माँ
माँ
माँ की बोली है अनमोल , प्यार का भाव जगाती है ,
बिना अपेक्षा बिना स्वार्थ के , जीवन कला सिखाती है ।
याद मुझे है बचपन के दिन, जब चोट मुझे लग जाती थी ,
गोद बैठा कर फिर दुलlर कर स्नेहिल उपचार कराती थी ।
स्मरण करती हूँ एक ऐसा दिन, अव्वल न आई कक्षा मे जब,
भारी मन से घर पहुंची, पूछा माँ ने चेहरा क्यों गमगीन है अब।
बताया मैंने तुम्हारी बेटी पूरा न कर पाई ख्वाब तुम्हारा
हाथ पकड़ा सिर सहलाया, बोली माँ, बैठो पास हमारे।
बोली कोशिश तुमने पूरी की है, अव्वल नहीं तो क्या ?
जीवन चलते रहने का नाम है, क्या जीत या
फिर हार क्या ?
बिन खाये जब सो जाती मैं, आकर मुझे जगाती थी ,
जब तक मैं कुछ खा नहीं लेती नींद उसे नहीं आती थी।
पिता जी बोलते सो गई तो, क्यों चाहती उसे जगाना,
बोलती माँ दर्द मुझे ही होता है, जब बच्चे सोएँ बिन खाये खाना।
फिर जगा कर गोद मे बैठा कर, खाना मुझे खिलाती थी,
मूँदे आंखे खाना खाने का, वह आनंद दिलाती थी ।
आज हम बड़े हो गए, फिर भी हैं माँ को प्यारे,
पास नही हैं उनके, फिर भी सारे क्षण हैं याद हमारे ।
एक भी दिन यदि फोन किया न, सहम सी जाती माता हमारी,
लेती सदा सलामती की खबर, माँ तुम पर है जग बलिहारी।
अनगिनत हैं यादें सारी, माँ सा नहीं जगत मे दूजा,
ईश्वर से ऊंचा है दर्जा, हम सब करते तेरी पूजा ।
तेरा प्यार असीम है माँ , पद तेरा नभ से ऊंचा है,
अतुलनीय है महिमा तेरी, जन-जन ने तुमको पूजा है ।
