मां
मां
'मां' एक ऐसा शब्द है सारा जहां स्तब्ध है,
इसकी महिमा को जानकर,इसकी गरिमा पहचानकर।
'मां' वो है जो जीवन देती है, उसको मेहनत से खेती है।
"मां" वो है जो सपने संजोती है, उसमें खुशियां पिरोती है।
मां का हृदय कितना कोमल,बच्चों के कष्टों से हो उठता विहल।
अश्रु धार बह जाए पल पल, तपते मन को बना दे निर्मल।
मां एक ऐसा शब्द है, सारा जहां स्तब्ध है…
मां वो है जो खुद बासा खाए, गीले पर जो खुद सो जाए।
रात रात को जग कर देखे, उसका तारा कहीं जग न जाए।
जब नन्हा वो चलना सीखे, चोट उसे कहीं लग न जाए।
उसके जिगर का टुकड़ा है वो,चंदा सा सुंदर मुखड़ा है वो।
जीवन के उसको पूरा करने, आसमान से उतरा है वो।
मां एक ऐसा शब्द है……
मां का प्रेम है बहता निश्छल,
फिर भी उस पल से डरता अविरल।
जीवन में क्षण वो कभी ना आए,
कि पल में पराया वो कर जाए।
जीवन का चक्र यह चलता रहता,
रिश्ते नए बनते,पुराना धुंधला पड़ता।
बूढ़ी आंखें, बूढ़े सपने, अब तो बस ये निस्तत्व है।
ज़र से अब कितना ये काम ले,क्या ये भी कोई खब्त है?
मां एक ऐसा शब्द है……
मां से विदा की बेला का,समय ज़रा वो थम जाए।
उनके दर्शन पाने को,देव धरा पर हैं आए।
कोटि कोटि नमन करने,देखो हर कोई करबद्ध है।
इस अपार सुख की प्राप्ति पर मां देखो निर्मद है।
का एक ऐसा शब्द है…..