मै कवि हूँ , मुझको जीना होगा
मै कवि हूँ , मुझको जीना होगा
सम्बन्धों को अनुबन्धों को परिभाषाएँ देनी होंगी
होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी,
हर विवश आँख के आँसू को
यूँ ही हँस हँस पीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा।
मनमोहन के आकर्षण मे भूली भटकी राधाओं की,
हर अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाओं की,
दे प्राण देह का मोह छुड़ाओं वाली हाड़ा रानी की,
मीराओं की आँखों से झरते गंगाजल से पानी की,
मुझको ही कथा सँजोनी है,
मुझको ही व्यथा पिरोनी है
स्मृतियाँ घाव भले ही दें
मुझको उनको सीना होगा
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा।
जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ,
या सतरंगी परिधानों पर मिटती इन प्यासों को देखूँ,
देखूँ आँसू की कीमत पर मुस्कानों के सौदे होते,
या फूलों के हित औरों के पथ मे देखूँ काँटे बोते,
इन द्रौपदियों के चीरों से
हर क्रौंच-वधिक के तीरों से
सारा जग बच जाएगा पर
छलनी मेरा सीना होगा,
मै कवि हूँ जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना होगा।
