो गलत कर रही हूं

क्या गलत कर रही हूं ये नहीं समझ पा रही हूं क्योंकि

अपने आप को आगे बढ़ाने में अपनों से दूर हो रही हूं


मैं भी प्यार कर रही हूं

कुछ तो राधा सी बन रही हूं

क्या प्रीत बांध रही हूं ये नहीं समझ पा रही हूं क्योंकि

ना प्यार मिल रहा है ना ही दूर हो रही हूं


मैं भी शोहरत कमा रही हूं

कुछ तो मैं भी उलझती जा रही हूं

क्या उलझन है जो पैसों से नहीं सुलझती ये नहीं समझ पा रही हूं क्योंकि

शायद मैं भी दुनिया के तौर-तरीके में उलझती जा रही हूं


मैं भी ज़िंदगी जीना चाहती हूं

कुछ तो है जो छूट रहा है

क्या पाना चाहती हूं ये खुद नहीं समझ पा रही हूं क्योंकि

ज़िंदगी जीने में खुद ही को खर्चती जा रही हूं।


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